जलविरागी: Difference between revisions

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साबुन के दोनों सिरों के गुणधर्म भिन्न भिन्न होते हैं। इसके विपरीत वह सिरा जो जल में अविलेय होता है तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय होता है उसे जलविरागी कहते हैं। जल में विलेय एक सिरे को जलरागी कहते हैं जलरागी का अर्थ है वह भाग जिसे जल से स्नेह हो उसे जलरागी कहते हैं। और यह सिरा जल में विलेय होता है। इसके विपरीत वह सिरा जो जल में अविलेय होता है तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय होता है उसे जलविरागी कहते हैं।
 
साबुन के अणु ऐसे होते हैं। जिनके दोनों सिरों के गुणधर्म भिन्न भिन्न होते हैं। साबुन का वह सिरा जो जल में विलेय होता है उस सिरे को '''जलरागी''' कहते हैं तथा वह सिरा जो जल में अविलेय होता है उसे '''जलविरागी''' कहते हैं। जब जल साबुन की सतह पर होता है तब उसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं की इसका एक सिरा जल के अंदर होता है जबकि हाइड्रोकार्बन का दूसरा सिरा जल के बाहर होता है। जल के अंदर इन अणुओं की एक विशेष व्यवस्था होती है जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है। इसमें अणुओं का एक बड़ा गुच्छा बनता है। जलविरागी भाग आंतरिक हिस्से में होता है जबकि उसका आयनिक सिरा गुच्छे की सतह पर होता है। इस प्रकार जो संरचना प्राप्त होती है उसे मिसेल कहते हैं।
 
वे पदार्थ जो कम सांद्रता पर प्रबल वैधुत अपघट्यों के समान व्यवहार करते हैं , लेकिन उच्च सांद्रताओं पर ये कणों का एक पुंज बनाते हैं यह पुंज बनने के कारण ये कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के पुंजित कण मिसेल कहलाते हैं।

Revision as of 12:00, 12 June 2023

साबुन के दोनों सिरों के गुणधर्म भिन्न भिन्न होते हैं। इसके विपरीत वह सिरा जो जल में अविलेय होता है तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय होता है उसे जलविरागी कहते हैं। जल में विलेय एक सिरे को जलरागी कहते हैं जलरागी का अर्थ है वह भाग जिसे जल से स्नेह हो उसे जलरागी कहते हैं। और यह सिरा जल में विलेय होता है। इसके विपरीत वह सिरा जो जल में अविलेय होता है तथा हाइड्रोकार्बन में विलेय होता है उसे जलविरागी कहते हैं।

साबुन के अणु ऐसे होते हैं। जिनके दोनों सिरों के गुणधर्म भिन्न भिन्न होते हैं। साबुन का वह सिरा जो जल में विलेय होता है उस सिरे को जलरागी कहते हैं तथा वह सिरा जो जल में अविलेय होता है उसे जलविरागी कहते हैं। जब जल साबुन की सतह पर होता है तब उसके अणु अपने को इस प्रकार व्यवस्थित कर लेते हैं की इसका एक सिरा जल के अंदर होता है जबकि हाइड्रोकार्बन का दूसरा सिरा जल के बाहर होता है। जल के अंदर इन अणुओं की एक विशेष व्यवस्था होती है जिससे इसका हाइड्रोकार्बन सिरा जल के बाहर बना होता है। इसमें अणुओं का एक बड़ा गुच्छा बनता है। जलविरागी भाग आंतरिक हिस्से में होता है जबकि उसका आयनिक सिरा गुच्छे की सतह पर होता है। इस प्रकार जो संरचना प्राप्त होती है उसे मिसेल कहते हैं।

वे पदार्थ जो कम सांद्रता पर प्रबल वैधुत अपघट्यों के समान व्यवहार करते हैं , लेकिन उच्च सांद्रताओं पर ये कणों का एक पुंज बनाते हैं यह पुंज बनने के कारण ये कोलॉइड के समान व्यवहार करते हैं। इस प्रकार के पुंजित कण मिसेल कहलाते हैं।