प्रत्यास्थ सीमा: Difference between revisions

From Vidyalayawiki

Listen

No edit summary
No edit summary
 
(11 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
elastic limit
elastic limit


प्रत्यास्थ सीमा, जिसे लब्ध बिंदु के रूप में भी जाना जाता है, पदार्थों की एक वह संपत्ति है, जो तनाव या बल को परिभाषित करती है । पदार्थों (अथवा पदार्थों से बनी,सामग्रियों,जैसे धातु अथवा मिश्र धातु) के अभिकल्पन में,तनाव या बल के आरोपण पर भी ,स्थायी विरूपण रहित संयोजन ,के सही उपयोग से,इस प्रकार की वस्तुओं के,अभिकल्पन में प्रत्यास्थ सीमा का वयवाहरिक उपयोग होता है । यह वह बिंदु है जिस पर प्रत्यास्थ विरूपण प्लास्टिक विरूपण में परिवर्तित हो जाता है।
प्रत्यास्थ सीमा, जिसे लब्ध बिंदु के रूप में भी जाना जाता है, पदार्थों की एक वह संपत्ति है, जो तनाव या बल के आरोपण पर उस पदार्थ में आए भौतिक बदलाव को परिभाषित करने में सुविधा करती है। यहाँ ये ज्ञात रहे के "बिन्दु" और "सीमा" जैसे तकनीकी शब्द पदार्थों में हुए भौतिक बदलाव को इंगित करने में इस लीये प्रयुक्त होते हैं क्यों की विज्ञान में प्रत्यास्थता,तन्यता इत्यादि,पदार्थों के वे गुण हैं जिनको परिभाषित करने में गणितीय विधा के आरेखीय पहलू का प्रयोग होता है। इस लेख में उस पहलू का संक्षेपित वर्णन समाहित है।   
 
यहाँ यह ज्ञान कर लेना भी श्रेयस्कर है की कुच्छ सामग्री (अथवा वस्तु) पदार्थों के मिश्रण से अभिकल्पित हुई होती हैं । ऐसे में तनाव या बल के आरोपण पर भी, पदार्थ स्तर पर स्थायी विरूपण रहित संयोजन बने रहने से उस मिश्रित धातु से बनी सामग्री के प्रत्यास्थ सीमा के अंदर सही व्यवाहरिक उपयोग का पता चलता है।
 
यदि ऐसी वस्तु के तनाव ग्रसित होने पर उसके प्रतिबल-आधीन व्यवहार की परख  क्रमशः मापन बिंदूओं  के संयोजन से की जाए तो यह पाया जाएगा की,तनाव-प्रतिबल आरेख पर यह (प्रत्यास्थ सीमा) वह बिंदु है, जिस पर प्रत्यास्थ (इलैस्टिक) विरूपण, सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण में परिवर्तित हो जाता है।


== आरेखीय निरूपण ==
== आरेखीय निरूपण ==
मिश्रित पदार्थों से बनी हुई अथवा अ-मिश्रित शुद्ध पदार्थों से बनी सामग्रियों द्वारा प्रदर्शित तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजनों में उत्पन्न वक्रों की विस्तृत विविधता के कारण लब्ध अवस्था को सटीक रूप से परिभाषित करना,प्रायः कठिन होता है। इसके अतिरिक्त, लब्ध अवस्था को परिभाषित करने की कई संभावनाएं हैं:
मिश्रित पदार्थों से बनी हुई अथवा अ-मिश्रित शुद्ध पदार्थों से बनी सामग्रियों द्वारा प्रदर्शित तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजनों में उत्पन्न वक्रों की विस्तृत विविधता के कारण लब्ध अवस्था को सटीक रूप से परिभाषित करना,प्रायः कठिन होता है। इसके अतिरिक्त, लब्ध अवस्था को परिभाषित करने की कई संभावनाएं हैं:
[[File:Rock plasticity compression plain.svg|thumb|अलौह मिश्र धातुओं के तनाव-प्रतिबल के आरेख में वक्रता ,द्वारा विशिष्ट लब्ध व्यवहार का चित्रत वर्णन । यहाँ तनाव को  σ  द्वारा इंगित कीया गया है और ε , को तनाव के एक कार्य के रूप में दिखाया गया है । ]]
[[File:Rock plasticity compression plain.svg|thumb|ऐसे मिश्र धातु पदार्थ से बनी सामग्रियों जिनमें लौह पदार्थ उपस्थित न हों के तनाव-प्रतिबल आरेख में वक्रता ,द्वारा विशिष्ट लब्ध व्यवहार का चित्रत वर्णन । यहाँ तनाव और तनाव के कार्य के रूप , को क्रमशः σ और ε द्वारा इंगित कीया गया है । ]]
साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत हो जाती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकार बदल सकता है और बलों को हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप में वापस आ सकता है। पदार्थों में  प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो जाते हैं, लेकिन उन पदार्थ अथवा पदार्थ से बनी सामग्री के तनाव मुक्त होने पर ऐसी वस्तुएं अपनी मूल स्थिति आ जाती हैं।
साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत होती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकृति  परिवर्तित कर सकती है और बलों के हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप( आकार अथवा आकृति ) में वापस आ सकता है। पदार्थों में  प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो रहे होते हैं । इस प्रकार की विरूपण प्रक्रीया में पदार्थ (अथवा पदार्थों) से बनी सामग्रीयों  में आरोपित बल के संश्लेषित न होने पर तनाव मुक्त अवस्था आने पर इस प्रकार के पदार्थों से बनी वस्तुएं, अपनी मूल अवस्था में पुनः स्थित हो जाती हैं।
 
== तनाव रहित अवस्था व पदार्थों में सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण ==
 


हालाँकि, यदि लागू तनाव या बल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो सामग्री प्लास्टिक विरूपण से गुजर जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था शामिल होती है, जिसके परिणामस्वरूप बलों को हटा दिए जाने के बाद भी आकार या आकार में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।
यदि आरोपित तनाव या प्रतिबल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो कुछ विशेष प्रकार की सामग्रीयों में  सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण की अवस्था आ जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था संमलित होती है । ऐसी अवस्था में  परिणामी बलों के हट जाने पर भी, पदार्थ (अथवा पदार्थों) से बनी सामग्री(यों) के आकार या आकृति  में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।


इंजीनियरिंग और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। यह किसी सामग्री के लिए सुरक्षित परिचालन सीमा निर्धारित करने में मदद करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव कर सकती है। इंजीनियर संरचनाओं और घटकों को डिजाइन करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं जो इस सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकते हैं।
== प्रत्यास्थ सीमा : एक महत्वपूर्ण मापदंड ==
अभियंत्रिकी (इंजीनियरिंग)और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण मापदंड  है। यह किसी पदार्थ (सामग्री) के सुरक्षित परिचालन की सीमा निर्धारित करने में सुविधा करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव (संरचनात्मक विफलता ) कर सकती है। अभियंता ( पदार्थ वैज्ञानिक इत्यादि) संरचनाओं व संरचनाओं के घटकों के अभिकल्पन करने के लिए, प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं । उदाहरण के लीये काष्ठ अथवा लोहे से बने पुल की भार वहन करने की क्षमता  सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकना इस पर निर्भर करता है की इस संरचना की कुल प्रत्यास्थ सीमा कितनी है।


== ध्यान देने योग्य ==
== ध्यान देने योग्य ==
यह ध्यान देने योग्य है कि विभिन्न सामग्रियों की अलग-अलग प्रत्यास्थ सीमाएँ होती हैं। कुछ सामग्रियां, जैसे कि कुछ धातुएं, प्लास्टिक विरूपण से गुजरने से पहले अपेक्षाकृत उच्च तनाव स्तर का सामना कर सकती हैं, जबकि अन्य, जैसे प्लास्टिक, में कम प्रत्यास्थ सीमाएं हो सकती हैं। प्रत्यास्थ सीमा तापमान और तनाव लागू होने की दर जैसे कारकों पर भी निर्भर हो सकती है।
मानक माप के दृष्टि कोण से, विभिन्न सामग्रियों का बल-आवेशित अवस्था में, विलग व्यवहार, उनके अलग अलग प्रत्यास्थ सीमाओं के प्रदर्शन से निरूपित होता है। कुछ सामग्रियां, जैसे कि कुछ धातुएं, प्लास्टिक विरूपण से गुजरने से पहले अपेक्षाकृत उच्च तनाव स्तर का सामना कर सकती हैं, जबकि अन्य सामग्रीयाँ, जैसे प्लास्टिक (से बनी वस्तुएं ), की प्रत्यास्थ सीमाएं अपेक्षा कृत कम हो सकती है। प्रत्यास्थ सीमा,तापमान और तनाव आरोपण की दर, जैसे कारकों पर भी निर्भर हो सकती है।
[[Category:ठोसों के यंत्रिक गुण]][[Category:कक्षा-11]][[Category:भौतिक विज्ञान]]
[[Category:ठोसों के यंत्रिक गुण]][[Category:कक्षा-11]][[Category:भौतिक विज्ञान]]

Latest revision as of 09:19, 12 April 2024

elastic limit

प्रत्यास्थ सीमा, जिसे लब्ध बिंदु के रूप में भी जाना जाता है, पदार्थों की एक वह संपत्ति है, जो तनाव या बल के आरोपण पर उस पदार्थ में आए भौतिक बदलाव को परिभाषित करने में सुविधा करती है। यहाँ ये ज्ञात रहे के "बिन्दु" और "सीमा" जैसे तकनीकी शब्द पदार्थों में हुए भौतिक बदलाव को इंगित करने में इस लीये प्रयुक्त होते हैं क्यों की विज्ञान में प्रत्यास्थता,तन्यता इत्यादि,पदार्थों के वे गुण हैं जिनको परिभाषित करने में गणितीय विधा के आरेखीय पहलू का प्रयोग होता है। इस लेख में उस पहलू का संक्षेपित वर्णन समाहित है।

यहाँ यह ज्ञान कर लेना भी श्रेयस्कर है की कुच्छ सामग्री (अथवा वस्तु) पदार्थों के मिश्रण से अभिकल्पित हुई होती हैं । ऐसे में तनाव या बल के आरोपण पर भी, पदार्थ स्तर पर स्थायी विरूपण रहित संयोजन बने रहने से उस मिश्रित धातु से बनी सामग्री के प्रत्यास्थ सीमा के अंदर सही व्यवाहरिक उपयोग का पता चलता है।

यदि ऐसी वस्तु के तनाव ग्रसित होने पर उसके प्रतिबल-आधीन व्यवहार की परख क्रमशः मापन बिंदूओं के संयोजन से की जाए तो यह पाया जाएगा की,तनाव-प्रतिबल आरेख पर यह (प्रत्यास्थ सीमा) वह बिंदु है, जिस पर प्रत्यास्थ (इलैस्टिक) विरूपण, सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण में परिवर्तित हो जाता है।

आरेखीय निरूपण

मिश्रित पदार्थों से बनी हुई अथवा अ-मिश्रित शुद्ध पदार्थों से बनी सामग्रियों द्वारा प्रदर्शित तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजनों में उत्पन्न वक्रों की विस्तृत विविधता के कारण लब्ध अवस्था को सटीक रूप से परिभाषित करना,प्रायः कठिन होता है। इसके अतिरिक्त, लब्ध अवस्था को परिभाषित करने की कई संभावनाएं हैं:

ऐसे मिश्र धातु पदार्थ से बनी सामग्रियों जिनमें लौह पदार्थ उपस्थित न हों के तनाव-प्रतिबल आरेख में वक्रता ,द्वारा विशिष्ट लब्ध व्यवहार का चित्रत वर्णन । यहाँ तनाव और तनाव के कार्य के रूप , को क्रमशः σ और ε द्वारा इंगित कीया गया है ।

साधारणतः कोई भी पदार्थ,बाह्य बलों या भार के अधीन होकर, विकृत अवस्था में आ जाता है। एक निश्चित बिंदु ( जिसे तनाव-प्रतिबल के आरेखीय संयोजन पर इंगित कीया जा सकता है) तक, जिसे प्रत्यास्थ सीमा के रूप में जाना जाता है, सामग्री प्रत्यास्थ रूप से विकृत होती है, जिसका अर्थ है कि यह अस्थायी रूप से आकार या आकृति परिवर्तित कर सकती है और बलों के हटा दिए जाने पर अपने मूल रूप( आकार अथवा आकृति ) में वापस आ सकता है। पदार्थों में प्रत्यास्थ विकृति इसलिए होती है क्योंकि उनमें विद्यमान,परमाणु या अणु, अपनी संतुलन स्थिति से विस्थापित हो रहे होते हैं । इस प्रकार की विरूपण प्रक्रीया में पदार्थ (अथवा पदार्थों) से बनी सामग्रीयों में आरोपित बल के संश्लेषित न होने पर तनाव मुक्त अवस्था आने पर इस प्रकार के पदार्थों से बनी वस्तुएं, अपनी मूल अवस्था में पुनः स्थित हो जाती हैं।

तनाव रहित अवस्था व पदार्थों में सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण

यदि आरोपित तनाव या प्रतिबल प्रत्यास्थ सीमा से अधिक हो जाता है, तो कुछ विशेष प्रकार की सामग्रीयों में सुघट्य (प्लास्टिक) विरूपण की अवस्था आ जाएगी। प्लास्टिक विरूपण में सामग्री की परमाणु या आणविक संरचना की स्थायी पुनर्व्यवस्था संमलित होती है । ऐसी अवस्था में परिणामी बलों के हट जाने पर भी, पदार्थ (अथवा पदार्थों) से बनी सामग्री(यों) के आकार या आकृति में स्थायी परिवर्तन होता है। एक बार जब सामग्री इस बिंदु पर पहुंच जाती है, तो यह अपने मूल आकार और आकार को पूरी तरह से पुनः प्राप्त नहीं कर पाती है।

प्रत्यास्थ सीमा : एक महत्वपूर्ण मापदंड

अभियंत्रिकी (इंजीनियरिंग)और पदार्थ विज्ञान में विचार करने के लिए प्रत्यास्थ सीमा एक महत्वपूर्ण मापदंड है। यह किसी पदार्थ (सामग्री) के सुरक्षित परिचालन की सीमा निर्धारित करने में सुविधा करता है, जिसके परे वह विफल हो सकती है या स्थायी क्षति का अनुभव (संरचनात्मक विफलता ) कर सकती है। अभियंता ( पदार्थ वैज्ञानिक इत्यादि) संरचनाओं व संरचनाओं के घटकों के अभिकल्पन करने के लिए, प्रत्यास्थ सीमा के ज्ञान का उपयोग करते हैं । उदाहरण के लीये काष्ठ अथवा लोहे से बने पुल की भार वहन करने की क्षमता सीमा को पार किए बिना अपेक्षित भार का सामना कर सकना इस पर निर्भर करता है की इस संरचना की कुल प्रत्यास्थ सीमा कितनी है।

ध्यान देने योग्य

मानक माप के दृष्टि कोण से, विभिन्न सामग्रियों का बल-आवेशित अवस्था में, विलग व्यवहार, उनके अलग अलग प्रत्यास्थ सीमाओं के प्रदर्शन से निरूपित होता है। कुछ सामग्रियां, जैसे कि कुछ धातुएं, प्लास्टिक विरूपण से गुजरने से पहले अपेक्षाकृत उच्च तनाव स्तर का सामना कर सकती हैं, जबकि अन्य सामग्रीयाँ, जैसे प्लास्टिक (से बनी वस्तुएं ), की प्रत्यास्थ सीमाएं अपेक्षा कृत कम हो सकती है। प्रत्यास्थ सीमा,तापमान और तनाव आरोपण की दर, जैसे कारकों पर भी निर्भर हो सकती है।