फेहलिंग परीक्षण: Difference between revisions

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[[Category:एल्डिहाइड, कीटोन और कार्बोक्सिलिक अम्ल]][[Category:रसायन विज्ञान]][[Category:कक्षा-12]][[Category:कार्बनिक रसायन]]
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फेहलिंग परीक्षण एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग अपचायक और अनअपचायक  शर्करा के बीच अंतर करने के लिए किया जाता है। 1848 में, एक जर्मन रसायनज्ञ हरमन फेहलिंग ने अपचायक और अनपचायक शर्करा के बीच अंतर करने के लिए एक विधि ज्ञात की, इस विधि को फेहलिंग परीक्षण कहा जाता है। फ़ेहलिंग विलयन को फ़ेहलिंग अभिकर्मक के नाम से भी जाना जाता है। यह एक रासायनिक अभिकर्मक है जिसका उपयोग कार्बोहाइड्रेट में पाए जाने वाले अपचायक और अनअपचायक शर्करा को अंतर् करने के लिए किया जाता है। फ़ेहलिंग विलयन को फ़ेहलिंग अभिकर्मक के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रयोग एल्डिहाइड समूह के परीक्षण में किया जाता है। लेकिन यह कीटोन समूह का परीक्षण नहीं देता है।
'''''अमोनिया युक्त क्यूप्रस क्लोराइड''''' विलयन को ही फेहलिंग अभिकर्मक कहते हैं।
* जब कॉपर (II) आयन एल्डिहाइड समूह के साथ अभिक्रिया करते हैं, तो कॉपर (I) ऑक्साइड बनता है। यह कॉपर ऑक्साइड लाल रंग का अवक्षेप बनाता है।
* फेहलिंग विलयन और नमूना यौगिक में उपस्थित एल्डिहाइड समूह के बीच अभिक्रिया में, एल्डिहाइड समूह अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है और कॉपर (II) आयन Cu (I) आयनों में अपचयित हो जाते हैं।
<chem>2 [Cu(C4H3O6 ) 2 ]^4- + 2 OH- + 2e- -> 2 CuOH + 4 (C4H3O6)^3-</chem>
<chem>RCHO +2OH- -> RCOOH + H2O + 2e-</chem>
<chem>2 CuOH -> Cu2O + H2O</chem>
<chem>RCOOH + OH- -> RCOO- + H2O</chem>
<chem>RCHO + 2Cu+^2 + 5OH- -> R-COO- + Cu2O + 3H2O </chem>
== फेहलिंग के परीक्षण की सीमाएँ ==
* फेहलिंग परीक्षण द्वारा एरोमेटिक एल्डिहाइड का पता नहीं लगाया जा सकता है।
* यह अभिक्रिया सिर्फ क्षारीय माध्यम में ही होती है।
* यह विधि कीटोन के परीक्षण के लिए प्रयोग नहीं की जाती है।

Revision as of 12:58, 8 April 2024

फेहलिंग परीक्षण एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग अपचायक और अनअपचायक  शर्करा के बीच अंतर करने के लिए किया जाता है। 1848 में, एक जर्मन रसायनज्ञ हरमन फेहलिंग ने अपचायक और अनपचायक शर्करा के बीच अंतर करने के लिए एक विधि ज्ञात की, इस विधि को फेहलिंग परीक्षण कहा जाता है। फ़ेहलिंग विलयन को फ़ेहलिंग अभिकर्मक के नाम से भी जाना जाता है। यह एक रासायनिक अभिकर्मक है जिसका उपयोग कार्बोहाइड्रेट में पाए जाने वाले अपचायक और अनअपचायक शर्करा को अंतर् करने के लिए किया जाता है। फ़ेहलिंग विलयन को फ़ेहलिंग अभिकर्मक के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रयोग एल्डिहाइड समूह के परीक्षण में किया जाता है। लेकिन यह कीटोन समूह का परीक्षण नहीं देता है।

अमोनिया युक्त क्यूप्रस क्लोराइड विलयन को ही फेहलिंग अभिकर्मक कहते हैं।

  • जब कॉपर (II) आयन एल्डिहाइड समूह के साथ अभिक्रिया करते हैं, तो कॉपर (I) ऑक्साइड बनता है। यह कॉपर ऑक्साइड लाल रंग का अवक्षेप बनाता है।
  • फेहलिंग विलयन और नमूना यौगिक में उपस्थित एल्डिहाइड समूह के बीच अभिक्रिया में, एल्डिहाइड समूह अम्ल में ऑक्सीकृत हो जाता है और कॉपर (II) आयन Cu (I) आयनों में अपचयित हो जाते हैं।

फेहलिंग के परीक्षण की सीमाएँ

  • फेहलिंग परीक्षण द्वारा एरोमेटिक एल्डिहाइड का पता नहीं लगाया जा सकता है।
  • यह अभिक्रिया सिर्फ क्षारीय माध्यम में ही होती है।
  • यह विधि कीटोन के परीक्षण के लिए प्रयोग नहीं की जाती है।