हालवॉक्स तथा लेनार्ड के प्रेक्षण: Difference between revisions

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== हॉलवॉच का अवलोकन ==
== हॉलवॉच का अवलोकन ==
1888 में, विल्हेम ने देखा कि जब प्रकाश एक साफ धातु की सतह पर आपतित होता है, तो इससे सतह की विद्युत आवेश जमा करने की क्षमता में कमी आ जाती है। दूसरे शब्दों में, धातु की सतह अंधेरे की तुलना में प्रकाश के संपर्क में आने पर अधिक तेजी से डिस्चार्ज होती है। इस घटना ने इस संभावना की ओर संकेत किया कि प्रकाश किसी तरह धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों को हटा सकता है।
1888 में, विल्हेम हालवॉक्स ने देखा कि जब प्रकाश एक साफ धातु की सतह पर आपतित होता है, तो इससे सतह की विद्युत आवेश जमा करने की क्षमता में कमी आ जाती है। दूसरे शब्दों में, धातु की सतह अंधेरे की तुलना में प्रकाश के संपर्क में आने पर अधिक तेजी से डिस्चार्ज होती है। इस घटना ने इस संभावना की ओर संकेत किया कि प्रकाश किसी तरह धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों को हटा सकता है।


== लेनार्ड का अवलोकन ==
== लेनार्ड का अवलोकन ==

Revision as of 18:11, 19 September 2023

Hallwach's and Lenard's observation

हालवॉक्स तथा लेनार्ड के अवलोकन महत्वपूर्ण प्रयोग थे जिन्होंने फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के लिए प्रारंभिक साक्ष्य प्रदान किए और प्रकाश और पदार्थ के बीच बातचीत की हमारी समझ में योगदान दिया, विशेष रूप से, प्रकाश के संपर्क में आने पर किसी सामग्री की सतह से इलेक्ट्रॉनों का निष्कासन।

हॉलवॉच का अवलोकन

1888 में, विल्हेम हालवॉक्स ने देखा कि जब प्रकाश एक साफ धातु की सतह पर आपतित होता है, तो इससे सतह की विद्युत आवेश जमा करने की क्षमता में कमी आ जाती है। दूसरे शब्दों में, धातु की सतह अंधेरे की तुलना में प्रकाश के संपर्क में आने पर अधिक तेजी से डिस्चार्ज होती है। इस घटना ने इस संभावना की ओर संकेत किया कि प्रकाश किसी तरह धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों को हटा सकता है।

लेनार्ड का अवलोकन

हेनरिक हर्ट्ज़ के पूर्व छात्र फिलिप लेनार्ड ने 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में इस घटना पर अधिक व्यवस्थित प्रयोग किए। लेनार्ड ने देखा कि जब किसी धातु की सतह पर पराबैंगनी प्रकाश डाला जाता है, तो सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं और "फोटोइलेक्ट्रिक करंट" बनता है।

लेनार्ड के प्रयोगों ने कई प्रमुख अवलोकन प्रदान किए
थ्रेशोल्ड आवृत्ति:

इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन केवल तब होता है जब आपतित प्रकाश की आवृत्ति धातु की एक निश्चित थ्रेशोल्ड आवृत्ति (फ्थ्रेसहोल्डफथ्रेशोल्ड​) विशेषता से अधिक हो जाती है। इस सीमा आवृत्ति के नीचे, प्रकाश की तीव्रता की परवाह किए बिना, कोई भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं हुआ।

तीव्रता-वर्तमान संबंध:

उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की धारा (फोटोइलेक्ट्रिक करंट) आपतित प्रकाश की तीव्रता के सीधे आनुपातिक थी। अधिक तीव्र प्रकाश के परिणामस्वरूप उच्च फोटोइलेक्ट्रिक धारा उत्पन्न हुई, बशर्ते कि आवृत्ति सीमा से ऊपर हो।

कोई समय विलंब नहीं:

प्रकाश चालू होने पर इलेक्ट्रॉन लगभग तुरंत उत्सर्जित होते थे। प्रकाश के आगमन और इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के बीच कोई समय विलंब नहीं था, जिससे पता चलता है कि प्रक्रिया तत्काल थी।

गणितीय स्पष्टीकरण (सीमा आवृत्ति)

किसी दिए गए धातु के लिए थ्रेशोल्ड आवृत्ति (एफथ्रेसहोल्ड) धातु के कार्य फ़ंक्शन (डब्ल्यूडब्ल्यू) से संबंधित है, जो धातु की सतह से एक इलेक्ट्रॉन को हटाने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा है। एक फोटॉन की ऊर्जा (E) निम्न द्वारा दी जाती है:

E=hf

जहाँ:

   E फोटॉन की ऊर्जा है।

   h प्लैंक स्थिरांक (6.626×10−34 J·s) है।

   f प्रकाश की आवृत्ति है.

फोटो उत्सर्जन होने के लिए, आपतित फोटॉनों की ऊर्जा कार्य फलन से अधिक या उसके बराबर होनी चाहिए:

hf≥W

यह समीकरण एक विशिष्ट धातु के लिए थ्रेशोल्ड आवृत्ति (fthreshold​) को परिभाषित करता है। यदि f, fthreshold से कम है, तो कोई फोटो उत्सर्जन नहीं होता है।

संक्षेप में

हालवॉक्स तथा लेनार्ड के अवलोकन फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव के सिद्धांत के विकास में सहायक थे, जिसे बाद में अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1905 में फोटॉन के लिए मात्रात्मक ऊर्जा स्तरों के विचार का प्रस्ताव देकर और प्रकाश के कणों के रूप में फोटॉन की अवधारणा को पेश करके समझाया। हालवॉक्स तथा लेनार्ड के प्रायोगिक कार्य के साथ-साथ आइंस्टीन की व्याख्या ने तरंगों और कणों दोनों के रूप में प्रकाश की दोहरी प्रकृति की हमारी समझ की नींव रखी।