हरित क्रांति: Difference between revisions

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   उर्वरक और सिंचाई: HYVs के उपयोग के साथ-साथ, हरित क्रांति ने रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग सहित आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को भी बढ़ावा दिया। उर्वरकों ने फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान किए, और सिंचाई ने पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा अपर्याप्त थी।
   उर्वरक और सिंचाई: HYVs के उपयोग के साथ-साथ, हरित क्रांति ने रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग सहित आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को भी बढ़ावा दिया। उर्वरकों ने फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान किए, और सिंचाई ने पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा अपर्याप्त थी।
फसल की पैदावार पर प्रभाव: HYVs, उर्वरकों और सिंचाई के संयोजन से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। भारत में, गेहूं और चावल जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन में काफी वृद्धि देखी गई, जिससे देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिली।
   लाभ और चुनौतियाँ: हरित क्रांति के कई सकारात्मक परिणाम हुए, जैसे भोजन की कमी को कम करना, ग्रामीण आजीविका में सुधार और समग्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना। हालाँकि, यह चुनौतियाँ भी लेकर आया, जैसे पानी और रासायनिक आदानों के अत्यधिक उपयोग से संबंधित पर्यावरणीय चिंताएँ, और अमीर और गरीब किसानों के बीच आर्थिक असमानता से संबंधित मुद्दे।
   सतत कृषि: आज, टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर जोर बढ़ रहा है जिसका उद्देश्य बढ़ी हुई उत्पादकता को पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता के साथ संतुलित करना है। ये प्रथाएँ खाद्य सुरक्षा बनाए रखते हुए कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
हरित क्रांति ने भारत की कृषि को बदलने और खाद्य उत्पादन में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में जीव विज्ञान के नए प्रमुख के रूप में, इस ऐतिहासिक कृषि विकास को समझने से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के अंतर्संबंध में अंतर्दृष्टि मिल सकती है, और ये कारक वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करते हैं।

Revision as of 12:19, 3 August 2023

हरित क्रांति एक महत्वपूर्ण कृषि परिवर्तन था जो 20वीं सदी के मध्य में, विशेषकर 1960 और 1970 के दशक के बीच भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में हुआ। यह कृषि पहलों और तकनीकी प्रगति की एक श्रृंखला थी जिसका उद्देश्य भोजन की कमी और भूख की समस्या का समाधान करने के लिए कृषि उत्पादकता और खाद्य उत्पादन को बढ़ाना था।

भारत में हरित क्रांति की व्याख्या :

   संदर्भ: हरित क्रांति से पहले, भारत को भोजन की गंभीर कमी का सामना करना पड़ा और देश को अपनी बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। पारंपरिक खेती के तरीके भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थे, जिससे खाद्य सुरक्षा और अकाल के बारे में चिंताएं पैदा हुईं।

   नॉर्मन बोरलॉग और अधिक उपज देने वाली किस्में: भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व डॉ. नॉर्मन बोरलॉग नामक एक प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक के प्रयासों से हुआ था। उन्होंने नई और बेहतर फसल किस्मों की शुरुआत की, जिन्हें उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) के रूप में जाना जाता है, जिन्हें अनाज की अधिक पैदावार पैदा करने के लिए पाला गया था।

   HYVs विशेषताएँ: इन HYVs को विशेष रूप से छोटे कद (बौना), रोग प्रतिरोधक क्षमता और उर्वरकों और सिंचाई के प्रति प्रतिक्रियाशीलता जैसे गुणों के लिए विकसित किया गया था। छोटे कद ने पौधों को ठहरने (गिरने) के प्रति अधिक प्रतिरोधी बना दिया, जिससे उन्हें बढ़ी हुई अनाज की उपज का वजन सहने में मदद मिली।

   उर्वरक और सिंचाई: HYVs के उपयोग के साथ-साथ, हरित क्रांति ने रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग सहित आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने को भी बढ़ावा दिया। उर्वरकों ने फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान किए, और सिंचाई ने पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वर्षा अपर्याप्त थी।

फसल की पैदावार पर प्रभाव: HYVs, उर्वरकों और सिंचाई के संयोजन से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। भारत में, गेहूं और चावल जैसी प्रमुख फसलों के उत्पादन में काफी वृद्धि देखी गई, जिससे देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिली।

   लाभ और चुनौतियाँ: हरित क्रांति के कई सकारात्मक परिणाम हुए, जैसे भोजन की कमी को कम करना, ग्रामीण आजीविका में सुधार और समग्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना। हालाँकि, यह चुनौतियाँ भी लेकर आया, जैसे पानी और रासायनिक आदानों के अत्यधिक उपयोग से संबंधित पर्यावरणीय चिंताएँ, और अमीर और गरीब किसानों के बीच आर्थिक असमानता से संबंधित मुद्दे।

   सतत कृषि: आज, टिकाऊ कृषि पद्धतियों पर जोर बढ़ रहा है जिसका उद्देश्य बढ़ी हुई उत्पादकता को पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक समानता के साथ संतुलित करना है। ये प्रथाएँ खाद्य सुरक्षा बनाए रखते हुए कृषि के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।

हरित क्रांति ने भारत की कृषि को बदलने और खाद्य उत्पादन में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में जीव विज्ञान के नए प्रमुख के रूप में, इस ऐतिहासिक कृषि विकास को समझने से विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के अंतर्संबंध में अंतर्दृष्टि मिल सकती है, और ये कारक वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करते हैं।