तत्वों का पृथक्करण: Difference between revisions
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[[Category:अकार्बनिक रसायन]] | अवांछित पदार्थ जैसे क्ले, रेत आदि से [[अयस्क]] का निष्कासन अयस्कों का सांद्रण कहलाता है। सांद्रण की क्रिया से पहले अयस्कों को श्रेणीकृत किया जाता है और इसे उचित प्रकार में तोडा जाता है। तत्वों का पृथक्करण निम्नलिखित को विधियों से किया जाता है: | ||
== गुरत्वीय पृथक्क़रण == | |||
इसे द्रवीय धावन भी कहा जाता है। यह विधि अयस्क तथा गैंग कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अंतर पर निर्भर करता है। अतः इस तरह का सांद्रण गुरत्वीय पृथकरण विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के एक प्रक्रम में चूर्णित अयस्क को जल की धारा में धोया जाता है जिस कारण गैंग के कण हल्के होने के कारण जल के साथ निकलकर बह जाते हैं तथा भारी अयस्क के कण नीचे बैठ जाते हैं। | |||
== चुंबकीय पृथक्करण == | |||
यह विधि उन अयस्कों के सांद्रण के लिए लगाई जाती है जिनमे चुंबकीय गुण होता है। यदि अयस्क या गैंग में कोई भी एक चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित हो सकता है तह चुंबकीय पृथकरण किया जाता है। | |||
उदाहरण लौह अयस्क चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं अतः इनमे से चुंबक की और आकर्षित होने न होने वाली अशुद्धियों को चुंबकीय पृथककरण द्वारा अलग किया जाता है। इस विधि में चूर्णित अयस्क को एक घुमते हुए पटटे पर डालते हैं जो चुंबकीय रोलर पर लगा होता है। चुंबकीय पदार्थ पट्टे की ओर आकर्षित होते हैं और चुंबक के पास गिरते रहते हैं। | |||
== [[फेन प्लवन विधि]] == | |||
धातुओं को उनके अयस्कों से स्वतंत्र और शुद्ध अवस्था में प्राप्त करने की प्रक्रिया को धातुकर्म या धातु का निष्कर्षण कहते हैं तथा इस प्रक्रिया में होने वाली अभिक्रियाएँ [[धातुकर्म]] कहलाती हैं। | |||
===धातुओं का निष्कर्षण=== | |||
भूमिगत गहराई में दबे धातु के अयस्कों को निकालने की प्रक्रिया को खनन कहा जाता है। अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण करने से हमे धातु प्राप्त होती है जिससे हम उसे अयस्क के रूप में प्रयोग करते हैं। अयस्क उन तैयार धातुओं से बहुत भिन्न होते हैं जिन्हें हम इमारतों और पुलों में देखते हैं। अयस्कों में उपस्थित धातु के आलावा जो भी अशुद्धियाँ होती हैं उन्हें गैंग कहा जाता है। धातुओं का निष्कर्षण और उनका पृथक्करण कुछ प्रमुख चरणों में होता है: | |||
*अयस्क की सांद्रता | |||
*अयस्क से धातु का पृथक्करण | |||
*धातु का शुद्धिकरण | |||
===अयस्क की सांद्रता=== | |||
फेन प्लवन विधि का उपयोग सल्फाइड अयस्क के सांद्रण में प्रयुक्त की जाती है। फेन प्लवन विधि में बारीक पिसे हुए सल्फाइड अयस्क को जल तथा चीण के तेल में मिलाकर टैंक में मिलाते हैं, बारीक पिसे हुए अयस्क को जल तथा तेल के मिश्रण में डालकर ऊपर से गर्म वायु प्रवाहित की जाती है। अशुद्ध अयस्क तेल के साथ झाग (फेन) बनाकर ऊपर तैरने लगता है जिससे शुद्ध अयस्क झाग के रूप में ऊपर आ जाता है और अशुद्धियाँ तली में बैठ जाती हैं। | |||
सिल्वर ग्लांस - Ag<sub>2</sub>S | |||
कॉपर ग्लांस - Cu<sub>2</sub>S | |||
कॉपर पाइराइट - CuFeS2 | |||
गैलना - PbS | |||
===उदाहरण=== | |||
ज़िंक सल्फाइड में NaCN अवनमक के रूप में प्रयोग किया जाता है जिससे एक संकर यौगिक प्राप्त होता है यह फेन बंनने से रोकता है। | |||
<chem>ZnS + NaCN -> Na2[Zn(CN)4] + Na2S</chem> | |||
== निक्षालन == | |||
'''''[[निक्षालन]]''''' ठोस पदार्थ से किसी विशेष पदार्थ का निष्कर्षण करना या निकालने की प्रक्रिया है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मिट्टी में विद्यमान घुलनशील संघटक जल में घुल जाते हैं और रिसते हुए जल के साथ मिट्टी में से होकर नीचे के स्तरों में पहुँच जाते हैं। निक्षालन रासायनिक विघटन द्वारा अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण है, और यह अधिकांश हाइड्रोमेटलर्जिकल निष्कर्षण प्रक्रियाओं का आधार बनती है। निक्षालन से धातु की अधिकतम मात्रा प्राप्त की जाती है। यह इकाई संचालन धातु निष्कर्षण की एक स्थापित और अपेक्षाकृत सफल विधि है, यह उच्च श्रेणी के निष्कर्षण में प्रयुक्त की जाती है। | |||
भूविज्ञान में, निक्षालन के परिणामस्वरूप मिट्टी की ऊपरी परत से नमी के रिसने से विलेय यौगिकों और कोलाइड का नुकसान होता है। | |||
===मिट्टी की निक्षालन=== | |||
निक्षालन तब होती है जब अतिरिक्त जल निकासी के माध्यम से जल में घुलनशील पोषक तत्वों को मिट्टी से बाहर निकाल देता है। कृषि के लिए निक्षालन एक पर्यावरणीय समस्या है, चाहे रासायनिक-भारी उर्वरक या रसायन बहकर जल निकायों में पहुंच जाएं। एक घुलनशील पदार्थ को एक द्रव से दूसरे द्रव द्वारा पहले के साथ अमिश्रणीय रूप से घोल दिया जाता है। निक्षालन और विलायक निष्कर्षण दोनों को प्रायः निष्कर्षण कहा जाता है। निक्षालन को ठोस-द्रव निष्कर्षण, निक्षालन, धुलाई आदि के रूप में भी जाना जाता है। | |||
== सांद्रित अयस्कों से अशोधित धातुओं का निष्कर्षण == | |||
सांद्रित अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण दो मुख्य पदों में होता है। | |||
=== ऑक्सीइड में परिवर्तन === | |||
* निस्तापन | |||
* भर्जन | |||
== निस्तापन == | |||
[[सक्रियता श्रेणी]] के मध्य में स्थित धातुएं: जैसे - आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाए जाती है। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है इसलिए [[अपचयन]] से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है। ''कार्बोनेट अयस्क को वायु की अनुपस्थित में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते हैं।'' निस्तापन हमेशा परावरतनी भट्टी में किया जाता है। | |||
ज़िंक के निस्तापन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है: | |||
<chem>ZnCO3(s) -> ZnO(s) + CO2(g)</chem> | |||
इसके बाद [[कार्बन के उपयोग|कार्बन]] जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से [[धातु]] प्राप्त किया जाता है। | |||
'''उदाहरण''' | |||
जब ज़िंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह ज़िंक धातु में अपचयित हो जाता है। | |||
<chem>ZnO(s) + C(s) -> Zn(s) + CO(g)</chem> | |||
'''<big>मध्यम</big>''' '''<big>अभिक्रियाशील धातु</big>''' | |||
मध्यम अभिक्रियाशील धातुओं का निष्कर्षण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है: | |||
<big>खनिज → अयस्क → कार्बोनेट अयस्क → निस्तापन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन</big> | |||
<big>खनिज → अयस्क →</big> <big>सल्फाइड अयस्क → भर्जन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन</big> | |||
==परावर्तनी भट्टी== | |||
निस्तापन एवं भर्जन परावर्तनी भट्टी में होते हैं। यह भट्टी अग्निसह ईटों की बनी होती है। इस भट्टी के तीन भाग होते हैं। इस भट्टी की अंगूठी में ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है। जो भट्टी की छत से परावर्तित होकर चूल्हे पर रखे अयस्क या घान पर आती है। उसी ऊष्मा से अयस्क या घान गर्म होता है। इसलिए इसे परावर्तनी भट्टी कहते हैं और व्यर्थ गैसें चिमनी से बाहर निकल जाती है। परावर्तनी भट्टी के तीन भाग होते हैं: | |||
अंगीठी, चूल्हा, चिमली, | |||
====(I) अग्नि स्थान==== | |||
<blockquote>यहाँ ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की ती है।</blockquote> | |||
====(iii) भट्ठी का तल –==== | |||
<blockquote>इसे चूल्हा (hearth) भी कहते हैं। यहाँ पर किये जाना वाला पदार्थ अर्थात् घान (charge) या महीन पीसा हुआ बस्क रखा जाता है।</blockquote> | |||
====(iii) चिमनी –==== | |||
<blockquote>यहाँ से व्यर्थ गैसे बाहर निकलती हैं।</blockquote> | |||
== भर्जन == | |||
[[सक्रियता श्रेणी]] के मध्य में स्थित धातुएं: जैसे - आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाए जाती है। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में [[धातु]] को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है।[[File:Reverberatory furnace for tungsten refining.png|thumb|परावर्तनी भट्टी]] | |||
==भर्जन की परिभाषा== | |||
भर्जन मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों से धातु ऑक्साइड प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस विधि में सांद्रित सल्फाइड अयस्कों को उसके [[गलनांक]] से कम ताप पर वायु की अधिकता में तेज गर्म करना भर्जन कहलाता है। जिससे वाष्पशील अशुद्धियाँ और नमी उड़ जाती है। और हमको भर्जित [[अयस्क]] प्राप्त हो जाती है। यह विधि मध्यम अभिक्रियाशील धातुओं के लिए प्रयोग की जाती है। सल्फाइड अयस्कों को ऑक्साइड में बदलने के लिए रोस्टिंग विधि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भर्जन हमेशा परावरतनी भट्टी में किया जाता है। | |||
ज़िंक के भर्जन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है: | |||
<chem>2ZnS + 3O2 -> 2ZnO + 2SO2</chem> | |||
इसके बाद [[कार्बन के उपयोग|कार्बन]] जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु प्राप्त किया जाता है। | |||
'''उदाहरण''' | |||
जब ज़िंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह ज़िंक धातु में अपचयित हो जाता है। | |||
<chem>ZnO(s) + C(s) -> Zn(s) + CO(g)</chem> | |||
==अभ्यास प्रश्न== | |||
*धातुकर्म से आप क्या समझते हैं? | |||
*खनिज से आप क्या समझते हैं? | |||
*ताँबा के कुछ प्रमुख अयस्क कौन कौन से हैं? | |||
*फेन प्लवन विधि किन अयस्कों के सांद्रण प्रयुक्त किये जाते हैं। | |||
*निस्तापन एवं भर्जन किस भट्टी में होते हैं? | |||
*निस्तापन एवं भर्जन में अंतर बताइये। | |||
*परावर्तनी भट्टी पर टिप्पणी दीजिये। | |||
*कार्बोनेट अयस्क का निष्कर्षण किस प्रकार किया जाता है? |
Latest revision as of 16:41, 30 May 2024
अवांछित पदार्थ जैसे क्ले, रेत आदि से अयस्क का निष्कासन अयस्कों का सांद्रण कहलाता है। सांद्रण की क्रिया से पहले अयस्कों को श्रेणीकृत किया जाता है और इसे उचित प्रकार में तोडा जाता है। तत्वों का पृथक्करण निम्नलिखित को विधियों से किया जाता है:
गुरत्वीय पृथक्क़रण
इसे द्रवीय धावन भी कहा जाता है। यह विधि अयस्क तथा गैंग कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अंतर पर निर्भर करता है। अतः इस तरह का सांद्रण गुरत्वीय पृथकरण विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के एक प्रक्रम में चूर्णित अयस्क को जल की धारा में धोया जाता है जिस कारण गैंग के कण हल्के होने के कारण जल के साथ निकलकर बह जाते हैं तथा भारी अयस्क के कण नीचे बैठ जाते हैं।
चुंबकीय पृथक्करण
यह विधि उन अयस्कों के सांद्रण के लिए लगाई जाती है जिनमे चुंबकीय गुण होता है। यदि अयस्क या गैंग में कोई भी एक चुंबकीय क्षेत्र की ओर आकर्षित हो सकता है तह चुंबकीय पृथकरण किया जाता है।
उदाहरण लौह अयस्क चुंबक की ओर आकर्षित होते हैं अतः इनमे से चुंबक की और आकर्षित होने न होने वाली अशुद्धियों को चुंबकीय पृथककरण द्वारा अलग किया जाता है। इस विधि में चूर्णित अयस्क को एक घुमते हुए पटटे पर डालते हैं जो चुंबकीय रोलर पर लगा होता है। चुंबकीय पदार्थ पट्टे की ओर आकर्षित होते हैं और चुंबक के पास गिरते रहते हैं।
फेन प्लवन विधि
धातुओं को उनके अयस्कों से स्वतंत्र और शुद्ध अवस्था में प्राप्त करने की प्रक्रिया को धातुकर्म या धातु का निष्कर्षण कहते हैं तथा इस प्रक्रिया में होने वाली अभिक्रियाएँ धातुकर्म कहलाती हैं।
धातुओं का निष्कर्षण
भूमिगत गहराई में दबे धातु के अयस्कों को निकालने की प्रक्रिया को खनन कहा जाता है। अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण करने से हमे धातु प्राप्त होती है जिससे हम उसे अयस्क के रूप में प्रयोग करते हैं। अयस्क उन तैयार धातुओं से बहुत भिन्न होते हैं जिन्हें हम इमारतों और पुलों में देखते हैं। अयस्कों में उपस्थित धातु के आलावा जो भी अशुद्धियाँ होती हैं उन्हें गैंग कहा जाता है। धातुओं का निष्कर्षण और उनका पृथक्करण कुछ प्रमुख चरणों में होता है:
- अयस्क की सांद्रता
- अयस्क से धातु का पृथक्करण
- धातु का शुद्धिकरण
अयस्क की सांद्रता
फेन प्लवन विधि का उपयोग सल्फाइड अयस्क के सांद्रण में प्रयुक्त की जाती है। फेन प्लवन विधि में बारीक पिसे हुए सल्फाइड अयस्क को जल तथा चीण के तेल में मिलाकर टैंक में मिलाते हैं, बारीक पिसे हुए अयस्क को जल तथा तेल के मिश्रण में डालकर ऊपर से गर्म वायु प्रवाहित की जाती है। अशुद्ध अयस्क तेल के साथ झाग (फेन) बनाकर ऊपर तैरने लगता है जिससे शुद्ध अयस्क झाग के रूप में ऊपर आ जाता है और अशुद्धियाँ तली में बैठ जाती हैं।
सिल्वर ग्लांस - Ag2S
कॉपर ग्लांस - Cu2S
कॉपर पाइराइट - CuFeS2
गैलना - PbS
उदाहरण
ज़िंक सल्फाइड में NaCN अवनमक के रूप में प्रयोग किया जाता है जिससे एक संकर यौगिक प्राप्त होता है यह फेन बंनने से रोकता है।
निक्षालन
निक्षालन ठोस पदार्थ से किसी विशेष पदार्थ का निष्कर्षण करना या निकालने की प्रक्रिया है। वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मिट्टी में विद्यमान घुलनशील संघटक जल में घुल जाते हैं और रिसते हुए जल के साथ मिट्टी में से होकर नीचे के स्तरों में पहुँच जाते हैं। निक्षालन रासायनिक विघटन द्वारा अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण है, और यह अधिकांश हाइड्रोमेटलर्जिकल निष्कर्षण प्रक्रियाओं का आधार बनती है। निक्षालन से धातु की अधिकतम मात्रा प्राप्त की जाती है। यह इकाई संचालन धातु निष्कर्षण की एक स्थापित और अपेक्षाकृत सफल विधि है, यह उच्च श्रेणी के निष्कर्षण में प्रयुक्त की जाती है।
भूविज्ञान में, निक्षालन के परिणामस्वरूप मिट्टी की ऊपरी परत से नमी के रिसने से विलेय यौगिकों और कोलाइड का नुकसान होता है।
मिट्टी की निक्षालन
निक्षालन तब होती है जब अतिरिक्त जल निकासी के माध्यम से जल में घुलनशील पोषक तत्वों को मिट्टी से बाहर निकाल देता है। कृषि के लिए निक्षालन एक पर्यावरणीय समस्या है, चाहे रासायनिक-भारी उर्वरक या रसायन बहकर जल निकायों में पहुंच जाएं। एक घुलनशील पदार्थ को एक द्रव से दूसरे द्रव द्वारा पहले के साथ अमिश्रणीय रूप से घोल दिया जाता है। निक्षालन और विलायक निष्कर्षण दोनों को प्रायः निष्कर्षण कहा जाता है। निक्षालन को ठोस-द्रव निष्कर्षण, निक्षालन, धुलाई आदि के रूप में भी जाना जाता है।
सांद्रित अयस्कों से अशोधित धातुओं का निष्कर्षण
सांद्रित अयस्कों से धातुओं का निष्कर्षण दो मुख्य पदों में होता है।
ऑक्सीइड में परिवर्तन
- निस्तापन
- भर्जन
निस्तापन
सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएं: जैसे - आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाए जाती है। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है। कार्बोनेट अयस्क को वायु की अनुपस्थित में अधिक ताप पर गर्म करने से यह ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को निस्तापन कहते हैं। निस्तापन हमेशा परावरतनी भट्टी में किया जाता है।
ज़िंक के निस्तापन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है:
इसके बाद कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु प्राप्त किया जाता है।
उदाहरण
जब ज़िंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह ज़िंक धातु में अपचयित हो जाता है।
मध्यम अभिक्रियाशील धातु
मध्यम अभिक्रियाशील धातुओं का निष्कर्षण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है:
खनिज → अयस्क → कार्बोनेट अयस्क → निस्तापन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन
खनिज → अयस्क → सल्फाइड अयस्क → भर्जन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन
परावर्तनी भट्टी
निस्तापन एवं भर्जन परावर्तनी भट्टी में होते हैं। यह भट्टी अग्निसह ईटों की बनी होती है। इस भट्टी के तीन भाग होते हैं। इस भट्टी की अंगूठी में ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है। जो भट्टी की छत से परावर्तित होकर चूल्हे पर रखे अयस्क या घान पर आती है। उसी ऊष्मा से अयस्क या घान गर्म होता है। इसलिए इसे परावर्तनी भट्टी कहते हैं और व्यर्थ गैसें चिमनी से बाहर निकल जाती है। परावर्तनी भट्टी के तीन भाग होते हैं:
अंगीठी, चूल्हा, चिमली,
(I) अग्नि स्थान
यहाँ ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की ती है।
(iii) भट्ठी का तल –
इसे चूल्हा (hearth) भी कहते हैं। यहाँ पर किये जाना वाला पदार्थ अर्थात् घान (charge) या महीन पीसा हुआ बस्क रखा जाता है।
(iii) चिमनी –
यहाँ से व्यर्थ गैसे बाहर निकलती हैं।
भर्जन
सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएं: जैसे - आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता मध्यम होती है। प्रकृति में ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाए जाती है। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है।
भर्जन की परिभाषा
भर्जन मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों से धातु ऑक्साइड प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस विधि में सांद्रित सल्फाइड अयस्कों को उसके गलनांक से कम ताप पर वायु की अधिकता में तेज गर्म करना भर्जन कहलाता है। जिससे वाष्पशील अशुद्धियाँ और नमी उड़ जाती है। और हमको भर्जित अयस्क प्राप्त हो जाती है। यह विधि मध्यम अभिक्रियाशील धातुओं के लिए प्रयोग की जाती है। सल्फाइड अयस्कों को ऑक्साइड में बदलने के लिए रोस्टिंग विधि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भर्जन हमेशा परावरतनी भट्टी में किया जाता है।
ज़िंक के भर्जन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है:
इसके बाद कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग कर धातु ऑक्साइड से धातु प्राप्त किया जाता है।
उदाहरण
जब ज़िंक ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है तो यह ज़िंक धातु में अपचयित हो जाता है।
अभ्यास प्रश्न
- धातुकर्म से आप क्या समझते हैं?
- खनिज से आप क्या समझते हैं?
- ताँबा के कुछ प्रमुख अयस्क कौन कौन से हैं?
- फेन प्लवन विधि किन अयस्कों के सांद्रण प्रयुक्त किये जाते हैं।
- निस्तापन एवं भर्जन किस भट्टी में होते हैं?
- निस्तापन एवं भर्जन में अंतर बताइये।
- परावर्तनी भट्टी पर टिप्पणी दीजिये।
- कार्बोनेट अयस्क का निष्कर्षण किस प्रकार किया जाता है?