जालक एन्थैल्पी: Difference between revisions
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NaCl की जालक एन्थैल्पी 788 k j mol<sup>-1</sup> है। इसका अर्थ यह है कि एक मोल ठोस NaCl को एक मोल Na<sup>+</sup> तथा एक मोल Cl<sup>-</sup> में वियोजित करने के लिए 788 k j mol<sup>-1</sup> ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होता है। लेकिन सिर्फ विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होने से ही जालक [[एन्थैल्पी]] का परिकलन नहीं किया जा सकता। | NaCl की जालक एन्थैल्पी 788 k j mol<sup>-1</sup> है। इसका अर्थ यह है कि एक मोल ठोस NaCl को एक मोल Na<sup>+</sup> तथा एक मोल Cl<sup>-</sup> में वियोजित करने के लिए 788 k j mol<sup>-1</sup> ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होता है। लेकिन सिर्फ विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होने से ही जालक [[एन्थैल्पी]] का परिकलन नहीं किया जा सकता। | ||
एक दूसरे से अनंत दूरियों द्वारा पृथक धनावेशित और ऋणावेशित आयनों को क्रिस्टल जालक में एक साथ लाने पर निर्मुक्त ऊर्जा आयनिक ठोस यौगिक की जालक ऊर्जा कहलाती है। | एक दूसरे से अनंत दूरियों द्वारा पृथक धनावेशित और ऋणावेशित आयनों को क्रिस्टल जालक में एक साथ लाने पर निर्मुक्त ऊर्जा [[आयनिक ठोस]] [[यौगिक]] की जालक ऊर्जा कहलाती है। | ||
<chem>Na+(g) + Cl-(g) -> NaCl(s), U0 = -789kjmol</chem><sup>-1</sup> | <chem>Na+(g) + Cl-(g) -> NaCl(s), U0 = -789kjmol</chem><sup>-1</sup> | ||
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किसी [[आयनिक यौगिक]] के क्रिस्टल या तो तत्वों के सीधे जुड़ने से बनते हैं या वैकल्पिक प्रक्रम द्वारा जिसमे अभिकारक वाष्पित किये जाते हैं, गैसीय परमाणु आयनों में परिवर्तित किये जाते हैं, और ये गैसीय आयन संयुक्त होकर उत्पाद बनाते हैं। इन सभी प्रक्रमों की | किसी [[आयनिक यौगिक]] के क्रिस्टल या तो तत्वों के सीधे जुड़ने से बनते हैं या वैकल्पिक प्रक्रम द्वारा जिसमे अभिकारक वाष्पित किये जाते हैं, गैसीय [[परमाणु]] आयनों में परिवर्तित किये जाते हैं, और ये गैसीय आयन संयुक्त होकर उत्पाद बनाते हैं। इन सभी प्रक्रमों की ऊष्मारासायनिक राशियों में बॉर्न हैबर चक्र द्वारा संबंध स्थापित किया जा सकता है। | ||
MX ←――-U<sub>0</sub>―――――― M<sup>+</sup> (g) + X<sup>-</sup> (g) | MX ←――-U<sub>0</sub>―――――― M<sup>+</sup> (g) + X<sup>-</sup> (g) |
Latest revision as of 11:47, 29 May 2024
किसी आयनिक ठोस के एक मोल को गैसीय अवस्था में उसके घटक आयनों में विघटित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा को उस यौगिक की "जालक एन्थैल्पी" कहा जाता है।
उदाहरण
NaCl की जालक एन्थैल्पी 788 k j mol-1 है। इसका अर्थ यह है कि एक मोल ठोस NaCl को एक मोल Na+ तथा एक मोल Cl- में वियोजित करने के लिए 788 k j mol-1 ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होता है। लेकिन सिर्फ विपरीत आवेश वाले आयनों में आकर्षण बल तथा समान आवेश वाले आयन में प्रतिकर्षण बल होने से ही जालक एन्थैल्पी का परिकलन नहीं किया जा सकता।
एक दूसरे से अनंत दूरियों द्वारा पृथक धनावेशित और ऋणावेशित आयनों को क्रिस्टल जालक में एक साथ लाने पर निर्मुक्त ऊर्जा आयनिक ठोस यौगिक की जालक ऊर्जा कहलाती है।
-1
जालक ऊर्जा, U0 जूल प्रति मोल में व्यक्त की जाती है।
जालक ऊर्जा का परिमाण कई कारकों द्वारा निर्धारित होता है अतः जालक ऊर्जा का सीधा निर्धारण कठिन है।
बॉर्न हैबर चक्र
बॉर्न हैबर चक्र किसी प्रक्रम और उससे सम्बंधित अन्य प्रक्रमों की ऊष्मरसायनिक राशियों में संबंध स्थापित करने की एक सरल युक्ति है।
उदाहरण
किसी आयनिक यौगिक के क्रिस्टल या तो तत्वों के सीधे जुड़ने से बनते हैं या वैकल्पिक प्रक्रम द्वारा जिसमे अभिकारक वाष्पित किये जाते हैं, गैसीय परमाणु आयनों में परिवर्तित किये जाते हैं, और ये गैसीय आयन संयुक्त होकर उत्पाद बनाते हैं। इन सभी प्रक्रमों की ऊष्मारासायनिक राशियों में बॉर्न हैबर चक्र द्वारा संबंध स्थापित किया जा सकता है।
MX ←――-U0―――――― M+ (g) + X- (g)
-Q ↑ ↑ +I ↑ -E
M (s) + 1/2X2 (g) ―+S + 1/2D―――→ M (g) + X(g)
जहाँ
U0 = क्रिस्टल की जालक ऊर्जा
I = धातु की प्रथम आयनन ऊर्जा
E = हैलोजन X की इलेक्ट्रान बंधुता
S = धातु M की उर्ध्वपातन ऊर्जा
D = हैलोजन अणु X2 की वियोजन ऊर्जा
Q = ठोस MX की ऊष्मा रासायनिक सम्भवन ऊष्मा
उपरोक्त सभी ऊर्जा राशियां kJ mol-1 में व्यक्त की जाती हैं।
ऋण चिन्ह ऊर्जा उत्सर्जन और धन चिन्ह ऊर्जा अवशोषण को प्रदर्शित करता है। अभिकारकों और से उत्पाद जिस पथ द्वारा प्राप्त किया जाता है उन पथों में कुल ऊर्जा परिवर्तन समान होता है। अतः
- Q = S + D + I - E - U0
U0 = Q + S + D + I - E
अभ्यास प्रश्न
- जालक एन्थैल्पी से आप क्या समझते हैं ?
- बॉर्न हैबर चक्र से क्या तात्पर्य है ?