प्रेरणिक प्रभाव: Difference between revisions
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जब कार्बनिक यौगिकों के कार्बन परमाणु और भिन्न विद्युत् ऋणात्मकता वाले परमाणु या समूह की उपस्थिति के कारण होने वाला इलेक्ट्रॉन विस्थापन को प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। यह प्रभाव अणु | [[Category:Vidyalaya Completed]] | ||
जब कार्बनिक यौगिकों के कार्बन [[परमाणु]] और भिन्न विद्युत् ऋणात्मकता वाले परमाणु या समूह की उपस्थिति के कारण होने वाला [[इलेक्ट्रॉन]] विस्थापन को प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। यह प्रभाव अणु में उपस्थित शृंखला के सभी C परमाणुओं में संचरित होता है। यह प्रभाव स्थायी होता है। किन्तु अन्य प्रभावों की तुलना में दुर्बल होता है। इसको एक ऐसे डैश (----) से प्रदर्शत किया जाता है। | |||
जिन परमाणु या समूहों की विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में अधिक होती है, वे ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से दर्शाये जाते हैं तथा जिनकी विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में कम होती है, वे धनात्मक प्रेरणिक (+I) प्रभाव वाले समूह होते हैं। | जिन परमाणु या समूहों की विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में अधिक होती है, वे ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से दर्शाये जाते हैं तथा जिनकी विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में कम होती है, वे धनात्मक प्रेरणिक (+I) प्रभाव वाले समूह होते हैं। एक आक्रमण अभिकर्मक की उपस्थिति में एक आबंधित परमाणुओं में से एक के लिए कई आबंधों के पाई-इलेक्ट्रॉन युग्म के पूर्ण स्थानांतरण को इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव कहा जाता है। | ||
यदि दो समान परमाणुओं के बीच सहसंयोजक बंध बना हो तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं की बीचों-बीच वितरित रहता है। जिसके कारण ध्रुवता उत्पन्न नहीं होती और यौगिक अध्रुवीय हो जाता है। | यदि दो समान परमाणुओं के बीच [[सहसंयोजक बंध]] बना हो तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं की बीचों-बीच वितरित रहता है। जिसके कारण [[ध्रुवता]] उत्पन्न नहीं होती और यौगिक अध्रुवीय हो जाता है। | ||
● "सिग्मा बंध से बंधित इलेक्ट्रॉन युग्म का अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु अथवा समूह की ओर '''विस्थापन प्रेरणिक प्रभाव''' कहलाता है । " | |||
●"सिग्मा बंध के इलेक्ट्रॉनों का एक दिशा में स्थाई '''विस्थापन प्रेरणिक प्रभाव''' कहलाता है । " | |||
● "कार्बन श्रंखला में किसी प्रबल समूह अथवा परमाणु के जुड़ने से सिग्मा बंध का ध्रुवीकरण होना '''प्रेरणिक प्रभाव''' कहलाता है । " | |||
=== उदाहरण === | === उदाहरण === | ||
H-H, Cl-Cl, Br-Br, F-F | H-H, Cl-Cl, Br-Br, F-F | ||
बंध से जुड़े अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋणआवेश उत्पन्न हो जाता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु पर (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धनआवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है। | बंध से जुड़े अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋणआवेश उत्पन्न हो जाता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु पर (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धनआवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है। अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋण आवेश उत्पन्न होता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु जोकि विद्युत धनात्मक परमाणु (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है। | ||
H-F | H-F | ||
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F- अधिक विद्युत ऋणात्मक (प्रबल) | F- अधिक विद्युत ऋणात्मक (प्रबल) | ||
=== | === धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव (+I) === | ||
इसे इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव भी कहते हैं। वे समूह जो कार्बन श्रृंखला को इलेक्ट्रॉन युग्म दान करते हैं , +I समूह कहलाते हैं और ये समूह +I प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इलेक्ट्रॉन दान करने के कारण इन समूहों पर आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है। | इसे इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव भी कहते हैं। वे समूह जो कार्बन श्रृंखला को इलेक्ट्रॉन युग्म दान करते हैं , +I समूह कहलाते हैं और ये समूह +I प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इलेक्ट्रॉन दान करने के कारण इन समूहों पर आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है। | ||
<chem>- CH2-, -NH-, -O-, -COO-, </chem> <chem> -C(CH3)3, -CH(CH3)2, -CH2-CH3, -C(T)3, -C(D)3, -C(H)3, -T, -D, -H </chem> | <chem>- CH2-, -NH-, -O-, -COO-, </chem> <chem> -C(CH3)3, -CH(CH3)2, -CH2-CH3, -C(T)3, -C(D)3, -C(H)3, -T, -D, -H </chem> | ||
जहां: | |||
H- प्रोटियम(1H1) | |||
D-ड्यूटीरियम(1H2) | |||
T - ट्रायटियम (1H3) | |||
=== ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) === | |||
इसे इलेक्ट्रॉन आकर्षी प्रभाव भी कहते हैं। वह समूह अथवा परमाणु जो कार्बन श्रृंखला में सिग्मा बंध के इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर प्रबलता से आकर्षित करता है -I समूह कहलाता है और यह समूह -I प्रभाव उत्पन्न करता है। इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने के कारण इन समूहों पर आंशिक ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है। | |||
<chem>-NF3+, -NR3+, -NH3+, -NO2, -CN, -SO3H, -CHO, -COR, -COOH, -COCl, -CONH2,</chem> <chem> -F, -Cl, -Br, -I, -OR, -OH, -NH2, -C6H5,-CH=CH2,H</chem> | |||
== अभ्यास प्रश्न == | |||
* प्रेरणिक प्रभाव से क्या तात्पर्य है? | |||
* धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव (+I) से आप क्या समझते हैं ? | |||
* ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से आप क्या समझते हैं ? |
Latest revision as of 19:44, 25 May 2024
जब कार्बनिक यौगिकों के कार्बन परमाणु और भिन्न विद्युत् ऋणात्मकता वाले परमाणु या समूह की उपस्थिति के कारण होने वाला इलेक्ट्रॉन विस्थापन को प्रेरणिक प्रभाव कहते हैं। यह प्रभाव अणु में उपस्थित शृंखला के सभी C परमाणुओं में संचरित होता है। यह प्रभाव स्थायी होता है। किन्तु अन्य प्रभावों की तुलना में दुर्बल होता है। इसको एक ऐसे डैश (----) से प्रदर्शत किया जाता है।
जिन परमाणु या समूहों की विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में अधिक होती है, वे ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से दर्शाये जाते हैं तथा जिनकी विद्युत् ऋणात्मकता कार्बन की तुलना में कम होती है, वे धनात्मक प्रेरणिक (+I) प्रभाव वाले समूह होते हैं। एक आक्रमण अभिकर्मक की उपस्थिति में एक आबंधित परमाणुओं में से एक के लिए कई आबंधों के पाई-इलेक्ट्रॉन युग्म के पूर्ण स्थानांतरण को इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव कहा जाता है।
यदि दो समान परमाणुओं के बीच सहसंयोजक बंध बना हो तो साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म दोनों परमाणुओं की बीचों-बीच वितरित रहता है। जिसके कारण ध्रुवता उत्पन्न नहीं होती और यौगिक अध्रुवीय हो जाता है।
● "सिग्मा बंध से बंधित इलेक्ट्रॉन युग्म का अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु अथवा समूह की ओर विस्थापन प्रेरणिक प्रभाव कहलाता है । "
●"सिग्मा बंध के इलेक्ट्रॉनों का एक दिशा में स्थाई विस्थापन प्रेरणिक प्रभाव कहलाता है । "
● "कार्बन श्रंखला में किसी प्रबल समूह अथवा परमाणु के जुड़ने से सिग्मा बंध का ध्रुवीकरण होना प्रेरणिक प्रभाव कहलाता है । "
उदाहरण
H-H, Cl-Cl, Br-Br, F-F
बंध से जुड़े अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋणआवेश उत्पन्न हो जाता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु पर (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धनआवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है। अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु पर आंशिक ऋण आवेश उत्पन्न होता है। जबकि बंध से जुड़े दूसरे परमाणु जोकि विद्युत धनात्मक परमाणु (जिससे इलेक्ट्रॉन युग्म दूर चले गए हैं) इलेक्ट्रॉनों की आंशिक कमी के कारण आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेश उत्पन्न होने के कारण बंध ध्रुवीय हो जाता है।
H-F
H- कम विद्युत ऋणात्मक (दुर्बल)
F- अधिक विद्युत ऋणात्मक (प्रबल)
धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव (+I)
इसे इलेक्ट्रॉन दाता प्रभाव भी कहते हैं। वे समूह जो कार्बन श्रृंखला को इलेक्ट्रॉन युग्म दान करते हैं , +I समूह कहलाते हैं और ये समूह +I प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इलेक्ट्रॉन दान करने के कारण इन समूहों पर आंशिक धन आवेश उत्पन्न हो जाता है।
जहां:
H- प्रोटियम(1H1)
D-ड्यूटीरियम(1H2)
T - ट्रायटियम (1H3)
ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I)
इसे इलेक्ट्रॉन आकर्षी प्रभाव भी कहते हैं। वह समूह अथवा परमाणु जो कार्बन श्रृंखला में सिग्मा बंध के इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर प्रबलता से आकर्षित करता है -I समूह कहलाता है और यह समूह -I प्रभाव उत्पन्न करता है। इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने के कारण इन समूहों पर आंशिक ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है।
अभ्यास प्रश्न
- प्रेरणिक प्रभाव से क्या तात्पर्य है?
- धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव (+I) से आप क्या समझते हैं ?
- ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव (-I) से आप क्या समझते हैं ?