प्राकृतिक चयन: Difference between revisions
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[[प्राकृतिक चयन]] एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप उनके पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त आनुवंशिक गुणों वाले जीवों का अस्तित्व और प्रजनन होता है। इसे सामान्यतः "योग्यतम की उत्तरजीविता" भी कहा जाता है। चार्ल्स डार्विन ने 19वीं शताब्दी में दो दशकों से अधिक समय तक प्रकृति पर व्यापक अध्ययन किया। जानवरों के वितरण तथा जीवित और विलुप्त जानवरों के बीच संबंध पर उनकी टिप्पणियाँ आने वाले वर्षों में बहुत प्रमुख हो गईं। विकासवाद के सिद्धांत में उनके योगदान के कारण, चार्ल्स डार्विन को विकासवाद के जनक के रूप में जाना जाने लगा। "डार्विन सिद्धांत" को अक्सर "प्राकृतिक चयन द्वारा विकास के डार्विन के सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है, जिसे चार्ल्स डार्विन ने 1859 में प्रकाशित अपने मौलिक कार्य, "ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़" में प्रस्तावित किया था। यह सिद्धांत मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। | |||
==प्राकृतिक चयन के सिद्धांत== | |||
प्राकृतिक चयन के 5 मुख्य सिद्धांत निम्न लिखित हैं: | |||
#संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता | |||
#सबसे योग्य संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की अधिक संभावना | |||
#[[प्रजनन]] होने और विकास होने के लिए पर्याप्त समय | |||
#आनुवंशिक भिन्नता होनी चाहिए जिससे सर्वोत्तम लक्षणों का चयन किया जा सके। | |||
===योग्यतम की उत्तरजीविता=== | |||
जीवित रहने और प्रजनन में लाभ प्रदान करने वाले गुणों वाले व्यक्तियों के जीवित रहने की संभावना अधिक होती है। ये लाभकारी गुण अगली पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं। चार्ल्स डार्विन के अनुसार, विकास एक क्रमिक और धीमी गति से होने वाली प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि में घटित हुई है। | |||
===प्राकृतिक चयन=== | |||
प्रजातियाँ समय के साथ बदलती या विकसित होती रहती हैं। जैसे-जैसे पर्यावरण बदलता है, जीवों की आवश्यकताएँ भी बदलती हैं और उन्हें अपने नए वातावरण के अनुकूल ढलने की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक आवश्यकताओं के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन की घटना को अनुकूलन कहा जाता है। वे परिवर्तन जो लाभदायक होते हैं वो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थान्तरित हो जाते हैं। और जो लाभदायक नहीं होते वो विलुप्त हो जाते हैं। | |||
===अस्तित्व के लिए संघर्ष करें=== | |||
सीमित संसाधनों के कारण जीव जीवित रहने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। संतानों का केवल एक अंश ही जीवित रहता है और [[प्रजनन]] करता है। चार्ल्स डार्विन के अनुसार, विकास एक क्रमिक और धीमी गति से होने वाली प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि में घटित हुई है। | |||
===संतानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता=== | |||
सभी जीवों में संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता होती है। अगर किसी भी जाति के सभी बच्चे जीवित रहें तो एक समय ऐसा आएगा कि पृथ्वी पर किसी और जाति के जीवों के लिए स्थान नहीं रहेगा। | |||
==अभ्यास प्रश्न== | |||
*डार्विन का पूरा नाम क्या है ? | |||
*डार्विन के नियम की प्रमुख विषेशताएं कौन कौन सी हैं ? | |||
*प्राकृतिक चयन द्वारा जातियों की उतपत्ति का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया है ? |
Revision as of 21:47, 11 August 2024
प्राकृतिक चयन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप उनके पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त आनुवंशिक गुणों वाले जीवों का अस्तित्व और प्रजनन होता है। इसे सामान्यतः "योग्यतम की उत्तरजीविता" भी कहा जाता है। चार्ल्स डार्विन ने 19वीं शताब्दी में दो दशकों से अधिक समय तक प्रकृति पर व्यापक अध्ययन किया। जानवरों के वितरण तथा जीवित और विलुप्त जानवरों के बीच संबंध पर उनकी टिप्पणियाँ आने वाले वर्षों में बहुत प्रमुख हो गईं। विकासवाद के सिद्धांत में उनके योगदान के कारण, चार्ल्स डार्विन को विकासवाद के जनक के रूप में जाना जाने लगा। "डार्विन सिद्धांत" को अक्सर "प्राकृतिक चयन द्वारा विकास के डार्विन के सिद्धांत" के रूप में जाना जाता है, जिसे चार्ल्स डार्विन ने 1859 में प्रकाशित अपने मौलिक कार्य, "ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़" में प्रस्तावित किया था। यह सिद्धांत मूलभूत सिद्धांतों में से एक है।
प्राकृतिक चयन के सिद्धांत
प्राकृतिक चयन के 5 मुख्य सिद्धांत निम्न लिखित हैं:
- संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता
- सबसे योग्य संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की अधिक संभावना
- प्रजनन होने और विकास होने के लिए पर्याप्त समय
- आनुवंशिक भिन्नता होनी चाहिए जिससे सर्वोत्तम लक्षणों का चयन किया जा सके।
योग्यतम की उत्तरजीविता
जीवित रहने और प्रजनन में लाभ प्रदान करने वाले गुणों वाले व्यक्तियों के जीवित रहने की संभावना अधिक होती है। ये लाभकारी गुण अगली पीढ़ी को हस्तांतरित होते हैं। चार्ल्स डार्विन के अनुसार, विकास एक क्रमिक और धीमी गति से होने वाली प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि में घटित हुई है।
प्राकृतिक चयन
प्रजातियाँ समय के साथ बदलती या विकसित होती रहती हैं। जैसे-जैसे पर्यावरण बदलता है, जीवों की आवश्यकताएँ भी बदलती हैं और उन्हें अपने नए वातावरण के अनुकूल ढलने की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक आवश्यकताओं के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन की घटना को अनुकूलन कहा जाता है। वे परिवर्तन जो लाभदायक होते हैं वो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थान्तरित हो जाते हैं। और जो लाभदायक नहीं होते वो विलुप्त हो जाते हैं।
अस्तित्व के लिए संघर्ष करें
सीमित संसाधनों के कारण जीव जीवित रहने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। संतानों का केवल एक अंश ही जीवित रहता है और प्रजनन करता है। चार्ल्स डार्विन के अनुसार, विकास एक क्रमिक और धीमी गति से होने वाली प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि में घटित हुई है।
संतानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता
सभी जीवों में संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता होती है। अगर किसी भी जाति के सभी बच्चे जीवित रहें तो एक समय ऐसा आएगा कि पृथ्वी पर किसी और जाति के जीवों के लिए स्थान नहीं रहेगा।
अभ्यास प्रश्न
- डार्विन का पूरा नाम क्या है ?
- डार्विन के नियम की प्रमुख विषेशताएं कौन कौन सी हैं ?
- प्राकृतिक चयन द्वारा जातियों की उतपत्ति का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया है ?