पर-निषेचन: Difference between revisions

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हम सभी जानते हैं कि आवृतबीजी पौधों में पुष्प होते हैं। और इन पुष्प में मादा और नर भाग होते हैं जो लैंगिक जनन में सहायता करते हैं। पहले हमने चर्चा की थी कि लैंगिक जनन नर युग्मक द्वारा मादा युग्मक के निषेचन के कारण होता है। परन्तु प्रश्न यह है कि ये नर युग्मक मादा युग्मक तक पहुंचकर उन्हें निषेचित कैसे करते हैं? हम मादा युग्मक को निषेचित करने के लिए नर युग्मक के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
हम सभी जानते हैं कि आवृतबीजी पौधों में पुष्प होते हैं। और इन पुष्प में मादा और नर भाग होते हैं जो लैंगिक जनन में सहायता करते हैं। पहले हमने चर्चा की थी कि लैंगिक जनन नर युग्मक द्वारा मादा युग्मक के निषेचन के कारण होता है। परन्तु प्रश्न यह है कि ये नर युग्मक मादा युग्मक तक पहुंचकर उन्हें निषेचित कैसे करते हैं? हम मादा युग्मक को निषेचित करने के लिए नर युग्मक के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे।



Revision as of 15:56, 18 September 2023

हम सभी जानते हैं कि आवृतबीजी पौधों में पुष्प होते हैं। और इन पुष्प में मादा और नर भाग होते हैं जो लैंगिक जनन में सहायता करते हैं। पहले हमने चर्चा की थी कि लैंगिक जनन नर युग्मक द्वारा मादा युग्मक के निषेचन के कारण होता है। परन्तु प्रश्न यह है कि ये नर युग्मक मादा युग्मक तक पहुंचकर उन्हें निषेचित कैसे करते हैं? हम मादा युग्मक को निषेचित करने के लिए नर युग्मक के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

परागण का अध्ययन कई विषयों तक फैला हुआ है, जैसे वनस्पति विज्ञान, बागवानी, कीट विज्ञान और परिस्थितिकी। फूल और पराग वाहक के बीच परस्पर क्रिया के रूप में परागण प्रक्रिया को पहली बार 18वीं शताब्दी में क्रिश्चियन कोनराड स्प्रेंगेल द्वारा संबोधित किया गया था। बागवानी और कृषि में यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि फलन निषेचन पर निर्भर है: परागण का परिणाम। कीड़ों द्वारा परागण के अध्ययन को एंथेकोलॉजी के रूप में जाना जाता है। अर्थशास्त्र में ऐसे अध्ययन भी हैं जो परागण के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो मधुमक्खियों पर केंद्रित हैं और यह प्रक्रिया स्वयं परागणकों को कैसे प्रभावित करती है।

परागण परिभाषा

पुष्प में परागण

परागण पौधों के लैंगिक जनन में एक अनिवार्य क्रिया है। परागण एक पुष्प के परागकोष (पुष्प का नर भाग) से पुष्प के वर्तिकाग्र (पुष्प का मादा भाग) तक पराग का स्थानांतरण है, जो बाद में निषेचन और बीज के उत्पादन को सक्षम बनाता है। युग्मकों के स्थानान्तरण की इस प्रक्रिया में वायु, जल, कीड़े (मधुमक्खी, मक्खियाँ इत्यादि) और जानवर (बंदर, चमगादड़, साँप इत्यादि) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

परागण करने वाले सभी जीव परागणक कहलाये जाते हैं।

पौधों की एक ही प्रजाति के बीच होने वाले परागण के परिणामस्वरूप युग्मकों का सफल निषेचन होता है। यदि एक ही प्रजाति के फूलों के बीच परागण नहीं होता है तो यह या तो संकर किस्म पैदा करता है या एक व्यर्थ प्रक्रिया हो जाती है।

परागण की प्रक्रिया

परागण की प्रक्रिया एक सरल प्रक्रिया है। इसमें केवल नर युग्मक का फूल के मादा भाग में स्थानांतरण होता है। परन्तु यह होता कैसे है? यह विभिन्न विधि से हो सकता है। ऐसी ही एक विधि है वायु द्वारा परागण। इसमें हवा पराग स्थानांतरण में सहायता करती है। जल भी परागण के एजेंट के रूप में कार्य करता है। अन्य तरीकों में परागकणों को मधुमक्खियों जैसे कीड़ों द्वारा परागित किया जाता है। जो पुष्पमधु की खोज में एक फूल से दूसरे फूल की ओर घूमते रहते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया में परागण होता है। कुछ जानवर जैसे बंदर, सांप और चमगादड़ जैसे स्तनधारी भी अपनी भूमिका निभाते हुए पाए जाते हैं। लेकिन सबसे प्रभावी तरीका है कीड़ों द्वारा और वह भी मधुमक्खियों द्वारा।

परागण के प्रकार

हम परागण को मुख्यतः दो प्रकारों में वर्गीकृत करते हैं। ये हैं- पर परागण और स्वपरागण I इस अध्याय में हम पर परागण के बारे में अध्ययन करेंगे I इस से पहले के अध्यायों में हम स्व-परागण के बारे में चर्चा कर चुके हैं।

मधुमक्खी द्वारा पुष्प में पर-निषेचन

पर परागण:

पर परागण तब होता है जब एक पौधे के, फूल के, पुंकेसर से पराग उसी प्रजाति के दूसरे पौधे के, फूल के, वर्तिकाग्र तक स्थानांतरित हो जाये। पर-निषेचन, परपरागण का प्रकार है। यह आनुवंशिक भिन्नता, पौधों की विविधता बढ़ाने और बदलते परिवेश में अनुकूलनशीलता के लिए आवश्यक है। पर परागण में एंटामोफिली (कीड़ों द्वारा परागण), एनेमोफिली (हवा द्वारा परागण), हाइड्रोफिली (पानी द्वारा परागण), ज़ोफिली (जानवरों द्वारा परागण) और ऑर्निथोफिली (पक्षियों द्वारा परागण) सम्मिलित हैं।

पर परागण के प्रकार:

पर-परागण का प्रकार पर-निषेचन है I अब हम इसके बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

पर-निषेचन:

पपीते के पौधे एकलिंगी होते हैं। इसी कारण ये पर- निषेचन करते हैं।

पर-निषेचन, पर-परागण है जहां परागकणों का स्थानांतरण दो अलग-अलग पौधों के फूलों में होता है। दूसरे शब्दों में, एक पौधे के परागकोष से दूसरे पौधे के वर्तिकाग्र तक पराग का स्थानांतरण। प्रत्येक प्रकार के परागण की अपने गुण होते हैं, पर-निषेचन एक नई किस्म के पौधे को जन्म देता हैI

वे मुख्य विशेषताएं जो पर-परागण को सुविधाजनक बनाती हैं :

  • बंधन युति (Herkogamy): स्व-परागण से बचने के लिए फूलों की वर्तिकाग्र सतह पर कुछ यांत्रिक अवरोध होते हैं, उदाहरण के लिए- Calotropis में गाइनोस्टेगियम और पोलिनिया की उपस्थिति। सामान्यत: उभयलिंगी पुष्पों में नर और मादा जनन संरचनाओं के मध्य कुछ ऐसी रुकावट अथवा बाधा आ जाती है , जिसकी वजह से एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचने में असफल रहते है।
  • भिन्नकाल पक्वता (Dichogamy): स्व-परागण से बचने के लिए फूल के पराग और स्त्री केसर अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं।
  • स्व-अनिषेच्यता (Self incompatibility): एक ही पौधे में, परिपक्व पराग एक ही फूल के ग्रहणशील स्त्री केसर पर गिरते हैं लेकिन स्व-परागण लाने में विफल रहते हैं।
  • नर बन्ध्यता (Male sterility): कुछ पौधों के परागकण क्रियाशील नहीं होते हैं। ऐसे पौधे पर-परागण के बाद ही बीज बनाते हैं।
  • एकलिंगाश्रयिता (Dioecism): पर-परागण हमेशा तब होता है जब पौधे एकलिंगी और द्विलिंगी होते हैं, यानी, नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर होते हैं, जैसे, पपीता, खीरे आदि।
  • विषम वर्तिकात्व (Heterostyly): कुछ पौधों के फूलों में पुंकेसर और शैलियों की लंबाई अलग-अलग होती है ताकि स्व-परागण संभव न हो, जैसे, Primula, Linum आदि।