लघुबीजाणुधानी: Difference between revisions
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आवृतबीजी पौधों में पुष्प लैंगिक जनन की इकाई है। पुष्प के नर और मादा जनन अंग इसमें भाग लेते हैं। पुंकेसर का परागकोश (जो नर भाग है) वह स्थान है जहाँ पराग कण उत्पन्न होते हैं। परागकोश की अनुप्रस्थ काट को देखने पर यह प्रकोष्ठो में बँटा दिखाई देता है, ये प्रकोष्ठ लघुबीजाणुधानी कहलाते हैं। परंतु परागकोश में कहां और किस विधि से इनका निर्माण होता है? लघुबीजाणुधानी वास्तव में वह स्थान है जहां परागकण विकसित और परिपक्व होते हैं। इस अध्याय में हम लघुबीजाणुधानी की संरचना और भूमिका के बारे में चर्चा करेंगे। | आवृतबीजी पौधों में पुष्प लैंगिक जनन की इकाई है। पुष्प के नर और मादा जनन अंग इसमें भाग लेते हैं। पुंकेसर का परागकोश (जो नर भाग है) वह स्थान है जहाँ पराग कण उत्पन्न होते हैं। परागकोश की अनुप्रस्थ काट को देखने पर यह प्रकोष्ठो में बँटा दिखाई देता है, ये प्रकोष्ठ लघुबीजाणुधानी कहलाते हैं। परंतु परागकोश में कहां और किस विधि से इनका निर्माण होता है? लघुबीजाणुधानी वास्तव में वह स्थान है जहां परागकण विकसित और परिपक्व होते हैं। इस अध्याय में हम लघुबीजाणुधानी की संरचना और भूमिका के बारे में चर्चा करेंगे। | ||
Revision as of 12:59, 13 September 2023
आवृतबीजी पौधों में पुष्प लैंगिक जनन की इकाई है। पुष्प के नर और मादा जनन अंग इसमें भाग लेते हैं। पुंकेसर का परागकोश (जो नर भाग है) वह स्थान है जहाँ पराग कण उत्पन्न होते हैं। परागकोश की अनुप्रस्थ काट को देखने पर यह प्रकोष्ठो में बँटा दिखाई देता है, ये प्रकोष्ठ लघुबीजाणुधानी कहलाते हैं। परंतु परागकोश में कहां और किस विधि से इनका निर्माण होता है? लघुबीजाणुधानी वास्तव में वह स्थान है जहां परागकण विकसित और परिपक्व होते हैं। इस अध्याय में हम लघुबीजाणुधानी की संरचना और भूमिका के बारे में चर्चा करेंगे।
परिभाषा
अधिकांश आवृतबीजियों में परागकोश द्विपालित होता हैं। द्विपालित परागकोश में चार लघुबीजाणुधानियाँ होती हैं जो चारों कोनों में उपस्थित होती हैं।। लघुबीजाणुधानी वह स्थान है जहां लघुबीजाणुओं का निर्माण होता हैं। इस प्रक्रिया को लघुबिजाणुजनन कहा जाता है। जब परागकोश परिपक्व नहीं होता है, तो सघन रूप से व्यवस्थित समरूप कोशिकाओं का एक समूह जिसे बीजाणुजन ऊतक कहा जाता है, प्रत्येक लघुबीजाणुधानी के केंद्र में रहता है।
संरचना
अनुप्रस्थ खंड में, एक विशिष्ट लघुबीजाणुधानी रूपरेखा में गोलाकार दिखाई देता है। एक परिपक्व लघुबीजाणुधानी में चार परतें होती हैं। ये परतें परिधि से केंद्र की ओर एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित होती हैं। बाहरी तीन परतें परागकोश की सुरक्षा का कार्य करती हैं और परागकण को मुक्त करने के लिए परागकोश के स्फुटन में मदद करती हैं।
परतों के नाम एवं कार्या :
सभी के नाम एवं कार्या निम्नलिखित हैं-
बाह्यत्वचा
यह एकल एवं सबसे बाहरी परत है। परागकोश के विकास में बाह्यत्वचा एक सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है।
एन्डोथेसियम
एन्डोथेसियम परिपक्व परागकण के परागण के लिए परागकोश के स्फुटन में मदद करती हैं।
मध्य परतें
ये दो से तीन परत मोटी होती हैं और सुरक्षात्मक भूमिका निभाती हैं।
टेपेटम
यह सबसे भीतरी परत हैI टेपेटम परागकण के विकास के लिए पोषक तत्व प्रदान करती हैI टेपेटम की कोशिकाओं में सघन कोशिकाद्रव्य होता है और आम तौर पर एक से अधिक केन्द्रक होते हैं। टेपेटल कोशिकाएं समसूत्री कोशिका विभाजन करती हैं जहां केन्द्रक-विभाजन तो हो जाता है परंतु कोशिका विभाजन नहीं हो पाता। यही कारण है की वे द्वि या बहुकेंद्रकीय बन जाते हैं। आमतौर पर कोशिकाएँ बड़ी होती हैं क्योंकि उनमें प्रति कोशिका एक से अधिक केन्द्रक होते हैं।
बीजाणुजन ऊतक:
यह लघुबिजाणुधानी के मध्य में स्थित होता है। यह सघन रूप से व्यवस्थित समरूप कोशिकाओं का एक समूह हैI जैसे ही परागकोश विकसित होता है, बीजाणुजन ऊतक की कुछ कोशिकाएं अर्धसूत्रीविभाजित होकर लघुबीजाणु चतुष्क बनाती हैं। बीजाणुजन ऊतक की प्रत्येक वह कोशिका जो लघुबीजाणु चतुष्क बनाती है, पराग मातृ कोशिका या लघुबीजाणु मातृ कोशिका कहलाई जाती है। ये कोशिकाएँ पराग कण बनाने के लिए अर्धसूत्रीविभाजन करती हैं।