जल प्रदूषण: Difference between revisions

From Vidyalayawiki

mNo edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[Category:पर्यावरण प्रदूषण]][[Category:कक्षा-11]][[Category:रसायन विज्ञान]]
[[Category:पर्यावरण प्रदूषण]][[Category:कक्षा-11]][[Category:रसायन विज्ञान]]
'''जल प्रदूषण'''
मानव गतिविधियों या हानिकारक सूक्ष्म जीवो की वृद्धि के कारण ताजे जल के स्रोतों का विनाश '''जल प्रदूषण''' है। यह जल को पीने, खाना पकाने, सफाई, तैराकी के लिए अनुपयोगी बना देता है। हमारी पृथ्वी पर महासागर के रूप में बड़े पैमाने पर जल उपस्थित है। पृथ्वी की सतह का लगभग 70% भाग महासागर से ढका हुआ है। महासागरों में पृथ्वी का लगभग 96.5% जल उपस्थित है, 2% जल ग्लेशियरों के रूप में है, पृथ्वी पर केवल 1.5% जल ही उपयोग योग्य है जो हमें नदी, तालाब, झील, झरने, वर्षा और भूमिगत जल भंडार से मिलता है। इस जल को मृदु जल कहा जाता है क्योंकि यह पीने और उपयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। समुद्री जल पीने व उपयोग के लायक नहीं है, चूँकि खारे जल में नमक और खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में होते हैं, इसलिए इसे कठोर जल कहा जाता है।


मानव गतिविधियों या हानिकारक सूक्ष्म जीवो की वृद्धि के कारण ताजे पानी के स्रोतों का विनाश '''जल प्रदूषण''' है। यह पानी को पीने, खाना पकाने, सफाई, तैराकी के लिए अनुपयोगी बना देता है।
वर्तमान में जल प्रदूषण एक कठिन समस्या बनती जा रही है। बड़ी संख्या में, मानवीय औद्योगिक संस्थानों के स्थापित होने से और उनके अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण सभी मीठे जल के स्त्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं।


हमारी पृथ्वी पर महासागर के रूप में बड़े पैमाने पर जल मौजूद है।  पृथ्वी की सतह का लगभग 70% भाग महासागर से ढका हुआ है।  महासागरों में पृथ्वी का लगभग 96.5% पानी मौजूद है।  2% पानी ग्लेशियरों के रूप में है, पृथ्वी पर केवल 1.5% पानी ही उपयोग योग्य है जो हमें नदी, तालाब, झील, झरने, वर्षा और भूमिगत जल भंडार से मिलता है।  इस पानी को मृदु जल कहा जाता है क्योंकि यह पीने और उपयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। समुद्री जल पीने व उपयोग के लायक नहीं है.  चूँकि खारे पानी में नमक और खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में होते हैं, इसलिए इसे कठोर पानी कहा जाता है। 
जहां एक ओर मानव औद्योगिक क्रांति को अपने विकास के पथ पर उपलब्धि मान रहा है, वहीं दूसरी ओर औद्योगिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण प्राकृतिक संसाधनों को लगातार प्रदूषित कर रहा है और वह अपने पतन की ओर जा रहा है। आजकल पर्यावरण से संबंधित खतरनाक मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं जो लगातार प्राकृतिक जल संसाधनों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही हैं। मीठे जल के भंडार के प्रदूषित होने की किसी को भी परवाह नहीं है, हर कोई अधिक लाभ कमाने की राह पर है, कोई भी पर्यावरण के विषय में नहीं सोचता लोग कूड़ा-कचरा सीधे नदी में बहा देते थे, धीरे-धीरे ऐसा करने से नदी नाले में परिवर्तित हो जाती है। कुछ पॉलीमर अपशिष्ट इतनी आसानी से सड़ते गलते नहीं हैं यह लंबे समय तक जल में रहते हैं और जल निकायों में रासायनिक परिवर्तन करते हैं।
 
वर्तमान में जल प्रदूषण एक कठिन समस्या बनती जा रही है। बड़ी संख्या में, मानवीय औद्योगिक संस्थानों के स्थापित होने से और उनके अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण सभी मीठे पानी के स्त्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं।
 
जहां एक ओर मानव औद्योगिक क्रांति को अपने विकास के पथ पर उपलब्धि मान रहा है, वहीं दूसरी ओर औद्योगिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण प्राकृतिक संसाधनों को लगातार प्रदूषित कर रहा है। और वह अपने पतन की ओर जा रहा है। आजकल पर्यावरण से संबंधित खतरनाक मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं जो लगातार प्राकृतिक जल संसाधनों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही हैं। मीठे पानी के भंडार के प्रदूषित होने की किसी को भी परवाह नहीं है।  हर कोई अधिक लाभ कमाने की राह पर है, कोई भी पर्यावरण के विषय में नहीं सोचता।  लोग कूड़ा-कचरा सीधे नदी में बहा देते थे, धीरे-धीरे ऐसा करने से नदी नाले में परिवर्तित हो जाती है। कुछ पॉलीमर अपशिष्ट इतनी आसानी से सड़ते गलते नहीं होते हैं यह लंबे समय तक पानी में रहते हैं और जल निकायों में रासायनिक परिवर्तन करते हैं।


== '''जल प्रदूषण के दुष्परिणाम''' ==
== '''जल प्रदूषण के दुष्परिणाम''' ==
अनुचित पेयजल का उपयोग करने से हैजा, दस्त, पेचिश, टाइफाइड विभिन्न सूक्ष्मजीवी रोग हो सकते हैं।  संक्रमित पानी का उपयोग करने से से हेपेटाइटिस ए, और पोलियो जैसे जल संचरण रोग हो सकते हैं।  शहरी क्षेत्रों का अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक क्षेत्र अपने अनुपचारित अपशिष्ट उपोत्पादों द्वारा पानी को बहुत अधिक प्रदूषित करते हैं।  कृषि रसायन भी जल संसाधनों को प्रदूषित करते हैं।  भूजल भंडार में कई खतरनाक रसायन मिल जाते हैं।  As, Pb जैसे कई भारी धातु के कण भी पीने के पानी में घुल जाते हैं जो कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकते हैं।  इसका मतलब है कि करोड़ों लोगों का पीने का पानी खतरनाक रूप से दूषित है।
अनुचित पेयजल का उपयोग करने से हैजा, दस्त, पेचिश, टाइफाइड विभिन्न सूक्ष्मजीवी रोग हो सकते हैं। संक्रमित जल का उपयोग करने से हेपेटाइटिस ए, और पोलियो जैसे जल संचरण रोग हो सकते हैं। शहरी क्षेत्रों का अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक क्षेत्र अपने अनुपचारित अपशिष्ट उपोत्पादों द्वारा जल को बहुत अधिक प्रदूषित करते हैं। कृषि रसायन भी जल संसाधनों को प्रदूषित करते हैं, भूजल भंडार में कई खतरनाक रसायन मिल जाते हैं।  As, Pb जैसे कई भारी धातु के कण भी पीने के जल में घुल जाते हैं जो कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकते हैं। इसका मतलब है कि करोड़ों लोगों का पीने का जल खतरनाक रूप से दूषित है। केवल भूमि ही नही बल्कि समुद्र भी मानव द्वारा प्रदूषित हो रहा है। कई देशों में लोग अपना कचरा सीधे समुद्र और महासागरों में फेंक देते हैं, उस कचरे में भारी धातु रासायनिक यौगिक, एकल उपयोग वाली पॉलिथीन, पॉलिमर उत्पाद जैसे बोतल टेप रस्सी आदि होते हैं और समुद्री जीवों को इस कचरे के बारे में पता नहीं होता है इसलिए वे गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और बीमार हो जाते हैं या मर जाते हैं। ऐसा करने से समुद्र तट पर मछली पकड़ने के व्यवसाय और पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम अपने भोजन के रूप में मछली को पसंद करते हैं, लेकिन पकड़ी गई मछलियों में, हम उनके शरीर में वही गैर-बायोडिग्रेडेबल विषाक्त रसायन पाते हैं, जिन्हें हम समुद्र में छोड़ देते हैं। समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण अधिकांश समुद्री तटों पर शैवाल के धब्बे पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं।  इसके कारण जल में ऑक्सीजन का स्तर कम होता है। यह समुद्र के जीवमंडल के निरंतर समाप्त होने का भी संकेत देता है।  इसे देखकर कई देशों की सरकारों ने इस प्रकार के प्रदूषण के खिलाफ सख्त कानून व दिशानिर्देश  बनाए, ताकि प्राकृतिक जलस्रोतों को कोई नुकसान न पहुंचाए। हमें इन संसाधनों को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है, जब हमने बनाया ही नहीं तो हम इन्हें नष्ट कैसे कर सकते हैं, हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे।
 
केवल भूमि बल्कि समुद्र भी मानव द्वारा प्रदूषित हो रहा है। कई देशों में लोग अपना कचरा सीधे समुद्र और महासागरों में फेंक देते हैं।  उस कचरे में भारी धातु रासायनिक यौगिक, एकल उपयोग वाली पॉलिथीन, पॉलिमर उत्पाद जैसे बोतल टेप रस्सी आदि होते हैं और समुद्री जीवों को इस कचरे के बारे में पता नहीं होता है इसलिए वे गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और बीमार हो जाते हैं या मर जाते हैं। ऐसा करने से समुद्र तट पर मछली पकड़ने के व्यवसाय और पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम अपने भोजन के रूप में मछली को पसंद करते हैं, लेकिन पकड़ी गई मछलियों में, हम उनके शरीर में वही गैर-बायोडिग्रेडेबल विषाक्त रसायन पाते हैं, जिन्हें हम समुद्र में छोड़ देते हैं। समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण अधिकांश समुद्री तटों पर शैवाल के धब्बे पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं।  इसके कारण पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम होता है। यह समुद्र के जीवमंडल के निरंतर समाप्त होने का भी संकेत देता है।  इसे देखकर कई देशों की सरकारों ने इस प्रकार के प्रदूषण के खिलाफ सख्त कानून व दिशानिर्देश  बनाए। ताकि प्राकृतिक जलस्रोतों को कोई नुकसान न पहुंचाए, हमें इन संसाधनों को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है, जब हमने बनाया ही नहीं तो हम इन्हें नष्ट कैसे कर सकते हैं।  हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे।


== '''जल प्रदूषण के कारक''' ==
== '''जल प्रदूषण के कारक''' ==
Line 22: Line 16:
* तालाबों और झीलों का सुपोषण '''(Eutrophication)''' भी जल प्रदूषण होता है।  यह जल निकाय में पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदाई है। कभी-कभी यह संपूर्ण जलस्रोत को ख़त्म कर देता है।
* तालाबों और झीलों का सुपोषण '''(Eutrophication)''' भी जल प्रदूषण होता है।  यह जल निकाय में पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदाई है। कभी-कभी यह संपूर्ण जलस्रोत को ख़त्म कर देता है।


* '''रासायनिक खेती''' ताजे पानी को प्रदूषित कर सकती है क्योंकि मिट्टी द्वारा अवशोषित कीटनाशक और उर्वरक भूजल सामग्री को अशुद्ध कर देते हैं।
* '''रासायनिक खेती''' ताजे जल को प्रदूषित कर सकती है क्योंकि मिट्टी द्वारा अवशोषित कीटनाशक और उर्वरक भूजल सामग्री को अशुद्ध कर देते हैं।


* जल निकाय में सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि जल निकाय को भी प्रदूषित करती है।  इस प्रकार के पानी को पीने के लिए उपयोग करने से मनुष्य में टाइफाइड जैसी कई बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं।  सूक्ष्मजीव झीलों और तालाबों जैसे जल निकायों में '''ऑक्सीजन स्तर''' भी '''कम''' कर देते हैं।
* जल निकाय में सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि जल निकाय को भी प्रदूषित करती है।  इस प्रकार के जल को पीने के लिए उपयोग करने से मनुष्य में टाइफाइड जैसी कई बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं।  सूक्ष्मजीव झीलों और तालाबों जैसे जल निकायों में '''ऑक्सीजन स्तर''' भी '''कम''' कर देते हैं।


== '''जल प्रदूषण की रोकथाम''' ==
== '''जल प्रदूषण की रोकथाम''' ==
Line 31: Line 25:
* नदी, तालाब और झीलों के तट पर कपड़े और अन्य चीजें धोने के लिए सर्फ या डिटर्जेंट का उपयोग न करें। 
* नदी, तालाब और झीलों के तट पर कपड़े और अन्य चीजें धोने के लिए सर्फ या डिटर्जेंट का उपयोग न करें। 


* प्लास्टिक का उपयोग कम करें, जल निकायों में कचरा न फेंकें, यह पानी के प्रवाह को बाधित कर सकता है जो पानी में रोगाणु पैदा करता है।
* प्लास्टिक का उपयोग कम करें, जल निकायों में कचरा न फेंकें, यह जल के प्रवाह को बाधित कर सकता है जो जल में रोगाणु पैदा करता है।


* सीवेज अनुपचारित अपशिष्ट को पानी में न बहाएं।  क्योंकि यह पानी में सूक्ष्मजीवी वृद्धि को उत्पन्न करके शुद्ध पानी को खराब कर देता है। 
* सीवेज अनुपचारित अपशिष्ट को जल में न बहाएं।  क्योंकि यह जल में सूक्ष्मजीवी वृद्धि को उत्पन्न करके शुद्ध जल को खराब कर देता है। 


* औद्योगिक अनुपचारित कचरे को सीधे पानी में न प्रवाहित करें अर्थात औद्योगिक कचरे को जल निकायों में छोड़ने के बाद पहले उसका उपचार किया जाना चाहिए। यहां एक उदाहरण यमुना नदी है जिसका पानी औद्योगिक कचरे के प्रवाह के कारण साबुन जैसा हो गया और सतह पर झाग से ढक गया।
* औद्योगिक अनुपचारित कचरे को सीधे जल में न प्रवाहित करें अर्थात औद्योगिक कचरे को जल निकायों में छोड़ने के बाद पहले उसका उपचार किया जाना चाहिए। यहां एक उदाहरण यमुना नदी है जिसका जल औद्योगिक कचरे के प्रवाह के कारण साबुन जैसा हो गया और सतह पर झाग से ढक गया।


* कीटनाशकों, शाकनाशी, उर्वरक आदि का उपयोग कम से कम करें।  क्योंकि यह किसी न किसी तरह भूजल भण्डार में मिलकर उन्हें प्रदूषित कर देता है।  जब भारी बारिश के कारण यह जलाशय तालाबों जैसे निचले स्तर के क्षेत्रों में प्रवाहित होता है, वहां एकत्र होता है और उत्पोषण का कारण बनता है। 
* कीटनाशकों, शाकनाशी, उर्वरक आदि का उपयोग कम से कम करें।  क्योंकि यह किसी न किसी तरह भूजल भण्डार में मिलकर उन्हें प्रदूषित कर देता है।  जब भारी बारिश के कारण यह जलाशय तालाबों जैसे निचले स्तर के क्षेत्रों में प्रवाहित होता है, वहां एकत्र होता है और उत्पोषण का कारण बनता है। 


* जल निकायों में पोषण प्रदूषक न डालें, इससे जल निकाय में फाइटोप्लांकटन की वृद्धि बढ़ जाती है जिससे पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है।
* जल निकायों में पोषण प्रदूषक न डालें, इससे जल निकाय में फाइटोप्लांकटन की वृद्धि बढ़ जाती है जिससे जल में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है।

Revision as of 12:30, 25 September 2023

मानव गतिविधियों या हानिकारक सूक्ष्म जीवो की वृद्धि के कारण ताजे जल के स्रोतों का विनाश जल प्रदूषण है। यह जल को पीने, खाना पकाने, सफाई, तैराकी के लिए अनुपयोगी बना देता है। हमारी पृथ्वी पर महासागर के रूप में बड़े पैमाने पर जल उपस्थित है। पृथ्वी की सतह का लगभग 70% भाग महासागर से ढका हुआ है। महासागरों में पृथ्वी का लगभग 96.5% जल उपस्थित है, 2% जल ग्लेशियरों के रूप में है, पृथ्वी पर केवल 1.5% जल ही उपयोग योग्य है जो हमें नदी, तालाब, झील, झरने, वर्षा और भूमिगत जल भंडार से मिलता है। इस जल को मृदु जल कहा जाता है क्योंकि यह पीने और उपयोग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। समुद्री जल पीने व उपयोग के लायक नहीं है, चूँकि खारे जल में नमक और खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में होते हैं, इसलिए इसे कठोर जल कहा जाता है।

वर्तमान में जल प्रदूषण एक कठिन समस्या बनती जा रही है। बड़ी संख्या में, मानवीय औद्योगिक संस्थानों के स्थापित होने से और उनके अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण सभी मीठे जल के स्त्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं।

जहां एक ओर मानव औद्योगिक क्रांति को अपने विकास के पथ पर उपलब्धि मान रहा है, वहीं दूसरी ओर औद्योगिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन के कारण प्राकृतिक संसाधनों को लगातार प्रदूषित कर रहा है और वह अपने पतन की ओर जा रहा है। आजकल पर्यावरण से संबंधित खतरनाक मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं जो लगातार प्राकृतिक जल संसाधनों को बुरी तरह प्रदूषित कर रही हैं। मीठे जल के भंडार के प्रदूषित होने की किसी को भी परवाह नहीं है, हर कोई अधिक लाभ कमाने की राह पर है, कोई भी पर्यावरण के विषय में नहीं सोचता लोग कूड़ा-कचरा सीधे नदी में बहा देते थे, धीरे-धीरे ऐसा करने से नदी नाले में परिवर्तित हो जाती है। कुछ पॉलीमर अपशिष्ट इतनी आसानी से सड़ते गलते नहीं हैं यह लंबे समय तक जल में रहते हैं और जल निकायों में रासायनिक परिवर्तन करते हैं।

जल प्रदूषण के दुष्परिणाम

अनुचित पेयजल का उपयोग करने से हैजा, दस्त, पेचिश, टाइफाइड विभिन्न सूक्ष्मजीवी रोग हो सकते हैं। संक्रमित जल का उपयोग करने से हेपेटाइटिस ए, और पोलियो जैसे जल संचरण रोग हो सकते हैं। शहरी क्षेत्रों का अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक क्षेत्र अपने अनुपचारित अपशिष्ट उपोत्पादों द्वारा जल को बहुत अधिक प्रदूषित करते हैं। कृषि रसायन भी जल संसाधनों को प्रदूषित करते हैं, भूजल भंडार में कई खतरनाक रसायन मिल जाते हैं।  As, Pb जैसे कई भारी धातु के कण भी पीने के जल में घुल जाते हैं जो कैंसर जैसी बीमारी का कारण बन सकते हैं। इसका मतलब है कि करोड़ों लोगों का पीने का जल खतरनाक रूप से दूषित है। केवल भूमि ही नही बल्कि समुद्र भी मानव द्वारा प्रदूषित हो रहा है। कई देशों में लोग अपना कचरा सीधे समुद्र और महासागरों में फेंक देते हैं, उस कचरे में भारी धातु रासायनिक यौगिक, एकल उपयोग वाली पॉलिथीन, पॉलिमर उत्पाद जैसे बोतल टेप रस्सी आदि होते हैं और समुद्री जीवों को इस कचरे के बारे में पता नहीं होता है इसलिए वे गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और बीमार हो जाते हैं या मर जाते हैं। ऐसा करने से समुद्र तट पर मछली पकड़ने के व्यवसाय और पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम अपने भोजन के रूप में मछली को पसंद करते हैं, लेकिन पकड़ी गई मछलियों में, हम उनके शरीर में वही गैर-बायोडिग्रेडेबल विषाक्त रसायन पाते हैं, जिन्हें हम समुद्र में छोड़ देते हैं। समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के कारण अधिकांश समुद्री तटों पर शैवाल के धब्बे पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसके कारण जल में ऑक्सीजन का स्तर कम होता है। यह समुद्र के जीवमंडल के निरंतर समाप्त होने का भी संकेत देता है। इसे देखकर कई देशों की सरकारों ने इस प्रकार के प्रदूषण के खिलाफ सख्त कानून व दिशानिर्देश बनाए, ताकि प्राकृतिक जलस्रोतों को कोई नुकसान न पहुंचाए। हमें इन संसाधनों को बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है, जब हमने बनाया ही नहीं तो हम इन्हें नष्ट कैसे कर सकते हैं, हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे।

जल प्रदूषण के कारक

  • ऐसे रसायनों का अत्यधिक उपयोग जिनमें भारी धातु कण होती हैं, मिट्टी में समा जाती हैं और भूजल में मिल जाती हैं, जिससे भूजल दूषित हो जाता है। भारी धातु कण कैंसरजन भी होते हैं।
  • सीवेज या औद्योगिक कचरे को बिना उपचारित किए सीधे नदियों में प्रवाहित करना। यह इस समय जल प्रदूषण का मुख्य कारण है। क्योंकि यह बड़ी मात्रा में जल संसाधनों को प्रदूषित व नष्ट कर रहा है।
  • तालाबों और झीलों का सुपोषण (Eutrophication) भी जल प्रदूषण होता है।  यह जल निकाय में पौधों की वृद्धि के लिए उत्तरदाई है। कभी-कभी यह संपूर्ण जलस्रोत को ख़त्म कर देता है।
  • रासायनिक खेती ताजे जल को प्रदूषित कर सकती है क्योंकि मिट्टी द्वारा अवशोषित कीटनाशक और उर्वरक भूजल सामग्री को अशुद्ध कर देते हैं।
  • जल निकाय में सूक्ष्मजीवियों की वृद्धि जल निकाय को भी प्रदूषित करती है।  इस प्रकार के जल को पीने के लिए उपयोग करने से मनुष्य में टाइफाइड जैसी कई बीमारियाँ पैदा हो सकती हैं।  सूक्ष्मजीव झीलों और तालाबों जैसे जल निकायों में ऑक्सीजन स्तर भी कम कर देते हैं।

जल प्रदूषण की रोकथाम

इन उपायों द्वारा जल प्रदूषण की रोकथाम की जा सकती है। 

  • नदी, तालाब और झीलों के तट पर कपड़े और अन्य चीजें धोने के लिए सर्फ या डिटर्जेंट का उपयोग न करें। 
  • प्लास्टिक का उपयोग कम करें, जल निकायों में कचरा न फेंकें, यह जल के प्रवाह को बाधित कर सकता है जो जल में रोगाणु पैदा करता है।
  • सीवेज अनुपचारित अपशिष्ट को जल में न बहाएं।  क्योंकि यह जल में सूक्ष्मजीवी वृद्धि को उत्पन्न करके शुद्ध जल को खराब कर देता है। 
  • औद्योगिक अनुपचारित कचरे को सीधे जल में न प्रवाहित करें अर्थात औद्योगिक कचरे को जल निकायों में छोड़ने के बाद पहले उसका उपचार किया जाना चाहिए। यहां एक उदाहरण यमुना नदी है जिसका जल औद्योगिक कचरे के प्रवाह के कारण साबुन जैसा हो गया और सतह पर झाग से ढक गया।
  • कीटनाशकों, शाकनाशी, उर्वरक आदि का उपयोग कम से कम करें।  क्योंकि यह किसी न किसी तरह भूजल भण्डार में मिलकर उन्हें प्रदूषित कर देता है।  जब भारी बारिश के कारण यह जलाशय तालाबों जैसे निचले स्तर के क्षेत्रों में प्रवाहित होता है, वहां एकत्र होता है और उत्पोषण का कारण बनता है। 
  • जल निकायों में पोषण प्रदूषक न डालें, इससे जल निकाय में फाइटोप्लांकटन की वृद्धि बढ़ जाती है जिससे जल में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है।