हाइड्रॉलिक धुलाई: Difference between revisions

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हाइड्रोलिक धुलाई प्रक्रिया अयस्कों को जल की धारा में धोकर की जाती है। यदि कोई अयस्क में गैंग उपस्थित है तो वो भारी या सघन होगा, तो उस अयस्क को जल की तेज धराा में धोया जाता है जिससे गैंग के कण धारा के साथ बह जाते हैं। भारी या सघन अयस्क कण पीछे रह जाते हैं और उन्हें एकत्र किया जा सकता है। हाइड्रोलिक धुलाई उन अयस्कों के लिए की जाती है जिनमें टिन या सीसा होता है, क्योंकि वे गैंग से भारी पाए जाते हैं।
हाइड्रोलिक धुलाई प्रक्रिया अयस्कों को जल की धारा में धोकर की जाती है। यदि कोई अयस्क में गैंग उपस्थित है तो वो भारी या सघन होगा, तो उस अयस्क को जल की तेज धराा में धोया जाता है जिससे गैंग के कण धारा के साथ बह जाते हैं। भारी या सघन अयस्क कण पीछे रह जाते हैं और उन्हें एकत्र किया जा सकता है। हाइड्रोलिक धुलाई उन अयस्कों के लिए की जाती है जिनमें टिन या सीसा होता है, क्योंकि वे गैंग से भारी पाए जाते हैं।


हाइड्रोलिक धुलाई एक प्रकार की गुरुत्वाकर्षण पृथक्करण विधि है, जो अयस्क और गैंग कणों के बीच गुरुत्वाकर्षण अंतर पर आधारित है। इस प्रक्रिया में, हल्के गैंग के कण जल की धारा में बह जाते हैं और भारी अयस्क पीछे रह जाते हैं।
हाइड्रोलिक धुलाई एक प्रकार की गुरुत्वाकर्षण पृथक्करण विधि है, जो अयस्क और गैंग कणों के बीच गुरुत्वाकर्षण अंतर पर आधारित है। इस प्रक्रिया में, हल्के गैंग के कण जल की धारा में बह जाते हैं और भारी [[अयस्क]] पीछे रह जाते हैं।
 
अवांछित पदार्थ जैसे क्ले, रेत आदि से अयस्क का निष्कासन अयस्कों का सांद्रण कहलाता है। सांद्रण की क्रिया से पहले अयस्कों को श्रेणीकृत किया जाता है और इसे उचित प्रकार में तोडा जाता है। तत्वों का पृथक्करण निम्नलिखित को विधियों से किया जाता है:
==हाइड्रॉलिक धुलाई==
[[घनत्वीय पृथक्करण]] को ही गुरत्वीय पृथक्क़रण भी कहा जाता है। इसे द्रवीय धावन भी कहा जाता है। यह विधि [[अयस्क]] तथा गैंग कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अंतर पर निर्भर करता है। अतः इस तरह का सांद्रण गुरत्वीय पृथकरण विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के एक प्रक्रम में चूर्णित अयस्क को  जल की धारा में धोया जाता है जिस कारण गैंग के कण हल्के होने के कारण जल के साथ निकलकर बह जाते हैं तथा भारी अयस्क के कण नीचे बैठ जाते हैं। यह विधि अयस्क तथा उसमें उपस्थित कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अन्तर के आधार पर कार्य करती है। इस विधि में अयस्क को कूटकर तथा पीसकर छान लेते हैं और बड़े उथले टैंकों में भरकर जल की तेज धारा से धोते हैं। अयस्क के भारी कण नीचे बैठ जाते हैं और हल्के गैंग कण जल की धारा के साथ बह जाते हैं। इसे लेवीगेशन विधि (Levigation method) भी कहा जाता है। प्रायः ऑक्साइड का सान्द्रण इसी विधि से करते हैं।
===उदाहरण===
Al<sub>2</sub>O<sub>3</sub>, SnO<sub>2</sub>, Fe<sub>3</sub>O<sub>4</sub> आदि
==अभ्यास प्रश्न==
*हाइड्रॉलिक धुलाई से आप क्या समझते हैं ?
*[[धातुकर्म]] से आप क्या समझते हैं?
*[[खनिज]] से आप क्या समझते हैं?
*चुंबकीय पृथक्करण किन अयस्कों के सांद्रण के लिए प्रयोग की जाती है।

Latest revision as of 16:38, 30 May 2024

हाइड्रोलिक धुलाई प्रक्रिया अयस्कों को जल की धारा में धोकर की जाती है। यदि कोई अयस्क में गैंग उपस्थित है तो वो भारी या सघन होगा, तो उस अयस्क को जल की तेज धराा में धोया जाता है जिससे गैंग के कण धारा के साथ बह जाते हैं। भारी या सघन अयस्क कण पीछे रह जाते हैं और उन्हें एकत्र किया जा सकता है। हाइड्रोलिक धुलाई उन अयस्कों के लिए की जाती है जिनमें टिन या सीसा होता है, क्योंकि वे गैंग से भारी पाए जाते हैं।

हाइड्रोलिक धुलाई एक प्रकार की गुरुत्वाकर्षण पृथक्करण विधि है, जो अयस्क और गैंग कणों के बीच गुरुत्वाकर्षण अंतर पर आधारित है। इस प्रक्रिया में, हल्के गैंग के कण जल की धारा में बह जाते हैं और भारी अयस्क पीछे रह जाते हैं।

अवांछित पदार्थ जैसे क्ले, रेत आदि से अयस्क का निष्कासन अयस्कों का सांद्रण कहलाता है। सांद्रण की क्रिया से पहले अयस्कों को श्रेणीकृत किया जाता है और इसे उचित प्रकार में तोडा जाता है। तत्वों का पृथक्करण निम्नलिखित को विधियों से किया जाता है:

हाइड्रॉलिक धुलाई

घनत्वीय पृथक्करण को ही गुरत्वीय पृथक्क़रण भी कहा जाता है। इसे द्रवीय धावन भी कहा जाता है। यह विधि अयस्क तथा गैंग कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अंतर पर निर्भर करता है। अतः इस तरह का सांद्रण गुरत्वीय पृथकरण विधि द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के एक प्रक्रम में चूर्णित अयस्क को  जल की धारा में धोया जाता है जिस कारण गैंग के कण हल्के होने के कारण जल के साथ निकलकर बह जाते हैं तथा भारी अयस्क के कण नीचे बैठ जाते हैं। यह विधि अयस्क तथा उसमें उपस्थित कणों के आपेक्षिक घनत्वों के अन्तर के आधार पर कार्य करती है। इस विधि में अयस्क को कूटकर तथा पीसकर छान लेते हैं और बड़े उथले टैंकों में भरकर जल की तेज धारा से धोते हैं। अयस्क के भारी कण नीचे बैठ जाते हैं और हल्के गैंग कण जल की धारा के साथ बह जाते हैं। इसे लेवीगेशन विधि (Levigation method) भी कहा जाता है। प्रायः ऑक्साइड का सान्द्रण इसी विधि से करते हैं।

उदाहरण

Al2O3, SnO2, Fe3O4 आदि

अभ्यास प्रश्न

  • हाइड्रॉलिक धुलाई से आप क्या समझते हैं ?
  • धातुकर्म से आप क्या समझते हैं?
  • खनिज से आप क्या समझते हैं?
  • चुंबकीय पृथक्करण किन अयस्कों के सांद्रण के लिए प्रयोग की जाती है।