मृदा प्रदूषण: Difference between revisions
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'''मृदा प्रदूषण''' | '''मृदा प्रदूषण''' | ||
आधुनिक युग में, हम देख सकते हैं, कि मिट्टी ने अपनी पोषण गुणवत्ता खो दी है। लगातार रसायनों के मिट्टी में मिलने से मिट्टी की पोषक क्षमता खत्म हो चुकी है। पृथ्वी की मिट्टी पर जमा होने वाले जहरीले पदार्थ हमारे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन को नुकसान पहुंचाते | आधुनिक युग में, हम देख सकते हैं, कि मिट्टी ने अपनी पोषण गुणवत्ता खो दी है। लगातार रसायनों के मिट्टी में मिलने से मिट्टी की पोषक क्षमता खत्म हो चुकी है। पृथ्वी की मिट्टी पर जमा होने वाले जहरीले पदार्थ हमारे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं। मृदा क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में तक बहुत से लोग अपने रहने वाले क्षेत्र से पलायन कर जाएंगे। मृदा प्रदूषण के कारण ना सिर्फ हमारा वातावरण बल्कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास और वन्य संसाधन भी प्रभावित हो रहे हैं। प्रदूषण के कारण लगातार विश्व के अधिकांश जलोढ़ क्षेत्र या आर्द्रभूमियाँ ख़त्म हो रही हैं। मृदा प्रदूषण एक वैश्विक खतरा है जो यूरोप , एशिया और उत्तरी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से गंभीर समस्या बन कर उभर कर सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने संकेत दिया है कि मानवीय गतिविधियां पहले से ही दुनिया की एक तिहाई मिट्टी को प्रभावित कर रही है। बढ़ते औद्योगिक क्षेत्रों, शहरीकरण और उनके अपशिष्ट कुप्रबंधन के कारण पूरी दुनिया की पोषक मिट्टी मरुस्थलीकरण की ओर जा रही है। | ||
हम खाद और उर्वरक के बिना कोई भी फसल उगाने में सक्षम नहीं हैं | हम खाद और उर्वरक के बिना कोई भी फसल उगाने में सक्षम नहीं हैं यह सब कुछ और नहीं मिट्टी का बांझपन ही है। ये रसायन भी मिट्टी की बांझपन के लिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वे मिट्टी के प्राकृतिक बायोम को नष्ट कर देते हैं, जो इसे पुनः पोषण प्राप्त करने में मदद करते हैं। | ||
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और मिट्टी की जल ग्रहण शक्ति में निरंतर गिरावट ही '''मृदा प्रदूषण''' है, संक्षेप में इसे '''मिट्टी की बांझपन''' या '''मरुस्थलीकरण''' कहा जा सकता है। | मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और मिट्टी की जल ग्रहण शक्ति में निरंतर गिरावट ही '''मृदा प्रदूषण''' है, संक्षेप में इसे '''मिट्टी की बांझपन''' या '''मरुस्थलीकरण''' कहा जा सकता है। | ||
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* इससे फसल की गुणवत्ता भी ख़राब हो जाती है। क्योंकि ये कीटनाशक पौधों की जड़ों द्वारा भी अवशोषित हो जाते हैं और फसल की वनस्पति में मिल जाते हैं। और जब ये फसल बाहरी क्षेत्र में निर्यात के लिए भेजी जाती है तो '''गुणवत्ता नियंत्रण विश्लेषण''' में '''फेल''' हो जाती है। ये उत्पाद खाने लायक सुरक्षित नहीं होता है। | * इससे फसल की गुणवत्ता भी ख़राब हो जाती है। क्योंकि ये कीटनाशक पौधों की जड़ों द्वारा भी अवशोषित हो जाते हैं और फसल की वनस्पति में मिल जाते हैं। और जब ये फसल बाहरी क्षेत्र में निर्यात के लिए भेजी जाती है तो '''गुणवत्ता नियंत्रण विश्लेषण''' में '''फेल''' हो जाती है। ये उत्पाद खाने लायक सुरक्षित नहीं होता है। | ||
== मृदा प्रदूषण के | == मृदा प्रदूषण के दुष्परिणाम == | ||
विभिन्न मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण | विभिन्न मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण मृदा प्रदूषित हो रही है, उपजाऊ भूमि क्षेत्र रेगिस्तान में बदल रहे हैं। मिट्टी अपने अंतर्निहित पोषण तत्वों को खो रही है, और उसकी जल धारण क्षमता भी समाप्त हो रही है। इस परिवर्तन के कारण अनेक पौधे एवं वनस्पतियाँ विलुप्त हो रही हैं। बहुत से लोग मृदा प्रदूषण जैसे गंभीर समस्या से पीड़ित होकर अपने मूल स्थान से दूसरे अन्य स्थान पर पलायन कर रहे हैं। हमारे भारत देश में प्राकृतिक जल संसाधन, नदियों का जाल सिंचाई और अन्य आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन बढ़ता रासायनिक कचरा इसे भी प्रदूषित कर रहा है। इस युग में, लोग स्वार्थी हो गए हैं, उन्हें पर्यावरण और अन्य कारकों की परवाह नहीं है। इसलिए विभिन्न देशों की सरकारों को इसे ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें ऐसी रणनीति बनानी चाहिए ताकि मिट्टी का दोहन रोका जा सके। | ||
== '''मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय''' == | == '''मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय''' == |
Revision as of 18:32, 14 October 2023
मृदा प्रदूषण
आधुनिक युग में, हम देख सकते हैं, कि मिट्टी ने अपनी पोषण गुणवत्ता खो दी है। लगातार रसायनों के मिट्टी में मिलने से मिट्टी की पोषक क्षमता खत्म हो चुकी है। पृथ्वी की मिट्टी पर जमा होने वाले जहरीले पदार्थ हमारे स्वास्थ्य और खुशहाल जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं। मृदा क्षरण और जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में तक बहुत से लोग अपने रहने वाले क्षेत्र से पलायन कर जाएंगे। मृदा प्रदूषण के कारण ना सिर्फ हमारा वातावरण बल्कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास और वन्य संसाधन भी प्रभावित हो रहे हैं। प्रदूषण के कारण लगातार विश्व के अधिकांश जलोढ़ क्षेत्र या आर्द्रभूमियाँ ख़त्म हो रही हैं। मृदा प्रदूषण एक वैश्विक खतरा है जो यूरोप , एशिया और उत्तरी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से गंभीर समस्या बन कर उभर कर सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने संकेत दिया है कि मानवीय गतिविधियां पहले से ही दुनिया की एक तिहाई मिट्टी को प्रभावित कर रही है। बढ़ते औद्योगिक क्षेत्रों, शहरीकरण और उनके अपशिष्ट कुप्रबंधन के कारण पूरी दुनिया की पोषक मिट्टी मरुस्थलीकरण की ओर जा रही है।
हम खाद और उर्वरक के बिना कोई भी फसल उगाने में सक्षम नहीं हैं यह सब कुछ और नहीं मिट्टी का बांझपन ही है। ये रसायन भी मिट्टी की बांझपन के लिए ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वे मिट्टी के प्राकृतिक बायोम को नष्ट कर देते हैं, जो इसे पुनः पोषण प्राप्त करने में मदद करते हैं।
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और मिट्टी की जल ग्रहण शक्ति में निरंतर गिरावट ही मृदा प्रदूषण है, संक्षेप में इसे मिट्टी की बांझपन या मरुस्थलीकरण कहा जा सकता है।
मृदा प्रदूषण के लिए उत्तरदाई कारक
- भारी वर्षा, तेज हवा, भूस्खलन के कारण मृदा अपरदन होता है। और मिट्टी की ऊपरी परत सबसे उपजाऊ होती है. इससे मिट्टी की गुणवत्ता कम हो सकती है।
- एक कृषि भूमि पर एक ही प्रकार की फसल करने से मिट्टी में पोषक तत्वों का अनुपात भी असंतुलित हो सकता है।
- औद्योगिक अपशिष्ट जल सीधे नदी या नहर में प्रवाहित होता है जिसका उपयोग कृषि भूमि में किया जाता है। इस गंदे पानी में प्रदूषक यौगिक, भारी धातु के अंश जैसे Pb , Hg होते हैं। यह न केवल मिट्टी को बल्कि फसल की वनस्पति को भी प्रदूषित करता है।
- अकार्बनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो जाती है और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से केंचुआ, राइजोबियम जैसे फसल के लिए उपयोगी जीव मर जाते हैं।
- इससे फसल की गुणवत्ता भी ख़राब हो जाती है। क्योंकि ये कीटनाशक पौधों की जड़ों द्वारा भी अवशोषित हो जाते हैं और फसल की वनस्पति में मिल जाते हैं। और जब ये फसल बाहरी क्षेत्र में निर्यात के लिए भेजी जाती है तो गुणवत्ता नियंत्रण विश्लेषण में फेल हो जाती है। ये उत्पाद खाने लायक सुरक्षित नहीं होता है।
मृदा प्रदूषण के दुष्परिणाम
विभिन्न मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण मृदा प्रदूषित हो रही है, उपजाऊ भूमि क्षेत्र रेगिस्तान में बदल रहे हैं। मिट्टी अपने अंतर्निहित पोषण तत्वों को खो रही है, और उसकी जल धारण क्षमता भी समाप्त हो रही है। इस परिवर्तन के कारण अनेक पौधे एवं वनस्पतियाँ विलुप्त हो रही हैं। बहुत से लोग मृदा प्रदूषण जैसे गंभीर समस्या से पीड़ित होकर अपने मूल स्थान से दूसरे अन्य स्थान पर पलायन कर रहे हैं। हमारे भारत देश में प्राकृतिक जल संसाधन, नदियों का जाल सिंचाई और अन्य आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त हैं। लेकिन बढ़ता रासायनिक कचरा इसे भी प्रदूषित कर रहा है। इस युग में, लोग स्वार्थी हो गए हैं, उन्हें पर्यावरण और अन्य कारकों की परवाह नहीं है। इसलिए विभिन्न देशों की सरकारों को इसे ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें ऐसी रणनीति बनानी चाहिए ताकि मिट्टी का दोहन रोका जा सके।
मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय
मृदा प्रदूषण एक जटिल समस्या है जिसके लिए सरकारों, संस्थानों, विभिन्न समुदायों और सभी वर्गों के लोगों को संयुक्त उपाय करने की आवश्यकता है।
- रासायनिक प्रसंस्करण वाली सब्जियों के बजाय स्वस्थ पौष्टिक खाद्य पदार्थ खाएं और यह तभी हो सकता है जब मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा होगा, ताकि हमें कृषि क्षेत्र में रसायनों का उपयोग न करना पड़े।
- कृषि खाद प्रयोजनों के लिए जैव खाद का उत्पादन करें। जैव खाद पशुओं के मूत्र और मल अपशिष्ट, मृत पौधों और पत्तियों और कार्बनिक पदार्थों से बनता है।
हमें जैविक उर्वरक और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करना चाहिए जो मिट्टी के स्वास्थ्य या वनस्पति को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। जैविक खाद में बायोमास को आसानी से हाइड्रेट किया जा सकता है और पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित किया जा सकता है।
यदि हम कीटनाशकों या उर्वरक का उपयोग करते हैं। वह उचित अनुपात में होना चाहिए, ताकि वह हमारी फसल को नष्ट न कर दे।
- सेल, सेमीकंडक्टर चिप, प्लास्टिक की बोतल, पॉलिथीन बैग, कांच के कचरे जैसी सामग्री को सीधे मिट्टी में न फेंके। धातु, कांच, प्लास्टिक कचरे का उचित तरीके से पुनर्चक्रण करें।
- इस प्रयोजन के लिए अधिकृत स्थानों पर समाप्त हो चुकी दवाओं और औषधियों का निपटान करें। अस्पताल के संक्रमण वाले सूक्ष्मजीव युक्त कचरे का उचित तरीके से निपटान करें।
- शहर का उचित अपशिष्ट प्रबंधन करें, शहरी नियोजन और परिवहन योजना और अपशिष्ट जल उपचार में सुधार करें।