परागकोश: Difference between revisions
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परागकोष एक द्विपालीय संरचना हैI परागकोश की द्विपालीय प्रकृति अनुप्रस्थ अनुभाग में बहुत विशिष्ट होती है। इसे हम एक आरेख की सहायता से समझेंगे। | परागकोष एक द्विपालीय संरचना हैI परागकोश की द्विपालीय प्रकृति अनुप्रस्थ अनुभाग में बहुत विशिष्ट होती है। इसे हम एक आरेख की सहायता से समझेंगे। | ||
प्रत्येक पाली में दो थेका होते हैं, जिस कारण परागकोश डाइथेकस होता है। परागकण परागकोशों में उत्पन्न होते हैं। | |||
परागकोष द्विपालीय होता है जिसका अर्थ है कि इसमें दो पालियाँ होती हैं। परागकोष के प्रत्येक लोब में दो थेका होते हैं इसलिए हम इसे डाइथेकस कहते हैं। परागकोश में नर युग्मक होते हैं जिन्हें परागकण कहते हैं । प्रत्येक पालि के कोनों में दो थैली जैसी संरचना मौजूद होती है जिसमें परागकण परिपक्व होते हैं। इन थैलीनुमा संरचनाओं को माइक्रोस्पोरंगिया कहा जाता है। | परागकोष द्विपालीय होता है जिसका अर्थ है कि इसमें दो पालियाँ होती हैं। परागकोष के प्रत्येक लोब में दो थेका होते हैं इसलिए हम इसे डाइथेकस कहते हैं। परागकोश में नर युग्मक होते हैं जिन्हें परागकण कहते हैं । प्रत्येक पालि के कोनों में दो थैली जैसी संरचना मौजूद होती है जिसमें परागकण परिपक्व होते हैं। इन थैलीनुमा संरचनाओं को माइक्रोस्पोरंगिया कहा जाता है। |
Revision as of 19:54, 8 September 2023
परिचय
अब तक हमने चर्चा की है कि एक फूल में नर और मादा प्रजनन अंग होते हैं। पुंकेसर जो नर भाग का प्रतिनिधित्व करता है उसके दो भाग होते हैं, एक को डंठल और दूसरे को परागकोश कहा जाता है। इस अध्याय में हम परागकोश की संरचना का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
परिभाषा
पुंकेसर के शीर्ष पर स्थित पुष्प का वह भाग जहाँ पराग परागकण उत्पन्न होते हैं परागकोश कहलाता हैI परागकोशों का आकार बहुत भिन्न होता है, विभिन्न प्रकार के फूलों में परागकोशों के आकार और व्यवस्था में अंतर दिखाई देता है। उदाहरण के लिए- Wolfia में ये एक मिलीमीटर के छोटे से अंश जितना होता है वही Canna में पांच इंच (13 सेंटीमीटर) तक होता है। प्रत्येक परागकोष आम तौर पर एक लंबे पतले डंठल की नोक पर पैदा होता है और इसमें दो लोब होते हैं जिनमें से प्रत्येक में पराग थैलियों (माइक्रोस्पोरंगिया) की एक जोड़ी होती है जो परागण के लिए परागकण का उत्पादन करती है।
संरचना
परागकोष एक द्विपालीय संरचना हैI परागकोश की द्विपालीय प्रकृति अनुप्रस्थ अनुभाग में बहुत विशिष्ट होती है। इसे हम एक आरेख की सहायता से समझेंगे।
प्रत्येक पाली में दो थेका होते हैं, जिस कारण परागकोश डाइथेकस होता है। परागकण परागकोशों में उत्पन्न होते हैं।
परागकोष द्विपालीय होता है जिसका अर्थ है कि इसमें दो पालियाँ होती हैं। परागकोष के प्रत्येक लोब में दो थेका होते हैं इसलिए हम इसे डाइथेकस कहते हैं। परागकोश में नर युग्मक होते हैं जिन्हें परागकण कहते हैं । प्रत्येक पालि के कोनों में दो थैली जैसी संरचना मौजूद होती है जिसमें परागकण परिपक्व होते हैं। इन थैलीनुमा संरचनाओं को माइक्रोस्पोरंगिया कहा जाता है।