क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत: Difference between revisions
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क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत एक स्थिर वैधुत मॉडल है जिसके अनुसार धातु लिगेंड आबंध आयनिक होते हैं यह धातु आयन और लिगेंड के मध्य स्थिरवैधुत अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। | क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत एक स्थिर वैधुत मॉडल है जिसके अनुसार [[धातु]] [[लिगेंड]] आबंध [[आयनिक ठोस|आयनिक]] होते हैं यह धातु आयन और लिगेंड के मध्य स्थिरवैधुत अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। ऋणावेिशत लिगेंड को एक बिंदु आवेश के रूप में और उदासीन लिगेंडो को बिंदु द्विध्रुवों के रूप में माना जाता है। किसी भी विलगित गैसीय धातु परमाणु के पांचों D कक्षकों की ऊर्जा का मान बराबर होता है अर्थात इनकी अवस्था अपभ्रष्ट होती है। एच० बैथे1929 तथा वी०व्लैक द्वारा 1932 ई० में उपसहसंयोजक यौगिकों के गुणों को स्पष्ट करने हेतु एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया था जिसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त CFT कहा था। इस सिद्धान्त के मुख्य विन्दु निम्नलिखित हैं: | ||
* संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। इसमें उपस्थित लिगेंड एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करता है जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं। | * संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। इसमें उपस्थित लिगेंड एकाकी [[इलेक्ट्रॉन]] युग्म प्रदान करता है जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं। | ||
* लिगेण्ड ऋणात्मक आवेिशत होते हैं। | * लिगेण्ड ऋणात्मक आवेिशत होते हैं। | ||
* संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता है अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं। | * संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता है अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं। |
Latest revision as of 17:37, 30 May 2024
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत एक स्थिर वैधुत मॉडल है जिसके अनुसार धातु लिगेंड आबंध आयनिक होते हैं यह धातु आयन और लिगेंड के मध्य स्थिरवैधुत अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। ऋणावेिशत लिगेंड को एक बिंदु आवेश के रूप में और उदासीन लिगेंडो को बिंदु द्विध्रुवों के रूप में माना जाता है। किसी भी विलगित गैसीय धातु परमाणु के पांचों D कक्षकों की ऊर्जा का मान बराबर होता है अर्थात इनकी अवस्था अपभ्रष्ट होती है। एच० बैथे1929 तथा वी०व्लैक द्वारा 1932 ई० में उपसहसंयोजक यौगिकों के गुणों को स्पष्ट करने हेतु एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया था जिसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त CFT कहा था। इस सिद्धान्त के मुख्य विन्दु निम्नलिखित हैं:
- संक्रमण धातु संकुल के केन्द्रीय आयन का कार्य करती हैं। इसमें उपस्थित लिगेंड एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म प्रदान करता है जबकि संक्रमण धातु आयन के रिक्त कक्षक इन इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं।
- लिगेण्ड ऋणात्मक आवेिशत होते हैं।
- संकुल यौगिकों में धातु आयन व लिगेण्ड के मध्य बनने वाले आबन्ध को पूर्णतया आयनिक माना जाता है अर्थात धातु आयन व लिगेण्ड परस्पर स्थित विद्युत आकर्षण बल द्वारा जुड़े रहते हैं।
- यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल धनायन व ऋणायन के मध्य आयन-आयन आकर्षण बल हो सकता है या धनायन व उदासीन लिगेण्ड के मध्य आयन-द्विध्रुव आकर्षण बल हो सकता है।
अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन
अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में 4-कक्षकों को विपाटन एक मुक्त धातु आयन में सभी पाँच कक्षक t2g और eg अपभ्रंश होते हैं अर्थात् उनकी ऊर्जा समान होती है। एक अष्टफलकीय संकर [ML6]n+ पर विचार करें जिसमें धातु आयन Mn+ अष्ट्रफलक के केन्द्र पर है तथा कोनों पर एकदन्ती लिगेण्ड L द्वारा घिरा हुआ है। जब x y और z अक्ष पर समस्त छ: लिगेण्ड धातु आयन की ओर अग्रसर होते हैं तब लिगेण्ड के ऋण भाग इलेक्ट्रॉन द्वारा d-कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से प्रतिकर्षित होते हैं। इस प्रतिकर्षण द्वारा पाँचों d-कक्षकों की ऊर्जाओं में परिवर्तन होता है। चूंकि eg कक्षकों dx2– y2 और dz2 की पालियाँ केन्द्रीय धातु आयन के समीप जाने वाले लिगेण्ड के मार्ग में आती हैं अत: t2g कक्षकों dxy dyz dzx की अपेक्षा इनमें इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण अधिक होता है। इस कारण पाँच d-कक्षक दो ऊर्जा समूहों में विभक्त हो जाते हैं अर्थात् eg कक्षकों की ऊर्जा में वृद्धि होती है। धातु आयन के पाँच d-कक्षकों का भिन्न ऊर्जा के दो समूहों में विभाजन d – d विपाटन या क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन कहलाता है। t2g और eg कक्षकों की ऊर्जा के मध्य के अन्तर को Δo द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। Δ = ऊर्जा में अन्तर व 0 = अष्टफलकीय इसे 10Dq द्वारा भी दर्शाया जाता है और यह क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाती है।
चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन
चतुष्फलकीय संकुलों में d- कक्षकों का विपाटन समझने के लिए कल्पना कीजिए कि एक घन में चतुष्फलक रखा हुआ है। चतुष्फलक के चार किनारे घन के एकान्तर कोनों पर स्थापित हैं जिन पर चार लिगेण्ड स्थित हैं तथा धातु आयन उसके केन्द्र पर है।अब हम यदि केन्द्रीय धातु परमाणु के d-कक्षकों की तुलना में चार लिगेण्डों की स्थिति को अध्ययन करें तो अक्ष dx2– y2 और dz2 अर्थात् eg कक्षक पर t2g कक्षकों dxy dxz dyz की अपेक्षा चार लिगेण्ड और अधिक दर हो जाते हैं। अतः eg कक्षक निम्न ऊर्जा के हैं और t2g कक्षक उच्च ऊर्जा के हैं। eg और t2g कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अन्तर चतुष्फलकीय संकुलों के लिए क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा कहलाता है तथा इसको Δt द्वारा दर्शाया जाता है।
अभ्यास प्रश्न
- क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
- अष्टफलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन को समझाइये।
- चतुष्फलकीय संकुल यौगिकों में विपाटन को समझाइये।