लीलावती में 'तौल और माप': Difference between revisions

From Vidyalayawiki

(New Mathematics Organic Hindi Translated Page Created)
 
mNo edit summary
 
(4 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:


==भूमिका==
यहां हम उन नामों को जानेंगे जो लीलावती में उल्लिखित तौल और माप को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
यहां हम उन नामों को जानेंगे जो लीलावती में उल्लिखित तौल और माप को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होते हैं।
==श्लोक सं. 2 :==
==श्लोक सं. 2 :==
Line 61: Line 60:
==संदर्भ==
==संदर्भ==
<references />
<references />
[[Category:गणित]]
[[Category:लीलावती में गणित]][[Category:सामान्य श्रेणी]]
[[Category:लीलावती]]

Latest revision as of 18:02, 30 August 2023

यहां हम उन नामों को जानेंगे जो लीलावती में उल्लिखित तौल और माप को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होते हैं।

श्लोक सं. 2 :

वराटकानां दशकद्वयं यत् सा काकिणी ताश्च पणश्चतस्रः ।

ते षोडश द्रम्म इहावगम्यो द्रम्मैस्तथा षोडशभिश्च निष्कः ॥ 2 ॥

अनुवाद 2 :

दो दहाई (यानी बीस) वराटकों से एक काकिणी क्या बनती है? चार काकिणी, एक पण बनाती हैं। सोलह पणों से एक द्रम्म बनता है। सोलह द्रम्मों द्वारा एक निष्क।

सारांश:

20 वराटक = 1 काकिणी
4 काकिणी = 1 पण
16 पण = 1 द्रम्म
16 द्रम्म = 1 निष्क

श्लोक सं. 3 :

तुल्या यवाभ्यां कथितात्र गुञ्जा वल्लस्त्रिगुञ्जो धरणं च तेऽष्टौ ।

गद्याणकस्तद्द्वयमिन्दतुल्यैः वल्लैस्तथैको धटकः प्रदिष्टः ॥ 3 ॥

अनुवाद 3 :

यहाँ (अर्थात इस विज्ञान में) एक गुञ्जा को दो यवों के बराबर कहा गया है; एक वल्ल तीन गुञ्जाओं का (कहा जाता है) है; एक धरण (कहा जाता है) (ऊपर परिभाषित) आठ वल्ल; उनमें से एक जोड़ी (अर्थात धरण) (के बराबर दी गई है) एक गद्याणक; एक धटक को चौदह वल्लों के बराबर परिभाषित किया गया है।

यह आयत सोने और चाँदी जैसी कीमती धातुओं को तोलने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मापों की नहीं बल्कि तौलों की सूची देती है। सबसे छोटा भार यव है, जो जौ के दाने का दाना होता है।

सारांश:

2 यव = 1 गुञ्जा
3 गुञ्जा = 1 वल्ल
8 वल्ल = 1 धरण
2 धरण = 1 गद्याणक
14 वल्ल = 1 धटक

ध्यान दें कि इंद्र शब्द 14 की संख्या को दर्शाता है, क्योंकि 14 इंद्र हैं। [1] इंद्र शब्द को शब्द संख्या या शब्द अंक कहा जाता है; इसके विपरीत कैटर दशा शब्द को संख्यावाचक शब्द कहते हैं। यह प्राचीन भारतीय गणितज्ञों की एक प्रथा है कि संख्याओं को ऐसे शब्दों के माध्यम से निरूपित किया जाता है जो एक महत्व को दर्शाता है और जिसमें चीजों या वस्तुओं की स्थायी रूप से निश्चित संख्या होती है। इस प्रकार, चूँकि 'आँखें' हमेशा 'दो' होती हैं, संस्कृत शब्द नेत्रा (और फलस्वरूप इसके सभी समानार्थक शब्द) संख्या '2' को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

श्लोक सं. 4 :

दशार्धगुञ्जं प्रवदन्ति माषम् माषाह्वयैः षोडाभिश्च कर्षम् ।

कर्षैश्चतुर्भिश्च पलं तुलाज्ञा: कर्षं सुवर्णस्य सुवर्णसंज्ञम् ॥ 4॥

अनुवाद 4 :

वे माष को दस गुञ्जा के आधे के रूप में परिभाषित करते हैं; सोलह माष द्वारा (वे परिभाषित करते हैं) कर्ष; चार कर्षों द्वारा (संरचना) एक पल में संतुलन के विशेषज्ञ (बोलते हैं); सुवर्ण के कर्ष (मामले में) का नाम सुवर्ण ही है।

सारांश:

5 गुञ्जा = 1 माष
16 माष = 1 कर्ष
4 कर्ष = 1 पल
सोने के मामले में 1 कर्ष = 1 सुवर्ण

यह भी देखें

Weights & Measures in Līlāvatī

संदर्भ

  1. (पंडित, एम.डी. लीलावती भास्कराचार्य भाग I. पुणे। पृष्ठ 24.)"Pandit, M.D. Līlāvatī Of Bhaskarācārya Part I. Pune. p. 24."