विश्रांति काल: Difference between revisions

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<math>\mu =\frac{q\tau_{A}}{m},</math>
<math>\mu =\frac{q\tau_{A}}{m},</math>


μ = ( -1।6 x 10 ^ -19 C ) * ( 1 x 10 ^ -12 s ) / TAG1> 9।11 x 10 ^ -31 kg (
<math>\mu = \frac{( -1.6 \times 10 ^ {-19} C ) \cdot ( 1 \times 10 ^ {-12} s )\cdot(1\cdot\frac{V}{m})}{ 9.11\times10 ^ {-31} kg},</math>


μ ≈ -1।757 x 10 ^ -4 m ² / V · s
<math>\mu\approx-1.757 \times 10 ^ {-4} \frac{m^{2}} {V\cdot s},</math>


तो, इस सामग्री में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता लगभग -1।757 x 10 ^ -4 मीटर ² / V · s है।
तो, इस सामग्री में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता लगभग <math>-1.757 \times 10 ^ {-4} \frac{m^{2}} {V\cdot s},</math> है।


== विश्रांति काल का महत्व ==
== विश्रांति काल का महत्व ==

Revision as of 13:35, 5 June 2024

relaxation time

विश्रांति काल, ठोस-अवस्था के भौतिक विज्ञान की एक अवधारणा है, जो बाहरी वाहक क्षेत्र के अधीन सामग्री में चार्ज वाहक ( इलेक्ट्रॉनों या छिद्र (hole)) के व्यवहार को समझने में सुविधा करता है। यह नवीन भौतिकी की प्रमुख अवधारणों में से एक है। इस लेख में ठोस अवस्था के भौतिक संदर्भ में विश्रांति काल की व्याख्या करने के साथ ही साथ आवश्यक समीकरणों को भी संदर्भित कीया गया है।

विश्रांति काल:

यदि किसी विद्युत क्षेत्र, को बाहरी बल मान कर,पदार्थों से बनी, किसी सामग्री में उत्पन्न आवेषण की व्याख्या की जाए ,तो यह पाया जाएगा की उस सामग्री की इस (आवेशित) अवस्था के कारण,आवेश वाहक चल कण, उत्तेजित हो गए हैं । ऐसे में ,विश्रांति काल ( ), उस आवेशित अवस्था के संतुलित अवस्था में आ जाने की काल-अवधिक गणना है । विश्रांति काल की इस व्याख्या में ,उस सामग्री की पदार्थीय व्यवस्था में आए दोषों (अशुद्धियों बिखरने वाले केंद्रों जैसे दोषों, अशुद्धियों, फोनोन टकराव आदि ) के साथ आवेश वाहक कणों के क्रमिक टकराव के बीच, औसत समय अंतराल का प्रतिनिधित्व निहित है।

विश्रांति काल की गणना के लीये समीकरण

विश्रांति काल की गणना में उपयोग में आए सूत्र की व्युत्पत्ति , अन्य समीकरणों के द्वारा आवेश (चार्ज) वाहक की गतिशीलता ( ) से जुड़ी हुई है। जैसे की

इस समीकरण में:

    : चार्ज वाहक की गतिशीलता ( मीटर की इकाइयों में वोल्ट-सेकंड, m ² / V · s )।

   : वाहकों का प्रभार (कॉलूमब ( coulomb) में, )।

   : वाहक का विश्रांति काल ( सेकंड में, )।

   : वाहक का प्रभावी द्रव्यमान ( किलोग्राम में, )।

: वाहक का अपवह वेग ( प्रति सेकंड मीटर में, )।

समीकरण की व्याख्या

समीकरण से पता चलता है कि गतिशीलता ( ),विश्रांति काल के लिए समआनुपातिक है एवं आवेश वाहक और उनके प्रभावी द्रव्यमान के विपरीत आनुपातिक ( )। गतिशीलता बताती है कि विद्युत क्षेत्र के अधीन होने पर, आवेश वाहक कितनी तत्परता से क्रिया में आते हैं व उस विद्युत क्षेत्र का प्रत्युतर क्षेत्र बनाने में सहायक है की नहीं । एक लंबा विश्रांति काल, चलित वाहक के दूसरे वाहक अथवा स्थिर पदार्थ दोषों (जहां पदार्थ व्यवस्था में आकस्मिक बदलाव होने से,आवेश धारक स्थिर स्थल विद्यमान हैं) से टकराव होने की संभावना कम होने से, उस पदार्थ में उच्च गतिशीलता मिलती है ।

उदाहरण

विश्रांति काल और गतिशीलता को चित्रित करने के लिए एक उदाहरण में 1 पिकोसेकंड ( सेकंड ) और किलोग्राम ( के प्रभावी द्रव्यमान के साथ एक सामग्री में इलेक्ट्रॉन हैं इलेक्ट्रॉन )। एक इलेक्ट्रॉन का आवेश लगभगकूलोम्ब है। ऐसे में 1 के विभव अंतर से ऊर्जित किसी विद्युतीय क्षेत्र में एलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता निर्धारित करने के लीये ,ऊपर दीये गए सूत्र का उपयोग कर के

तो, इस सामग्री में इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता लगभग है।

विश्रांति काल का महत्व

विश्रांति काल ठोस-अवस्था की भौतिकी में एक महत्वपूर्ण मापदण्ड है क्योंकि यह उस सामग्री की विद्युत चालकता और इलेक्ट्रॉनिक गुणों को प्रभावित करता है,जिसके विश्रांति काल की गणना की जा रही है। यह समझने में सुविधा करता है कि आवेश वाहक, बाहरी विद्युत क्षेत्रों पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं और वे विभिन्न सामग्रियों में विद्युत प्रवाह के प्रवाह में कैसे योगदान करते हैं। प्रायः लंबे समय तक विश्राम के साथ सामग्री ,उच्च चालकता और बेहतर इलेक्ट्रॉनिक परिवहन गुणों का प्रदर्शन करती है।

संक्षेप में

अर्धचालक और धातुओं में चार्ज वाहक के व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए विश्रांति काल को समझना महत्वपूर्ण है, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सर्किट में आवश्यक घटक हैं।