लीलावती में 'घन': Difference between revisions

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Revision as of 16:49, 9 August 2023

भूमिका

यहां हम जानेंगे कि लीलावती में वर्णित किसी संख्या का घन कैसे निकाला जाता है।

श्लोक सं.24 :

समत्रिघातश्च घनः प्रदिष्टः

स्थाप्यो घनोऽन्त्यस्य ततोऽन्त्यवर्गः

आदित्रिनिघ्नस्तत आदिवर्ग:

त्र्यन्त्याहतोऽथादिघनश्च सर्वे ॥ 24 ॥

अनुवाद :

किसी दी गई संख्या का घन, उसका गुणनफल होता है जिसमें स्वयं तीन बार होता है।[1] यदि हम दो अंकों की संख्या, जैसे 10a + b, का घन ज्ञात करना चाहते हैं, तो पहले a3 लिखें। इसके नीचे इस परिणाम को एक स्थान दाहिनी ओर स्थानांतरित कर 3a2 b लिखें। इसके नीचे दाहिनी ओर एक स्थान स्थानांतरित कर 3ab2 लिखिए। इसके नीचे दाईं ओर एक स्थान स्थानांतरित कर b3 लिखें। सभी परिणाम जोड़ें, और परिणाम घन है। इस प्रक्रिया को b से शुरू करके संशोधित किया जा सकता है लेकिन फिर हर बार बाईं ओर स्थानांतरित की जानी चाहिए। यदि दो से अधिक अंक हैं, तो सबसे बाईं ओर के दो अंकों का घन ज्ञात करें और ऊपर दी गई प्रक्रिया को जारी रखें।

उदाहरण: 27 का घन

27 = 10 X 2 + 7 जो कि 10a + b का रूप है, जहाँ a = 2 और b = 7

a3 = 23 8 8
3a2b = 3 X 22X 7 8 4 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 8 4
3ab2 = 3 X 2 X 72 2 9 4 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 2 9 4
b3 = 73 3 4 3 3 4 3
1 9 6 8 3

उत्तर : 273 = 19683

उदाहरण: 125 का घन

125 = 10 X 12 + 5 जो कि 10a + b का रूप है, जहाँ a = 12 और b = 5

a3 = 123 (नीचे की गणना देखें) 1 7 2 8 1 7 2 8
3a2b = 3 X 122X 5 2 1 6 0 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 2 1 6 0
3ab2 = 3 X 12 X 52 9 0 0 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 9 0 0
b3 = 53 1 2 5 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 1 2 5
1 9 5 3 1 2 5

आइए हम 123 ज्ञात करें

12 = 10 X 1 + 2 जो 10a + b का रूप है, जहाँ a = 1 और b = 2

a3 = 13 1 1
3a2b = 3 X 12X 2 6 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 6
3ab2 = 3 X 1 X 22 1 2 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 1 2
b3 = 23 8 इसे एक स्थान दाईं ओर स्थानांतरित करें 8
1 7 2 8

123 = 1728

उत्तर : 1253 = 1953125

यह भी देखें

Cubes in Līlāvatī

संदर्भ

  1. (भास्कराचार्य की लीलावती - वैदिक परंपरा के गणित का ग्रंथ। नई दिल्लीः मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स। 2001. पृष्ठ- 27-29. ISBN 81-208-1420-7.।)"Līlāvatī Of Bhāskarācārya - A Treatise of Mathematics of Vedic Tradition. New Delhi: Motilal Banarsidass Publishers. 2001. pp. 27-29. ISBN 81-208-1420-7."