विषमदैशिक: Difference between revisions

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जो पदार्थ सभी दिशाओं में समान गुण दिखाते हैं उन्हें आइसोट्रोपिक (दैशिक) कहा जाता है और जो पदार्थ गुणों में दिशात्मक अंतर दिखाते हैं उन्हें विषमदैशिक कहा जाता है। द्रव और गैस जैसे अनाकार ठोस को आइसोट्रोपिक कहा जाता है क्योंकि भवन घटकों की व्यवस्था यादृच्छिक और अव्यवस्थित होती है। इसलिए सभी दिशाएँ समान हैं और इसलिए सभी दिशाओं में गुण समान हैं। क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विधुतीय प्रतिरोधकता और अपवर्तनांक एक ही क्रिस्टल में भिन्न भिन्न दिशाओं में मापने पर भिन्न भिन्न मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग अलग दिशाओं में कणों की भिन्न व्यवस्था से उत्पन्न होता है।
जो [[पदार्थ]] सभी दिशाओं में समान गुण दिखाते हैं उन्हें आइसोट्रोपिक (दैशिक) कहा जाता है और जो पदार्थ गुणों में दिशात्मक अंतर दिखाते हैं उन्हें विषमदैशिक कहा जाता है। द्रव और गैस जैसे अनाकार ठोस को आइसोट्रोपिक कहा जाता है क्योंकि भवन घटकों की व्यवस्था यादृच्छिक और अव्यवस्थित होती है। इसलिए सभी दिशाएँ समान हैं और इसलिए सभी दिशाओं में गुण समान हैं। [[क्रिस्टलीय ठोस]] विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विधुतीय प्रतिरोधकता और [[अपवर्तनांक(अपवर्तक सूचकांक)|अपवर्तनांक]] एक ही क्रिस्टल में भिन्न भिन्न दिशाओं में मापने पर भिन्न भिन्न मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग अलग दिशाओं में कणों की भिन्न व्यवस्था से उत्पन्न होता है।
 
ठोस अवस्था में कण (अणु, [[आयन]] या परमाणु) बहुत पास पास संकुलित होते हैं। ये प्रबल अंतर-आणविक आकर्षक बलों (संसंजक बलों) द्वारा एक साथ बंधे होते हैं और यादृच्छिक गति नहीं कर सकते। ये निश्चित स्थानों पर रखे जाते हैं और अन्य कणों से घिरे होते हैं। ये ठोस पदार्थों में आणविक गति का केवल एक रूप है, अर्थात् कंपन गति जिसके कारण कण निश्चित स्थिति में घूमते हैं और मिट्टी की सतह को आसानी से नहीं छोड़ सकते हैं। अक्रिस्टलीय ठोस उन ठोस पदार्थों को कहते हैं जिनके परमाणुओं में पर्याप्त दूरी तक कोई सुनिश्चित विन्यास नहीं होता।
==ठोस के रूप==
ठोस आपने दो रूपों पाया जाता है:
*क्रिस्टलीय ठोस
*अक्रिस्टलीय ठोस
===क्रिस्टलीय ठोस===
वे  ठोस पदार्थ जिनमें सभी परमाणु एक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं। उदाहरण के लिए शर्करा,  चीनी, नमक, माइका, एलम,  कॉपर सल्फेट, सल्फेट, कैल्साइट आदि।
 
क्रिस्टलीय ठोस मे प्रत्येक परमाणु अपने चारो और के अन्य परमाणुओ से निश्चित दूरी तथा निश्चित कोणीय स्थिति मे एक निश्चित बिंदु पर स्थित होता है। सूक्ष्म संरचनाओं में अपने कणों (परमाणुओं, आयनों और अणुओं) की क्रमबद्ध व्यवस्था वाले ठोस को क्रिस्टलीय ठोस कहा जाता है।
 
'''उदाहरण'''
 
नमक ([[सोडियम क्लोराइड]] NaCl), सोडियम नाइट्रेट (NaNO<sub>3</sub>)
===क्रिस्टलीय ठोस के गुण :===
(1) क्रिस्टलीय  ठोस में सभी परमाणु एक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते  है ।  
 
(2) इनका [[गलनांक]] निश्चित होता है ।  
 
(3)  यह  विषमदैशिक होते है अर्थात इनके भौतिक गुण, जैसे उष्मीयचालकता, विद्युत चालकता, अपवर्तनांक आदि भिन्न-भिन्न दिशाओ में भिन्न भिन्न होते हैं।
 
(4) क्रिष्टल निर्माण के समय बाहरी सतह भी नियमित क्रम दर्शाती है ।
 
इनका आकार व आयतन निश्चित होता है। ठोस के कण गतिशील नही होते है, बल्कि यह अपने स्थान कम्पन्न करते रहते है तथा इनमे अंतर कण  बल सर्वाधिक पाया जाता है।
==अभ्यास प्रश्न==
*अक्रिस्टलीय ठोस से क्या तात्पर्य है?
*क्रिस्टलीय ठोस एवं अक्रिस्टलीय ठोस में क्या अंतर है?
*अक्रिस्टलीय ठोस की विशेषताएं बताइये।
*विषमदैशिक ठोस से क्या तात्पर्य है?

Latest revision as of 10:56, 30 May 2024

जो पदार्थ सभी दिशाओं में समान गुण दिखाते हैं उन्हें आइसोट्रोपिक (दैशिक) कहा जाता है और जो पदार्थ गुणों में दिशात्मक अंतर दिखाते हैं उन्हें विषमदैशिक कहा जाता है। द्रव और गैस जैसे अनाकार ठोस को आइसोट्रोपिक कहा जाता है क्योंकि भवन घटकों की व्यवस्था यादृच्छिक और अव्यवस्थित होती है। इसलिए सभी दिशाएँ समान हैं और इसलिए सभी दिशाओं में गुण समान हैं। क्रिस्टलीय ठोस विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात उनके कुछ भौतिक गुण जैसे विधुतीय प्रतिरोधकता और अपवर्तनांक एक ही क्रिस्टल में भिन्न भिन्न दिशाओं में मापने पर भिन्न भिन्न मान प्रदर्शित करते हैं। यह अलग अलग दिशाओं में कणों की भिन्न व्यवस्था से उत्पन्न होता है।

ठोस अवस्था में कण (अणु, आयन या परमाणु) बहुत पास पास संकुलित होते हैं। ये प्रबल अंतर-आणविक आकर्षक बलों (संसंजक बलों) द्वारा एक साथ बंधे होते हैं और यादृच्छिक गति नहीं कर सकते। ये निश्चित स्थानों पर रखे जाते हैं और अन्य कणों से घिरे होते हैं। ये ठोस पदार्थों में आणविक गति का केवल एक रूप है, अर्थात् कंपन गति जिसके कारण कण निश्चित स्थिति में घूमते हैं और मिट्टी की सतह को आसानी से नहीं छोड़ सकते हैं। अक्रिस्टलीय ठोस उन ठोस पदार्थों को कहते हैं जिनके परमाणुओं में पर्याप्त दूरी तक कोई सुनिश्चित विन्यास नहीं होता।

ठोस के रूप

ठोस आपने दो रूपों पाया जाता है:

  • क्रिस्टलीय ठोस
  • अक्रिस्टलीय ठोस

क्रिस्टलीय ठोस

वे  ठोस पदार्थ जिनमें सभी परमाणु एक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं। उदाहरण के लिए शर्करा,  चीनी, नमक, माइका, एलम,  कॉपर सल्फेट, सल्फेट, कैल्साइट आदि।

क्रिस्टलीय ठोस मे प्रत्येक परमाणु अपने चारो और के अन्य परमाणुओ से निश्चित दूरी तथा निश्चित कोणीय स्थिति मे एक निश्चित बिंदु पर स्थित होता है। सूक्ष्म संरचनाओं में अपने कणों (परमाणुओं, आयनों और अणुओं) की क्रमबद्ध व्यवस्था वाले ठोस को क्रिस्टलीय ठोस कहा जाता है।

उदाहरण

नमक (सोडियम क्लोराइड NaCl), सोडियम नाइट्रेट (NaNO3)

क्रिस्टलीय ठोस के गुण :

(1) क्रिस्टलीय  ठोस में सभी परमाणु एक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते  है ।  

(2) इनका गलनांक निश्चित होता है ।  

(3)  यह  विषमदैशिक होते है अर्थात इनके भौतिक गुण, जैसे उष्मीयचालकता, विद्युत चालकता, अपवर्तनांक आदि भिन्न-भिन्न दिशाओ में भिन्न भिन्न होते हैं।

(4) क्रिष्टल निर्माण के समय बाहरी सतह भी नियमित क्रम दर्शाती है ।

इनका आकार व आयतन निश्चित होता है। ठोस के कण गतिशील नही होते है, बल्कि यह अपने स्थान कम्पन्न करते रहते है तथा इनमे अंतर कण  बल सर्वाधिक पाया जाता है।

अभ्यास प्रश्न

  • अक्रिस्टलीय ठोस से क्या तात्पर्य है?
  • क्रिस्टलीय ठोस एवं अक्रिस्टलीय ठोस में क्या अंतर है?
  • अक्रिस्टलीय ठोस की विशेषताएं बताइये।
  • विषमदैशिक ठोस से क्या तात्पर्य है?