स्कंदन: Difference between revisions
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किसी भी कोलॉइडी विलयन के अवक्षेप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को स्कंदन कहते है। इस विधि में कोलॉइडी कणों को विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की तरफ गति करवाया जाता है जहाँ ये कण विद्युत उदासीन हो जाते है और विद्युत उदासीन कणों के रूप मे तल में इक्कठे हो जाते है या स्कंदित हो जाते है। इस प्रक्रिया को स्कंदन कहते हैं। द्रव विरागी सॉल का स्थायित्व कोलॉइडों कणों पर उपस्थित आवेश के कारण होता है। यदि ये आवेश किसी प्रकार हटा दिया जाये तो कण एक दूसरे के समीप आकर स्कन्दित हो जाते हैं ज़ोर ये गुरत्व बल के कारण नीचे जमा हो जाते हैं। | |||
कोलॉइडों कणों के नीचे बैठ जाने का प्रक्रम सॉल का स्कंदन या [[अवक्षेपण]] कहलाता है। द्रव स्नेही [[सॉल]] का स्कंदन निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है: | |||
=== वैधुत कण संचलन === | |||
कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर गति करते हैं जिससे इलेक्ट्रोड पर आवेश विसर्जित करता है और कोलॉइड कण अवक्षेपित हो जाते हैं। | |||
=== 1.) दो विपरीत आवेश को मिलाकर === | |||
जब दो विपरीत आवेशित सॉल लगभग समान अनुपात में मिश्रित किये जाते हैं, तो वे एक दूसरे के आवेश को उदासीन करके स्कन्दित कर देते हैं जिससे ये पूर्णतया अवक्षेपित हो जाता है। जल योजित फेरिक ऑक्साइड जोकि एक धनावेशित सॉल एवं आर्सेनियस सल्फाइड जोकि एक ऋणावेशित सॉल को मिश्रित करने पर ये अवक्षेपित हो जाता है इस प्रकार के स्कंदन को पारस्परिक स्कंदन कहते हैं। | |||
=== 2.) वैधुत अपघट्य मिलाकर === | |||
जब किसी कोलॉइड में कोई वैधुत अपघट्य [[पदार्थ]] मिलाया जाता है तो कोलॉइडी कण में उपस्थित आयनों को वैधुत अपघट्य पदार्थ मिला दिया जाता है जिससे उसमे उपस्थित विपरीत आवेशित आयन कोलॉइडी कणों को अवक्षेपित करा देते हैं। अतः आवेश के स्कंदन के लिए उत्तरदायी आयन स्कंदक आयन कहलाते हैं। | |||
=== हार्डी-शुल्जे नियम === | |||
हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, आयनों की स्कन्दन कराने की क्षमता उसकी [[संयोजकता]] पर निर्भर करती है। | |||
* कोलॉइडी विलयन के स्कन्दन के लिए मिलाए गए विद्युत-अपघट्य के वे आयन सक्रिय होते है, जिनका आवेश कोलॉइडी कणो के आवेश के विपरीत होता है। | |||
* सॉल को स्कन्दित करने वाले आयन की शक्ति, आयन की संयोजकता पर निर्भर करती है। समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की शक्ति तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दन क्षमता अधिक होती है। | |||
* समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की क्षमता तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दन कराने की क्षमता अधिक होती है अर्थात हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, ..आयनों की स्कन्दन आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है।. | |||
हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार, अधिक संयोजकता वाला आयन अधिक स्कन्दन करता है, अतः Al<sup>3+</sup>, Ba<sup>2+</sup> , तथा Na<sup>+</sup> आयनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्नलिखित होगा- | |||
Al<sup>3+</sup> > Ba<sup>2+</sup> > Na<sup>+</sup> | |||
इसी प्रकार, धनावेशित सॉल के प्रति ऋणायनों की स्कन्दन शक्ति निम्नलिखित क्रम में घटती है: | |||
Fe(CN)<sup>4−</sup><sub>6</sub> > PO<sup>3−</sup><sub>4</sub> > SO<sup>2−</sup><sub>4</sub> > Cl<sup>−</sup> | |||
=== 3.) क्वथन द्वारा === | |||
जब एक सॉल को उबाला जाता है तो परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के साथ संघट्ट बढ़ने पर उसमें उपस्थित आवेश कम हो जाता है और अंत में वे अवक्षेप के रूप में नीचे बैठ जाते हैं। | |||
== अभ्यास प्रश्न == | |||
* स्कंदन कराने की क्षमता किन कारकों पर निर्भर करती है? | |||
* वैधुत कण संचलन से क्या तात्पर्य है? | |||
* हार्डी-शुल्जे नियम समझाइये। |
Latest revision as of 22:05, 30 May 2024
किसी भी कोलॉइडी विलयन के अवक्षेप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को स्कंदन कहते है। इस विधि में कोलॉइडी कणों को विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की तरफ गति करवाया जाता है जहाँ ये कण विद्युत उदासीन हो जाते है और विद्युत उदासीन कणों के रूप मे तल में इक्कठे हो जाते है या स्कंदित हो जाते है। इस प्रक्रिया को स्कंदन कहते हैं। द्रव विरागी सॉल का स्थायित्व कोलॉइडों कणों पर उपस्थित आवेश के कारण होता है। यदि ये आवेश किसी प्रकार हटा दिया जाये तो कण एक दूसरे के समीप आकर स्कन्दित हो जाते हैं ज़ोर ये गुरत्व बल के कारण नीचे जमा हो जाते हैं।
कोलॉइडों कणों के नीचे बैठ जाने का प्रक्रम सॉल का स्कंदन या अवक्षेपण कहलाता है। द्रव स्नेही सॉल का स्कंदन निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है:
वैधुत कण संचलन
कोलॉइडी कण विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड की ओर गति करते हैं जिससे इलेक्ट्रोड पर आवेश विसर्जित करता है और कोलॉइड कण अवक्षेपित हो जाते हैं।
1.) दो विपरीत आवेश को मिलाकर
जब दो विपरीत आवेशित सॉल लगभग समान अनुपात में मिश्रित किये जाते हैं, तो वे एक दूसरे के आवेश को उदासीन करके स्कन्दित कर देते हैं जिससे ये पूर्णतया अवक्षेपित हो जाता है। जल योजित फेरिक ऑक्साइड जोकि एक धनावेशित सॉल एवं आर्सेनियस सल्फाइड जोकि एक ऋणावेशित सॉल को मिश्रित करने पर ये अवक्षेपित हो जाता है इस प्रकार के स्कंदन को पारस्परिक स्कंदन कहते हैं।
2.) वैधुत अपघट्य मिलाकर
जब किसी कोलॉइड में कोई वैधुत अपघट्य पदार्थ मिलाया जाता है तो कोलॉइडी कण में उपस्थित आयनों को वैधुत अपघट्य पदार्थ मिला दिया जाता है जिससे उसमे उपस्थित विपरीत आवेशित आयन कोलॉइडी कणों को अवक्षेपित करा देते हैं। अतः आवेश के स्कंदन के लिए उत्तरदायी आयन स्कंदक आयन कहलाते हैं।
हार्डी-शुल्जे नियम
हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, आयनों की स्कन्दन कराने की क्षमता उसकी संयोजकता पर निर्भर करती है।
- कोलॉइडी विलयन के स्कन्दन के लिए मिलाए गए विद्युत-अपघट्य के वे आयन सक्रिय होते है, जिनका आवेश कोलॉइडी कणो के आवेश के विपरीत होता है।
- सॉल को स्कन्दित करने वाले आयन की शक्ति, आयन की संयोजकता पर निर्भर करती है। समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की शक्ति तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दन क्षमता अधिक होती है।
- समान संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दित करने की क्षमता तथा मात्रा समान होती है। अधिक संयोजकता वाले आयनों की स्कन्दन कराने की क्षमता अधिक होती है अर्थात हार्डी-शुल्जे नियम के अनुसार, ..आयनों की स्कन्दन आयन की संयोजकता बढ़ने के साथ बढ़ती है।.
हार्डी-शुल्जे के नियमानुसार, अधिक संयोजकता वाला आयन अधिक स्कन्दन करता है, अतः Al3+, Ba2+ , तथा Na+ आयनों की स्कन्दन क्षमता का क्रम निम्नलिखित होगा-
Al3+ > Ba2+ > Na+
इसी प्रकार, धनावेशित सॉल के प्रति ऋणायनों की स्कन्दन शक्ति निम्नलिखित क्रम में घटती है:
Fe(CN)4−6 > PO3−4 > SO2−4 > Cl−
3.) क्वथन द्वारा
जब एक सॉल को उबाला जाता है तो परिक्षेपण माध्यम के अणुओं के साथ संघट्ट बढ़ने पर उसमें उपस्थित आवेश कम हो जाता है और अंत में वे अवक्षेप के रूप में नीचे बैठ जाते हैं।
अभ्यास प्रश्न
- स्कंदन कराने की क्षमता किन कारकों पर निर्भर करती है?
- वैधुत कण संचलन से क्या तात्पर्य है?
- हार्डी-शुल्जे नियम समझाइये।