कायिक प्रवर्धन.: Difference between revisions
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वनस्पति प्रसार पौधों में अलैंगिक [[प्रजनन]] का एक प्रकार है, जहाँ मूल पौधे के वनस्पति भागों, जैसे जड़ों, तनों और पत्तियों से बीजों की भागीदारी के बिना नए व्यक्ति (संतान) उत्पन्न होते हैं। यह विधि पौधों के तेजी से और कुशल प्रजनन की अनुमति देती है, जिससे माता-पिता और संतानों के बीच आनुवंशिक समानता सुनिश्चित होती है। | |||
== वनस्पति प्रसार की मुख्य विशेषताएँ == | |||
'''अलैंगिक प्रजनन:''' कोई [[युग्मक]] (अंडाणु और शुक्राणु) शामिल नहीं होते हैं, इसलिए संतान आनुवंशिक रूप से माता-पिता (क्लोन) के समान होती हैं। | |||
'''वनस्पति भागों का उपयोग:''' इसमें जड़ें, तने और पत्तियों जैसे भाग शामिल होते हैं, जो उपयुक्त परिस्थितियों में नए पौधों में पुनर्जीवित हो सकते हैं। | |||
'''प्राकृतिक या कृत्रिम:''' यह प्राकृतिक रूप से हो सकता है या मनुष्यों द्वारा कृत्रिम रूप से प्रेरित किया जा सकता है। | |||
== वनस्पति प्रसार के प्रकार == | |||
=== प्राकृतिक वनस्पति प्रसार === | |||
=== स्टेम द्वारा === | |||
* '''धावक:''' क्षैतिज तना जो जमीन के ऊपर बढ़ता है और नोड्स (जैसे, स्ट्रॉबेरी) पर नए पौधे पैदा करता है। | |||
* '''प्रकंद:''' भूमिगत क्षैतिज तना जो नई टहनियाँ पैदा करता है (जैसे, अदरक)। | |||
* '''कंद:''' सूजा हुआ भूमिगत तना जो पोषक तत्वों को संग्रहीत करता है और "आँखों" से नए पौधे उगा सकता है (जैसे, आलू)। | |||
* '''बल्ब:''' मांसल पत्तियों से घिरा छोटा भूमिगत तना जो एक नए पौधे (जैसे, प्याज) में विकसित हो सकता है। | |||
* '''कंद:''' मोटा भूमिगत तना जो भोजन संग्रहीत करता है और नए पौधे पैदा करता है (जैसे, कोलोकेसिया)। | |||
=== जड़ों द्वारा === | |||
अपस्थानिक कलियाँ: कुछ पौधे अपनी जड़ों से नई टहनियाँ पैदा कर सकते हैं (जैसे, शकरकंद)। | |||
=== पत्तियों द्वारा === | |||
कुछ पौधे विशेष पत्ती संरचनाओं (जैसे, ब्रायोफिलम, जो अपनी पत्तियों के किनारों पर पौधे पैदा करता है) से नए पौधे पैदा कर सकते हैं। | |||
== कृत्रिम वनस्पति प्रसार == | |||
* '''काटना:''' एक नया पौधा उगाने के लिए तने, पत्ती या जड़ का एक टुकड़ा काटा जाता है और लगाया जाता है (जैसे, गुलाब की कटिंग)। | |||
* '''ग्राफ्टिंग:''' एक पौधे (स्कियन) के तने को दूसरे पौधे के रूटस्टॉक से जोड़ा जाता है (जैसे, सेब या साइट्रस ग्राफ्टिंग)। | |||
* '''लेयरिंग:''' जड़ की [[वृद्धि]] को प्रेरित करने के लिए तने को ज़मीन पर झुकाया जाता है और मिट्टी से ढक दिया जाता है, फिर एक नया पौधा बनाने के लिए अलग किया जाता है (जैसे, ब्लैकबेरी)। | |||
* '''माइक्रोप्रोपेगेशन (ऊतक संवर्धन):''' नियंत्रित परिस्थितियों में कई पौधों का उत्पादन करने के लिए छोटे ऊतक के टुकड़ों को इन विट्रो में संवर्धित किया जाता है (ऑर्किड, केले आदि के बड़े पैमाने पर प्रसार के लिए उपयोग किया जाता है)। | |||
== वानस्पतिक प्रसार के लाभ == | |||
* '''तेजी से प्रजनन:''' पौधे बीजों की आवश्यकता को दरकिनार करते हुए तेज़ी से [[प्रजनन]] कर सकते हैं। | |||
* '''आनुवांशिक रूप से समान संतान:''' यह सुनिश्चित करता है कि नए पौधे में मूल पौधे के समान गुण हों, जो वांछनीय विशेषताओं को बनाए रखने के लिए उपयोगी है। | |||
* '''परागण की कोई आवश्यकता नहीं:''' बीज निर्माण के लिए परागणकों या अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं होती है। | |||
* '''बीज रहित पौधों के लिए उपयोगी:''' कुछ पौधे जो व्यवहार्य बीज उत्पन्न नहीं करते हैं, उन्हें वानस्पतिक रूप से प्रचारित किया जा सकता है (जैसे, बीज रहित केला)। | |||
* '''वांछनीय गुण बनाए रखता है:''' यह उच्च उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता या बेहतर स्वाद जैसे अच्छे गुणों वाले पौधों को फैलाने में मदद करता है। | |||
== वानस्पतिक प्रसार के नुकसान == | |||
* '''आनुवंशिक विविधता का अभाव:''' चूंकि संतान मूल पौधे के क्लोन होते हैं, इसलिए कोई आनुवंशिक भिन्नता नहीं होती है, जिससे पौधे की आबादी बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है। | |||
* '''अधिक भीड़भाड़:''' चूंकि कई पौधे आनुवंशिक रूप से समान होते हैं, इसलिए वे समान संसाधनों (स्थान, पोषक तत्व, प्रकाश) के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। | |||
* '''मूल पौधे पर निर्भरता:''' यदि मूल पौधा रोगग्रस्त या कमजोर है, तो संतान को भी वे कमजोरियाँ विरासत में मिलेंगी। | |||
== वनस्पति प्रसार का उपयोग करने वाले पौधों के उदाहरण == | |||
=== प्राकृतिक === | |||
* स्ट्रॉबेरी (धावक) | |||
* आलू (कंद) | |||
* प्याज (बल्ब) | |||
* शकरकंद (जड़) | |||
* ब्रायोफिलम (पत्ती) | |||
=== कृत्रिम === | |||
* गुलाब (काटना) | |||
* सेब (ग्राफ्टिंग) | |||
* ब्लैकबेरी (लेयरिंग) | |||
* ऑर्किड (ऊतक संवर्धन) | |||
== संभावित प्रश्न == | |||
=== लघु उत्तर प्रश्न === | |||
* वनस्पति प्रसार को परिभाषित करें। | |||
* वनस्पति प्रसार की विभिन्न विधियों की सूची बनाएँ। | |||
* प्राकृतिक और कृत्रिम वनस्पति प्रसार के बीच अंतर बताएँ। | |||
* दो पौधों के नाम बताएँ जो क्रमशः धावकों और कंदों के माध्यम से प्रसारित होते हैं। | |||
* ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया को एक उदाहरण के साथ समझाएँ। | |||
=== दीर्घ उत्तर प्रश्न === | |||
* वनस्पति प्रसार की विभिन्न विधियों को उदाहरणों के साथ विस्तार से समझाएँ। | |||
* वनस्पति प्रसार के लाभ और हानि पर चर्चा करें। | |||
=== वस्तुनिष्ठ प्रश्न === | |||
निम्नलिखित में से कौन प्रकंदों द्वारा वानस्पतिक प्रवर्धन का उदाहरण है? | |||
a) आलू | |||
b) अदरक | |||
c) स्ट्रॉबेरी | |||
d) प्याज | |||
(उत्तर: b) अदरक | |||
निम्नलिखित में से किस पौधे में वानस्पतिक प्रवर्धन अपस्थानिक कलियों के माध्यम से होता है? | |||
a) शकरकंद | |||
b) गुलाब | |||
c) खीरा | |||
d) टमाटर | |||
(उत्तर: a) शकरकंद |
Latest revision as of 21:53, 27 November 2024
वनस्पति प्रसार पौधों में अलैंगिक प्रजनन का एक प्रकार है, जहाँ मूल पौधे के वनस्पति भागों, जैसे जड़ों, तनों और पत्तियों से बीजों की भागीदारी के बिना नए व्यक्ति (संतान) उत्पन्न होते हैं। यह विधि पौधों के तेजी से और कुशल प्रजनन की अनुमति देती है, जिससे माता-पिता और संतानों के बीच आनुवंशिक समानता सुनिश्चित होती है।
वनस्पति प्रसार की मुख्य विशेषताएँ
अलैंगिक प्रजनन: कोई युग्मक (अंडाणु और शुक्राणु) शामिल नहीं होते हैं, इसलिए संतान आनुवंशिक रूप से माता-पिता (क्लोन) के समान होती हैं।
वनस्पति भागों का उपयोग: इसमें जड़ें, तने और पत्तियों जैसे भाग शामिल होते हैं, जो उपयुक्त परिस्थितियों में नए पौधों में पुनर्जीवित हो सकते हैं।
प्राकृतिक या कृत्रिम: यह प्राकृतिक रूप से हो सकता है या मनुष्यों द्वारा कृत्रिम रूप से प्रेरित किया जा सकता है।
वनस्पति प्रसार के प्रकार
प्राकृतिक वनस्पति प्रसार
स्टेम द्वारा
- धावक: क्षैतिज तना जो जमीन के ऊपर बढ़ता है और नोड्स (जैसे, स्ट्रॉबेरी) पर नए पौधे पैदा करता है।
- प्रकंद: भूमिगत क्षैतिज तना जो नई टहनियाँ पैदा करता है (जैसे, अदरक)।
- कंद: सूजा हुआ भूमिगत तना जो पोषक तत्वों को संग्रहीत करता है और "आँखों" से नए पौधे उगा सकता है (जैसे, आलू)।
- बल्ब: मांसल पत्तियों से घिरा छोटा भूमिगत तना जो एक नए पौधे (जैसे, प्याज) में विकसित हो सकता है।
- कंद: मोटा भूमिगत तना जो भोजन संग्रहीत करता है और नए पौधे पैदा करता है (जैसे, कोलोकेसिया)।
जड़ों द्वारा
अपस्थानिक कलियाँ: कुछ पौधे अपनी जड़ों से नई टहनियाँ पैदा कर सकते हैं (जैसे, शकरकंद)।
पत्तियों द्वारा
कुछ पौधे विशेष पत्ती संरचनाओं (जैसे, ब्रायोफिलम, जो अपनी पत्तियों के किनारों पर पौधे पैदा करता है) से नए पौधे पैदा कर सकते हैं।
कृत्रिम वनस्पति प्रसार
- काटना: एक नया पौधा उगाने के लिए तने, पत्ती या जड़ का एक टुकड़ा काटा जाता है और लगाया जाता है (जैसे, गुलाब की कटिंग)।
- ग्राफ्टिंग: एक पौधे (स्कियन) के तने को दूसरे पौधे के रूटस्टॉक से जोड़ा जाता है (जैसे, सेब या साइट्रस ग्राफ्टिंग)।
- लेयरिंग: जड़ की वृद्धि को प्रेरित करने के लिए तने को ज़मीन पर झुकाया जाता है और मिट्टी से ढक दिया जाता है, फिर एक नया पौधा बनाने के लिए अलग किया जाता है (जैसे, ब्लैकबेरी)।
- माइक्रोप्रोपेगेशन (ऊतक संवर्धन): नियंत्रित परिस्थितियों में कई पौधों का उत्पादन करने के लिए छोटे ऊतक के टुकड़ों को इन विट्रो में संवर्धित किया जाता है (ऑर्किड, केले आदि के बड़े पैमाने पर प्रसार के लिए उपयोग किया जाता है)।
वानस्पतिक प्रसार के लाभ
- तेजी से प्रजनन: पौधे बीजों की आवश्यकता को दरकिनार करते हुए तेज़ी से प्रजनन कर सकते हैं।
- आनुवांशिक रूप से समान संतान: यह सुनिश्चित करता है कि नए पौधे में मूल पौधे के समान गुण हों, जो वांछनीय विशेषताओं को बनाए रखने के लिए उपयोगी है।
- परागण की कोई आवश्यकता नहीं: बीज निर्माण के लिए परागणकों या अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं होती है।
- बीज रहित पौधों के लिए उपयोगी: कुछ पौधे जो व्यवहार्य बीज उत्पन्न नहीं करते हैं, उन्हें वानस्पतिक रूप से प्रचारित किया जा सकता है (जैसे, बीज रहित केला)।
- वांछनीय गुण बनाए रखता है: यह उच्च उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता या बेहतर स्वाद जैसे अच्छे गुणों वाले पौधों को फैलाने में मदद करता है।
वानस्पतिक प्रसार के नुकसान
- आनुवंशिक विविधता का अभाव: चूंकि संतान मूल पौधे के क्लोन होते हैं, इसलिए कोई आनुवंशिक भिन्नता नहीं होती है, जिससे पौधे की आबादी बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।
- अधिक भीड़भाड़: चूंकि कई पौधे आनुवंशिक रूप से समान होते हैं, इसलिए वे समान संसाधनों (स्थान, पोषक तत्व, प्रकाश) के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
- मूल पौधे पर निर्भरता: यदि मूल पौधा रोगग्रस्त या कमजोर है, तो संतान को भी वे कमजोरियाँ विरासत में मिलेंगी।
वनस्पति प्रसार का उपयोग करने वाले पौधों के उदाहरण
प्राकृतिक
- स्ट्रॉबेरी (धावक)
- आलू (कंद)
- प्याज (बल्ब)
- शकरकंद (जड़)
- ब्रायोफिलम (पत्ती)
कृत्रिम
- गुलाब (काटना)
- सेब (ग्राफ्टिंग)
- ब्लैकबेरी (लेयरिंग)
- ऑर्किड (ऊतक संवर्धन)
संभावित प्रश्न
लघु उत्तर प्रश्न
- वनस्पति प्रसार को परिभाषित करें।
- वनस्पति प्रसार की विभिन्न विधियों की सूची बनाएँ।
- प्राकृतिक और कृत्रिम वनस्पति प्रसार के बीच अंतर बताएँ।
- दो पौधों के नाम बताएँ जो क्रमशः धावकों और कंदों के माध्यम से प्रसारित होते हैं।
- ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया को एक उदाहरण के साथ समझाएँ।
दीर्घ उत्तर प्रश्न
- वनस्पति प्रसार की विभिन्न विधियों को उदाहरणों के साथ विस्तार से समझाएँ।
- वनस्पति प्रसार के लाभ और हानि पर चर्चा करें।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित में से कौन प्रकंदों द्वारा वानस्पतिक प्रवर्धन का उदाहरण है?
a) आलू
b) अदरक
c) स्ट्रॉबेरी
d) प्याज
(उत्तर: b) अदरक
निम्नलिखित में से किस पौधे में वानस्पतिक प्रवर्धन अपस्थानिक कलियों के माध्यम से होता है?
a) शकरकंद
b) गुलाब
c) खीरा
d) टमाटर
(उत्तर: a) शकरकंद