प्रत्यास्थ सीमा: Difference between revisions

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साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत हो जाती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकार बदल सकता है और बलों को हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप में वापस आ सकता है। पदार्थों में  प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो जाते हैं, लेकिन उन पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री के तनाव मुक्त होने पर ऐसी वस्तुएं अपनी मूल स्थिति आ जाती हैं।
साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत हो जाती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकार बदल सकता है और बलों को हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप में वापस आ सकता है। पदार्थों में  प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो जाते हैं, लेकिन उन पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री के तनाव मुक्त होने पर ऐसी वस्तुएं अपनी मूल स्थिति आ जाती हैं।


हालाँकि, यदि लागू तनाव या बल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो सामग्री प्लास्टिक विरूपण से गुजर जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था शामिल होती है, जिसके परिणामस्वरूप बलों को हटा दिए जाने के बाद भी आकार या आकार में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।
हालाँकि, यदि आरोपित तनाव या प्रतिबल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो सामग्री प्लास्टिक विरूपण की अवस्था में आ जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था संमलित होती है । ऐसी अवस्था में  परिणामी बलों के हट जाने पर भी पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री  के आकार या आकृति  में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।


इंजीनियरिंग और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। यह किसी सामग्री के लिए सुरक्षित परिचालन सीमा निर्धारित करने में मदद करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव कर सकती है। इंजीनियर संरचनाओं और घटकों को डिजाइन करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं जो इस सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकते हैं।
इंजीनियरिंग और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। यह किसी सामग्री के लिए सुरक्षित परिचालन सीमा निर्धारित करने में मदद करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव कर सकती है। इंजीनियर संरचनाओं और घटकों को डिजाइन करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं जो इस सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकते हैं।

Revision as of 13:43, 9 April 2024

elastic limit

प्रत्यास्थ सीमा, जिसे लब्ध बिंदु के रूप में भी जाना जाता है, पदार्थों की एक वह संपत्ति है, जो तनाव या बल को परिभाषित करती है । पदार्थों (अथवा पदार्थों से बनी,सामग्रियों,जैसे धातु अथवा मिश्र धातु) के अभिकल्पन में,तनाव या बल के आरोपण पर भी ,स्थायी विरूपण रहित संयोजन ,के सही उपयोग से,इस प्रकार की वस्तुओं के,अभिकल्पन में प्रत्यास्थ सीमा का वयवाहरिक उपयोग होता है । यह वह बिंदु है जिस पर प्रत्यास्थ विरूपण प्लास्टिक विरूपण में परिवर्तित हो जाता है।

आरेखीय निरूपण

मिश्रित पदार्थों से बनी हुई अथवा अ-मिश्रित शुद्ध पदार्थों से बनी सामग्रियों द्वारा प्रदर्शित तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजनों में उत्पन्न वक्रों की विस्तृत विविधता के कारण लब्ध अवस्था को सटीक रूप से परिभाषित करना,प्रायः कठिन होता है। इसके अतिरिक्त, लब्ध अवस्था को परिभाषित करने की कई संभावनाएं हैं:

अलौह मिश्र धातुओं के तनाव-प्रतिबल के आरेख में वक्रता ,द्वारा विशिष्ट लब्ध व्यवहार का चित्रत वर्णन । यहाँ तनाव को σ द्वारा इंगित कीया गया है और ε , को तनाव के एक कार्य के रूप में दिखाया गया है ।

साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत हो जाती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकार बदल सकता है और बलों को हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप में वापस आ सकता है। पदार्थों में प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो जाते हैं, लेकिन उन पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री के तनाव मुक्त होने पर ऐसी वस्तुएं अपनी मूल स्थिति आ जाती हैं।

हालाँकि, यदि आरोपित तनाव या प्रतिबल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो सामग्री प्लास्टिक विरूपण की अवस्था में आ जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था संमलित होती है । ऐसी अवस्था में परिणामी बलों के हट जाने पर भी पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री के आकार या आकृति में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।

इंजीनियरिंग और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। यह किसी सामग्री के लिए सुरक्षित परिचालन सीमा निर्धारित करने में मदद करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव कर सकती है। इंजीनियर संरचनाओं और घटकों को डिजाइन करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं जो इस सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकते हैं।

ध्यान देने योग्य

यह ध्यान देने योग्य है कि विभिन्न सामग्रियों की अलग-अलग प्रत्यास्थ सीमाएँ होती हैं। कुछ सामग्रियां, जैसे कि कुछ धातुएं, प्लास्टिक विरूपण से गुजरने से पहले अपेक्षाकृत उच्च तनाव स्तर का सामना कर सकती हैं, जबकि अन्य, जैसे प्लास्टिक, में कम प्रत्यास्थ सीमाएं हो सकती हैं। प्रत्यास्थ सीमा तापमान और तनाव लागू होने की दर जैसे कारकों पर भी निर्भर हो सकती है।