कार्बधात्विक यौगिक: Difference between revisions

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कार्बधात्विक [[यौगिक]] एक धनात्मक आवेशित कार्बन [[आयन]] है, जहां कार्बन परमाणु में केवल तीन बंध और एक खाली P ऑर्बिटल होता है। कार्बधात्विक यौगिक कार्बनिक रसायन विज्ञान में इलेक्ट्रॉन की कमी के कारण अत्यधिक अभिक्रियाशील मध्यवर्ती होते हैं, जो उन्हें न्यूक्लियोफिलिक हमले के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
 
== कार्बधात्विक यौगिक के प्रकार ==
कार्बधात्विक यौगिक तीन प्रकार के होते हैं:
 
'''प्राथमिक कार्बधात्विक यौगिक:''' यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन एक अन्य कार्बन परमाणु से जुड़ा होता है।
 
'''द्वितीयक कार्बधात्विक यौगिक:''' यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन दो अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है।
 
'''तृतीयक कार्बधात्विक यौगिक:''' यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है।
 
कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत अधिक होता है।
 
'''3<sup>o</sup> > 2<sup>o</sup> > 1<sup>o</sup>'''
 
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कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम
 
यह स्थिरता क्रम आगमनात्मक प्रभाव और [[अतिसंयुग्मन]] के कारण होता है। तृतीयक कार्बधात्विक यौगिक के मामले में, धनात्मक आवेश को कार्बन परमाणु से जुड़े इलेक्ट्रॉन-दान करने वाले एल्काइल समूहों द्वारा स्थिर किया जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन की कमी कम हो जाती है और कार्बधात्विक यौगिक अधिक स्थिर हो जाता है।
 
कार्बधात्विक यौगिक कई कार्बनिक अभिक्रियाओं में महत्वपूर्ण मध्यवर्ती हैं, जिनमें न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन, इलेक्ट्रोफिलिक योग और [[विलोपन अभिक्रियाएँ|विलोपन अभिक्रिया]]एं शामिल हैं।
 
== S<sub>N</sub><sup>1</sup> अभिक्रियाएं ==
S<sub>N</sub><sup>1</sup> अभिक्रियाएं सामान्यतः ध्रुवीय प्रोटिक विलायकों में संपन्न होती हैं ये ध्रुवीय [[प्रोटिक विलायक]] हैं। एल्कोहॉल, एसीटिक अम्ल, जल आदि। तृतीयक ब्यूटिल ब्रोमाइड की हाइड्रॉक्साइड आयन से अभिक्रिया कराने पर तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है। इसमें अभिक्रिया का वेग केवल एक [[अभिकारक]] की सांद्रता पर निर्भर करता है। इसलिए इस [[अभिक्रिया की कोटि]] भी एक होती है। यही कारण है कि इसे S<sub>N</sub><sup>1</sup> अभिक्रिया भी कहते हैं।
 
<chem>(CH3)3C-Br + OH- -> (CH3)3COH + Br-</chem>
 
यह अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है।
===प्रथम चरण===
प्रथम चरण सबसे धीमा तथा उत्क्रमणीय होता है जिसमें C - Br आबंध का विदलन होता है जिसके लिए ऊर्जा प्रोटिक विलायकों के प्रोटॉन द्वारा हैलाइड आयन के विलायक योजन से प्राप्त होती है। कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व जितना अधिक होगा एल्किल हैलाइड से उनका विरचन उतना ही अधिक आसान होगा तथा अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होगा। 3<sup>o</sup> एल्किल हैलाइड तीव्रता से अभिक्रिया देते हैं क्योकीं 3<sup>०</sup> कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत आदिक होता है।
 
'''3<sup>o</sup> > 2<sup>o</sup> > 1<sup>o</sup>'''
 
कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम
 
प्रथम चरण में ध्रुवीय C - Br आबंध के विदलन से एक कार्बधात्विक [[आयन]] और एक ब्रोमाइड आयन बनता है।
 
<chem>(CH3)3C-Br  <=> C+(CH3)3 +Br-</chem>
 
== अभ्यास प्रश्न ==
 
* कार्बधात्विक यौगिक किस प्रकार प्राप्त होते हैं ?
* कार्बधात्विक यौगिकों के स्थायित्व का क्रम बताइये।

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कार्बधात्विक यौगिक एक धनात्मक आवेशित कार्बन आयन है, जहां कार्बन परमाणु में केवल तीन बंध और एक खाली P ऑर्बिटल होता है। कार्बधात्विक यौगिक कार्बनिक रसायन विज्ञान में इलेक्ट्रॉन की कमी के कारण अत्यधिक अभिक्रियाशील मध्यवर्ती होते हैं, जो उन्हें न्यूक्लियोफिलिक हमले के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।

कार्बधात्विक यौगिक के प्रकार

कार्बधात्विक यौगिक तीन प्रकार के होते हैं:

प्राथमिक कार्बधात्विक यौगिक: यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन एक अन्य कार्बन परमाणु से जुड़ा होता है।

द्वितीयक कार्बधात्विक यौगिक: यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन दो अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है।

तृतीयक कार्बधात्विक यौगिक: यह तब बनता है जब धनावेशित कार्बन तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है।

कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत अधिक होता है।

3o > 2o > 1o

तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक

कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम

यह स्थिरता क्रम आगमनात्मक प्रभाव और अतिसंयुग्मन के कारण होता है। तृतीयक कार्बधात्विक यौगिक के मामले में, धनात्मक आवेश को कार्बन परमाणु से जुड़े इलेक्ट्रॉन-दान करने वाले एल्काइल समूहों द्वारा स्थिर किया जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन की कमी कम हो जाती है और कार्बधात्विक यौगिक अधिक स्थिर हो जाता है।

कार्बधात्विक यौगिक कई कार्बनिक अभिक्रियाओं में महत्वपूर्ण मध्यवर्ती हैं, जिनमें न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन, इलेक्ट्रोफिलिक योग और विलोपन अभिक्रियाएं शामिल हैं।

SN1 अभिक्रियाएं

SN1 अभिक्रियाएं सामान्यतः ध्रुवीय प्रोटिक विलायकों में संपन्न होती हैं ये ध्रुवीय प्रोटिक विलायक हैं। एल्कोहॉल, एसीटिक अम्ल, जल आदि। तृतीयक ब्यूटिल ब्रोमाइड की हाइड्रॉक्साइड आयन से अभिक्रिया कराने पर तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है। इसमें अभिक्रिया का वेग केवल एक अभिकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है। इसलिए इस अभिक्रिया की कोटि भी एक होती है। यही कारण है कि इसे SN1 अभिक्रिया भी कहते हैं।

यह अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है।

प्रथम चरण

प्रथम चरण सबसे धीमा तथा उत्क्रमणीय होता है जिसमें C - Br आबंध का विदलन होता है जिसके लिए ऊर्जा प्रोटिक विलायकों के प्रोटॉन द्वारा हैलाइड आयन के विलायक योजन से प्राप्त होती है। कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व जितना अधिक होगा एल्किल हैलाइड से उनका विरचन उतना ही अधिक आसान होगा तथा अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होगा। 3o एल्किल हैलाइड तीव्रता से अभिक्रिया देते हैं क्योकीं 3 कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत आदिक होता है।

3o > 2o > 1o

कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम

प्रथम चरण में ध्रुवीय C - Br आबंध के विदलन से एक कार्बधात्विक आयन और एक ब्रोमाइड आयन बनता है।

अभ्यास प्रश्न

  • कार्बधात्विक यौगिक किस प्रकार प्राप्त होते हैं ?
  • कार्बधात्विक यौगिकों के स्थायित्व का क्रम बताइये।