भूकेंद्री मॉडल: Difference between revisions
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भूकेंद्री प्रतिरूप, एक प्राचीन खगोलीय प्रतिरूप है, जो केंद्र में पृथ्वी के साथ आकाशीय पिंडों, विशेष रूप से सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और सितारों की गति की व्याख्या करता है। | भूकेंद्री मॉडल (प्रतिरूप), एक प्राचीन खगोलीय प्रतिरूप है, जो केंद्र में पृथ्वी के साथ आकाशीय पिंडों, विशेष रूप से सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और सितारों की गति की व्याख्या करता है। सदियों तक यह मॉडल (प्रतिरूप), व्यापक रूप से स्वीकार्य रहा । अंततः,यह सिद्धांत, बहाय अंतरिक्ष की एक अन्यत्र विवेचना,जिसे आज के दौर में सूर्य-केंद्रीय सिद्धांत मॉडल (प्रतिरूप) के रूप में जाना जाता है, द्वारा प्रतिस्थापित कर दीया गया। हाँलाकि यह लेख भूकेंद्री मॉडल (प्रतिरूप), के बारे में है। | ||
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यह प्रतिरूप अरस्तू और टॉलेमी जैसे प्राचीन यूनानी खगोलविदों द्वारा विकसित किया गया था और कई शताब्दियों तक विद्वानों और खगोलविदों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था। इसने आकाशीय पिंडों की प्रेक्षित गतियों के लिए उचित स्पष्टीकरण प्रदान किया और उनकी स्थिति का यथोचित पूर्वानुमान लगाया। | यह प्रतिरूप अरस्तू और टॉलेमी जैसे प्राचीन यूनानी खगोलविदों द्वारा विकसित किया गया था और कई शताब्दियों तक विद्वानों और खगोलविदों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था। इसने आकाशीय पिंडों की प्रेक्षित गतियों के लिए उचित स्पष्टीकरण प्रदान किया और उनकी स्थिति का यथोचित पूर्वानुमान लगाया। | ||
हालाँकि, जैसे-जैसे अवलोकन और वैज्ञानिक सोच में प्रगति हुई, खगोलविदों ने भूकेन्द्रित प्रतिरूप की सटीकता पर प्रश्न उठाना | हालाँकि, जैसे-जैसे अवलोकन और वैज्ञानिक सोच में प्रगति हुई, खगोलविदों ने भूकेन्द्रित प्रतिरूप की सटीकता पर प्रश्न उठाना आरंभ कर दिया। उन्होंने कुछ विसंगतियाँ और जटिलताएँ देखीं जिनका प्रतिरूप अनुमान नहीं लगा सका, जैसे प्रतिगामी गति (रात के आकाश में ग्रहों की स्पष्ट पिछड़ी गति)। | ||
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16वीं शताब्दी में, निकोलस कोपरनिकस ने एक अलग प्रतिरूप प्रस्तावित किया, जिसे सूर्य केंद्रीय सिद्धांत प्रतिरूप कहा जाता है, जिसने सूर्य को सौर मंडल के केंद्र में रखा। इस प्रतिरूप ने ग्रहों की प्रतिगामी गति सहित आकाशीय पिंडों की गति के लिए एक सरल और अधिक सटीक व्याख्या प्रदान की। | 16वीं शताब्दी में, निकोलस कोपरनिकस ने एक अलग प्रतिरूप प्रस्तावित किया, जिसे सूर्य केंद्रीय सिद्धांत प्रतिरूप कहा जाता है, जिसने सूर्य को सौर मंडल के केंद्र में रखा। इस प्रतिरूप ने ग्रहों की प्रतिगामी गति सहित आकाशीय पिंडों की गति के लिए एक सरल और अधिक सटीक व्याख्या प्रदान की। | ||
हेलिओसेंट्रिक प्रतिरूप की स्वीकृति ने अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन में नवीन शोध करने की सुविधा प्रदान कर दी है । | यहाँ ये जान लेना आवायशक है की सूर्य-केन्द्रीय (हेलिओसेंट्रिक) प्रतिरूप की स्वीकृति ने अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन में नवीन शोध करने की सुविधा प्रदान कर दी है,परंतु भूकेंद्री प्रतिरूप,जिसका बोला बाला लगभग एक हजार वर्ष तक रहा, का निश्चित रूप से प्रतिरोध आज के युग में साधारण स लगता है, क्यूंकी आज के विज्ञान युग में तकनीक के विकास से अंतरिक्षीय प्रेक्षण की सुविधा ने इस अवधारणा को मूल रूप से प्रतिस्थापित कर दीया है । | ||
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Geocentric model
भूकेंद्री मॉडल (प्रतिरूप), एक प्राचीन खगोलीय प्रतिरूप है, जो केंद्र में पृथ्वी के साथ आकाशीय पिंडों, विशेष रूप से सूर्य, चंद्रमा, ग्रहों और सितारों की गति की व्याख्या करता है। सदियों तक यह मॉडल (प्रतिरूप), व्यापक रूप से स्वीकार्य रहा । अंततः,यह सिद्धांत, बहाय अंतरिक्ष की एक अन्यत्र विवेचना,जिसे आज के दौर में सूर्य-केंद्रीय सिद्धांत मॉडल (प्रतिरूप) के रूप में जाना जाता है, द्वारा प्रतिस्थापित कर दीया गया। हाँलाकि यह लेख भूकेंद्री मॉडल (प्रतिरूप), के बारे में है।
भूकेंद्री प्रतिरूप समझने के लिए
इस मूल विचार,कि प्रारंभिक दौर के खगोलविदों ने आकाश में आकाशीय पिंडों की गति को देखा उनके विन्यास (पैटर्न) को समझने का प्रयास कीया एवं यह प्रयास है,पर भी विचार कीया।
भूकेंद्री प्रतिरूप के पक्षधरों का यह मानना था कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र में स्थिर है, और अन्य सभी खगोलीय पिंड इसके चारों ओर गोलाकार कक्षाओं में घूमते हैं। उनका मानना था कि पृथ्वी एक स्थिर बिंदु है और बाकी सभी अन्य वस्तुएं इसके चारों ओर घूमती हैं ।
इस प्रतिरूप के अनुसार
इस प्रतिरूप के अनुसार सूर्य, चंद्रमा, ग्रह (जैसे मंगल, बृहस्पति और शनि), और सितारों को "एपिसाइकिल" नामक पारदर्शी क्षेत्रों से जुड़ा हुआ माना जाता था जो पृथ्वी के चारों ओर घूमते थे। सबसे बाहरी क्षेत्र, जिसे "आकाशीय क्षेत्र" के रूप में जाना जाता है, में सभी तारे समाहित थे।
यह प्रतिरूप अरस्तू और टॉलेमी जैसे प्राचीन यूनानी खगोलविदों द्वारा विकसित किया गया था और कई शताब्दियों तक विद्वानों और खगोलविदों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था। इसने आकाशीय पिंडों की प्रेक्षित गतियों के लिए उचित स्पष्टीकरण प्रदान किया और उनकी स्थिति का यथोचित पूर्वानुमान लगाया।
हालाँकि, जैसे-जैसे अवलोकन और वैज्ञानिक सोच में प्रगति हुई, खगोलविदों ने भूकेन्द्रित प्रतिरूप की सटीकता पर प्रश्न उठाना आरंभ कर दिया। उन्होंने कुछ विसंगतियाँ और जटिलताएँ देखीं जिनका प्रतिरूप अनुमान नहीं लगा सका, जैसे प्रतिगामी गति (रात के आकाश में ग्रहों की स्पष्ट पिछड़ी गति)।
शुक्र के चरण व सूर्य केंद्रीय सिद्धांत प्रतिरूप का उद्घाटन
जैसे ही यह अपनी कक्षा के चारों ओर घूमता है, शुक्र चंद्रमा की तरह चरण प्रदर्शित करता है: जब यह पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है तो यह नया होता है, जब यह सूर्य के विपरीत दिशा में होता है तो छोटा और पूर्ण होता है, और जब यह आधा चरण होता है सूर्य से अधिकतम दीर्घता पर है। शुक्र तब सबसे अधिक चमकीला होता है जब यह एक बड़ा लेकिन पतला अर्धचंद्र होता है और पृथ्वी के बहुत करीब होता है। 1610 में गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से शुक्र ग्रह की कला-पक्षों को देखा।
अंततः कोपरनिकस के द्वारा सुझाए सूर्य केंद्रीय सिद्धांत प्रतिरूप की स्वीकृति ने अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन में नई गति दी ।
संक्षेप में
16वीं शताब्दी में, निकोलस कोपरनिकस ने एक अलग प्रतिरूप प्रस्तावित किया, जिसे सूर्य केंद्रीय सिद्धांत प्रतिरूप कहा जाता है, जिसने सूर्य को सौर मंडल के केंद्र में रखा। इस प्रतिरूप ने ग्रहों की प्रतिगामी गति सहित आकाशीय पिंडों की गति के लिए एक सरल और अधिक सटीक व्याख्या प्रदान की।
यहाँ ये जान लेना आवायशक है की सूर्य-केन्द्रीय (हेलिओसेंट्रिक) प्रतिरूप की स्वीकृति ने अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन में नवीन शोध करने की सुविधा प्रदान कर दी है,परंतु भूकेंद्री प्रतिरूप,जिसका बोला बाला लगभग एक हजार वर्ष तक रहा, का निश्चित रूप से प्रतिरोध आज के युग में साधारण स लगता है, क्यूंकी आज के विज्ञान युग में तकनीक के विकास से अंतरिक्षीय प्रेक्षण की सुविधा ने इस अवधारणा को मूल रूप से प्रतिस्थापित कर दीया है ।