गुरुबीजाणुधानी: Difference between revisions
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यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सभी आवृतबीजी पौधों में पुष्प जनन की इकाई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि फूलों में नर और मादा [[प्रजनन]] अंग होते हैं जो नर और मादा युग्मकों के उत्पादन से लैंगिक जनन करते हैं। लेकिन अगर हम गहराई से अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि [[पुंकेसर]] (नर प्रजनन भाग) और पिस्टिल (मादा प्रजनन भाग) में सूक्ष्म संरचनाएं होती हैं जो युग्मक के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। स्त्रीकेसर में ऐसी ही एक संरचना है '''गुरुबीजाणुधानी''' जिसके बारे में हम विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। | |||
== परिभाषा == | |||
गुरुबीजाणुधानी पौधों में मादा प्रजनन प्रणाली का हिस्सा है। वैकल्पिक रूप से, इसे बीजांड कहा जाता है। बीजाण्डों की संख्या एक (उदाहरण के लिए- गेहूं, धान, आम) से लेकर अनेक (उदाहरण के लिए- पपीता, तरबूज, ऑर्किड) हो सकती है। गुरुबीजाणुधानी, गुरुबीजाणुजनन की प्रक्रिया द्वारा गुरुबीजाणु का निर्माण करता है। गुरुबीजाणु आगे चलकर मादा युग्मकोद्भिद में विकसित होता है जो मादा युग्मक पैदा करता है। | |||
== पुष्प में इसका स्थान == | |||
स्त्रीकेसर फूल का मादा प्रजनन अंग है। प्रत्येक स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं- | |||
* '''वर्तिकाग्र:''' यह परागकणों के लिए मचान के रूप में कार्य करता है। इसमें चिपचिपा पदार्थ होता है जो पराग को इससे चिपकने देता है। | |||
* '''शैली:''' [[वर्तिकाग्र]] के नीचे लम्बा, पतला भाग जो अंडाशय को वर्तिकाग्र से जोड़ता है। | |||
* '''अंडाशय:''' स्त्रीकेसर का आधारीय उभार वाला भाग होता है। अंडाशय के अंदर गर्भाशयी गुहा (लोक्यूल) होती है। बीजाण्डासन (प्लेसेंटा) गर्भाशयी गुहा के अंदर स्थित होता है। बीजाण्डासन से निकलने वाली गुरुबीजाणुधानी होती हैं, जिन्हें आमतौर पर बीजांड कहा जाता है। | |||
== संरचना == | |||
[[File:गुरुबीजाणुधानी का आरेख..jpg|thumb|237x237px|गुरुबीजाणुधानी का आरेख।]] | |||
आइए हम एक विशिष्ट आवृतबीजी बीजांड की संरचना से परिचित हों। बीजांड एक छोटी संरचना है जो '''बीजांडवृंत''' नामक डंठल के माध्यम से बीजाण्डासन से जुड़ी होती है। बीजांड, '''बीजनाभि''' नामक क्षेत्र में कवक के साथ जुड़ जाता है। इस प्रकार, बीजनाभि, बीजांड और कवक के बीच के संयोजन का प्रतिनिधित्व करता है। बीजांड में एक '''बीजांडद्वार''' और एक '''निभाग''' सिरा होता है। निभाग सिरा बीजांड के आधारीय भाग का प्रतिनिधित्व करता है। | |||
प्रत्येक बीजांड में एक या दो सुरक्षात्मक आवरण होते हैं जिन्हें '''अध्यावरण''' कहते हैं। अध्यावरण बीजांड को घेरे रहते हैं सिवाय उस सिरे को छोड़कर जहां बीजांडद्वार नामक एक छोटा सा छिद्र होता है। बीजांडद्वार सिरे के विपरीत निभाग है, जो बीजांड के आधार भाग का प्रतिनिधित्व करता है। अध्यावरण के भीतर कोशिका का एक समूह घिरा होता है जिसे '''न्युसेलस''' कहा जाता है। न्युकेलस की कोशिकाओं में प्रचुर मात्रा में आरक्षित खाद्य सामग्री होती है। न्युकेलस में भ्रूणकोष (मादा युग्मकोद्भिद) स्थित होता है। एक बीजांड में आम तौर पर एक एकल भ्रूणकोष होता है जो अर्धसूत्रीविभाजन के माध्यम से गुरुबीजाणु से बनता है। | |||
== भूमिका == | |||
गुरुबीजाणुधानी, गुरुबीजनुधानिजनन की प्रक्रिया द्वारा मादा युग्मकोद्भिद के उत्पादन में अपनी भूमिका निभाता है। गुरुबीजाणुधानीजनन, गुरुबीजाणुधानी के अंदर होने वाली एक प्रक्रिया है। न्युसेलस, गुरुबीजाणुधानी के अंदर उपस्थित होता है। इसकी एक कोशिका विशिष्ट हो जाती है और गुरुबीजाणु मातृ कोशिका के रूप में विकसित होने लगती है। यह गुरुबीजाणु मातृ कोशिका, चार गुरुबीजाणु उत्पन्न करने के लिए अर्धसूत्रीविभाजन से गुजरती है। चार में से, तीन गुरुबीजाणु नष्ट हो जाते हैं और एक, जो बचता है वो, मादा युग्मकोद्भिद में विकसित होता है। | |||
== प्रकार == | |||
[[File:बीजांड के प्रकार.jpg|thumb|400x400px|बीजांड के प्रकार]] | |||
बीजांड स्पष्ट रूप से छह प्रकार के होते हैं। ये हैं- | |||
=== ऋजुवर्ती बीजाण्ड (ऑर्थोट्रोपस): === | |||
* ऐसा [[बीजाण्डद्वार|बीजाण्ड]] जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार तथा निभाग एक ही सीध में होते हैं ऋजुवर्ती बीजाण्ड कहलाता हैं । उदाहरण के लिए- काली मिर्च, पान आदि में यह पाया जाता है। | |||
=== अधोमुखी बीजाण्ड (एनाट्रोपस): === | |||
* ऐसा बीजाण्ड जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार एक दूसरे के करीब आ जाते हैं तथा निभाग ऊपर की ओर चला जाता है अधोमुखी कहलाता हैं, अर्थात इस प्रकार बीजाण्ड ऋजुवर्ती के विपरीत होता है उदाहरण के लिए- मटर, सेम आदि। | |||
=== अनुप्रस्थावर्त बीजाण्ड (हेमी-एनाट्रोपस): === | |||
* ऐसा बीजाण्ड जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार एक दूसरे के समकोण में आ जाते हैं, अनुप्रस्थावर्त कहलाता हैं। उदाहरण के लिए- प्राइमुला, रेननकुलस आदि। | |||
=== अनुप्रस्थ बीजाण्ड (एम्फीट्रोपस): === | |||
* इस प्रकार का बीजाण्ड अधोमुखी बीजाण्ड के समान होता है, अंतर केवल इतना है कि इसमें बीजाण्ड के साथ-साथ भ्रूणकोष में भी वक्रता आ जाती जिससे भ्रूणकोष किडनी के आकार का हो जाता है। उदाहरण के लिए- ऐैलिस्मा, ब्युटोमस, लेम्ना, पोस्त, प्रिम रोज आदि। | |||
=== वक्रावर्त बीजाण्ड (कैम्पिलोट्रोपस): === | |||
* इस प्रकार के बीजाण्ड में, बीजाण्ड अपने वृंत पर घोड़े की नाल की आकृति में स्थित रहता है जिससे भी बीजाण्डवृंत तथा नाभीका पास -पास रहते हैं। उदाहरण के लिए- सरसों, मूली, मिराबिलिस, चीनोंपोडियम आदि । | |||
=== कुण्डलित बीजाण्ड (सर्सिनोट्रोपस): === | |||
* इस प्रकार का बीजाण्ड प्रारंभ में ऋजुवर्ती रहता है वृद्धि के साथ-साथ यह अधोमुखी हो जाता है किंतु पूर्ण [[वृद्धि]] हो जाने पर यहां अपने अक्ष पर घूम जाता है अर्थात बीजाण्डवृंत लंबा होकर बीजाण्ड को चारों ओर से घेर लेता है यह बीजाण्ड से केवल एक वृंत द्वारा जुड़ा होता है । उदाहरण के लिए- नागफनी, केक्टेसी आदि । |
Latest revision as of 11:00, 10 July 2024
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सभी आवृतबीजी पौधों में पुष्प जनन की इकाई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि फूलों में नर और मादा प्रजनन अंग होते हैं जो नर और मादा युग्मकों के उत्पादन से लैंगिक जनन करते हैं। लेकिन अगर हम गहराई से अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि पुंकेसर (नर प्रजनन भाग) और पिस्टिल (मादा प्रजनन भाग) में सूक्ष्म संरचनाएं होती हैं जो युग्मक के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। स्त्रीकेसर में ऐसी ही एक संरचना है गुरुबीजाणुधानी जिसके बारे में हम विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं।
परिभाषा
गुरुबीजाणुधानी पौधों में मादा प्रजनन प्रणाली का हिस्सा है। वैकल्पिक रूप से, इसे बीजांड कहा जाता है। बीजाण्डों की संख्या एक (उदाहरण के लिए- गेहूं, धान, आम) से लेकर अनेक (उदाहरण के लिए- पपीता, तरबूज, ऑर्किड) हो सकती है। गुरुबीजाणुधानी, गुरुबीजाणुजनन की प्रक्रिया द्वारा गुरुबीजाणु का निर्माण करता है। गुरुबीजाणु आगे चलकर मादा युग्मकोद्भिद में विकसित होता है जो मादा युग्मक पैदा करता है।
पुष्प में इसका स्थान
स्त्रीकेसर फूल का मादा प्रजनन अंग है। प्रत्येक स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं-
- वर्तिकाग्र: यह परागकणों के लिए मचान के रूप में कार्य करता है। इसमें चिपचिपा पदार्थ होता है जो पराग को इससे चिपकने देता है।
- शैली: वर्तिकाग्र के नीचे लम्बा, पतला भाग जो अंडाशय को वर्तिकाग्र से जोड़ता है।
- अंडाशय: स्त्रीकेसर का आधारीय उभार वाला भाग होता है। अंडाशय के अंदर गर्भाशयी गुहा (लोक्यूल) होती है। बीजाण्डासन (प्लेसेंटा) गर्भाशयी गुहा के अंदर स्थित होता है। बीजाण्डासन से निकलने वाली गुरुबीजाणुधानी होती हैं, जिन्हें आमतौर पर बीजांड कहा जाता है।
संरचना
आइए हम एक विशिष्ट आवृतबीजी बीजांड की संरचना से परिचित हों। बीजांड एक छोटी संरचना है जो बीजांडवृंत नामक डंठल के माध्यम से बीजाण्डासन से जुड़ी होती है। बीजांड, बीजनाभि नामक क्षेत्र में कवक के साथ जुड़ जाता है। इस प्रकार, बीजनाभि, बीजांड और कवक के बीच के संयोजन का प्रतिनिधित्व करता है। बीजांड में एक बीजांडद्वार और एक निभाग सिरा होता है। निभाग सिरा बीजांड के आधारीय भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रत्येक बीजांड में एक या दो सुरक्षात्मक आवरण होते हैं जिन्हें अध्यावरण कहते हैं। अध्यावरण बीजांड को घेरे रहते हैं सिवाय उस सिरे को छोड़कर जहां बीजांडद्वार नामक एक छोटा सा छिद्र होता है। बीजांडद्वार सिरे के विपरीत निभाग है, जो बीजांड के आधार भाग का प्रतिनिधित्व करता है। अध्यावरण के भीतर कोशिका का एक समूह घिरा होता है जिसे न्युसेलस कहा जाता है। न्युकेलस की कोशिकाओं में प्रचुर मात्रा में आरक्षित खाद्य सामग्री होती है। न्युकेलस में भ्रूणकोष (मादा युग्मकोद्भिद) स्थित होता है। एक बीजांड में आम तौर पर एक एकल भ्रूणकोष होता है जो अर्धसूत्रीविभाजन के माध्यम से गुरुबीजाणु से बनता है।
भूमिका
गुरुबीजाणुधानी, गुरुबीजनुधानिजनन की प्रक्रिया द्वारा मादा युग्मकोद्भिद के उत्पादन में अपनी भूमिका निभाता है। गुरुबीजाणुधानीजनन, गुरुबीजाणुधानी के अंदर होने वाली एक प्रक्रिया है। न्युसेलस, गुरुबीजाणुधानी के अंदर उपस्थित होता है। इसकी एक कोशिका विशिष्ट हो जाती है और गुरुबीजाणु मातृ कोशिका के रूप में विकसित होने लगती है। यह गुरुबीजाणु मातृ कोशिका, चार गुरुबीजाणु उत्पन्न करने के लिए अर्धसूत्रीविभाजन से गुजरती है। चार में से, तीन गुरुबीजाणु नष्ट हो जाते हैं और एक, जो बचता है वो, मादा युग्मकोद्भिद में विकसित होता है।
प्रकार
बीजांड स्पष्ट रूप से छह प्रकार के होते हैं। ये हैं-
ऋजुवर्ती बीजाण्ड (ऑर्थोट्रोपस):
- ऐसा बीजाण्ड जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार तथा निभाग एक ही सीध में होते हैं ऋजुवर्ती बीजाण्ड कहलाता हैं । उदाहरण के लिए- काली मिर्च, पान आदि में यह पाया जाता है।
अधोमुखी बीजाण्ड (एनाट्रोपस):
- ऐसा बीजाण्ड जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार एक दूसरे के करीब आ जाते हैं तथा निभाग ऊपर की ओर चला जाता है अधोमुखी कहलाता हैं, अर्थात इस प्रकार बीजाण्ड ऋजुवर्ती के विपरीत होता है उदाहरण के लिए- मटर, सेम आदि।
अनुप्रस्थावर्त बीजाण्ड (हेमी-एनाट्रोपस):
- ऐसा बीजाण्ड जिसमें पाए जाने वाले बीजाण्डवृंत, बीजाण्डद्वार एक दूसरे के समकोण में आ जाते हैं, अनुप्रस्थावर्त कहलाता हैं। उदाहरण के लिए- प्राइमुला, रेननकुलस आदि।
अनुप्रस्थ बीजाण्ड (एम्फीट्रोपस):
- इस प्रकार का बीजाण्ड अधोमुखी बीजाण्ड के समान होता है, अंतर केवल इतना है कि इसमें बीजाण्ड के साथ-साथ भ्रूणकोष में भी वक्रता आ जाती जिससे भ्रूणकोष किडनी के आकार का हो जाता है। उदाहरण के लिए- ऐैलिस्मा, ब्युटोमस, लेम्ना, पोस्त, प्रिम रोज आदि।
वक्रावर्त बीजाण्ड (कैम्पिलोट्रोपस):
- इस प्रकार के बीजाण्ड में, बीजाण्ड अपने वृंत पर घोड़े की नाल की आकृति में स्थित रहता है जिससे भी बीजाण्डवृंत तथा नाभीका पास -पास रहते हैं। उदाहरण के लिए- सरसों, मूली, मिराबिलिस, चीनोंपोडियम आदि ।
कुण्डलित बीजाण्ड (सर्सिनोट्रोपस):
- इस प्रकार का बीजाण्ड प्रारंभ में ऋजुवर्ती रहता है वृद्धि के साथ-साथ यह अधोमुखी हो जाता है किंतु पूर्ण वृद्धि हो जाने पर यहां अपने अक्ष पर घूम जाता है अर्थात बीजाण्डवृंत लंबा होकर बीजाण्ड को चारों ओर से घेर लेता है यह बीजाण्ड से केवल एक वृंत द्वारा जुड़ा होता है । उदाहरण के लिए- नागफनी, केक्टेसी आदि ।