ताप नाभकीय संलयन: Difference between revisions

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ताप नाभकीय संलयन की अवधारणा को दर्शाने वाला एक सरलीकृत आरेख इस तरह दिख सकता है:
ताप नाभकीय संलयन की अवधारणा को दर्शाने वाला एक सरलीकृत आरेख इस तरह दिख सकता है:


   संलयन प्रतिक्रिया में जारी ऊर्जा को आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता समीकरण का उपयोग करके निर्धारित किया जा सकता है:<syntaxhighlight lang="lua">
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  Hydrogen Isotope + Hydrogen Isotope ---> Helium Isotope + Neutron + Energy
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== प्रमुख बिंदु ==
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*    ताप नाभकीय संलयन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हल्के परमाणु नाभिक अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव पर संयोजित होते हैं, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
* ताप नाभकीय संलयन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हल्के परमाणु नाभिक अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव पर संयोजित होते हैं, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
*    यह प्रक्रिया सूर्य और तारों को शक्ति प्रदान करती है।
* यह प्रक्रिया सूर्य और तारों को शक्ति प्रदान करती है।
*    संलयन में निकलने वाली ऊर्जा आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान के ऊर्जा में रूपांतरण का परिणाम है।
* संलयन में निकलने वाली ऊर्जा आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान के ऊर्जा में रूपांतरण का परिणाम है।


== संक्षेप में ==
== संक्षेप में ==
ताप नाभकीय फ्यूजन परमाणु भौतिकी और ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में गहन शोध का क्षेत्र है। यह एक संभावित स्वच्छ और प्रचुर ऊर्जा स्रोत के रूप में बड़ी संभावनाएं रखता है, बिजली पैदा करने के लिए पृथ्वी पर नियंत्रित संलयन प्रतिक्रियाओं को दोहराने के प्रयास चल रहे हैं।
ताप नाभकीय फ्यूजन परमाणु भौतिकी और ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में गहन शोध का क्षेत्र है। यह एक संभावित स्वच्छ और प्रचुर ऊर्जा स्रोत के रूप में बड़ी संभावनाएं रखता है, बिजली पैदा करने के लिए पृथ्वी पर नियंत्रित संलयन प्रतिक्रियाओं को दोहराने के प्रयास चल रहे हैं।
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Latest revision as of 13:08, 23 September 2024

Thermo Nuclear fusion

ताप नाभकीय (थर्मोन्यूक्लियर)संलयन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हल्के परमाणु नाभिक अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव पर एक साथ जुड़ते हैं, जिससे महत्वपूर्ण मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यह प्रक्रिया ही सूर्य और तारों को शक्ति प्रदान करती है।

ताप नाभकीय संलयन : मूल अवधारणा

   कार्य करने का सिद्धांत

       ताप नाभकीय संलयन में, दो हल्के परमाणु नाभिक (जैसे हाइड्रोजन के समस्थानिक - ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) को अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव में एक साथ लाया जाता है।

       उच्च तापमान के कारण नाभिक उच्च गति से चलते हैं, जिससे उन्हें सकारात्मक रूप से चार्ज किए गए नाभिक के बीच इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रतिकर्षण पर काबू पाने की अनुमति मिलती है।

   संलयन प्रतिक्रिया

       जब दो नाभिक टकराते हैं और प्रतिकर्षण पर काबू पाते हैं, तो वे एक साथ मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं।

       इस संलयन प्रक्रिया से भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यह ऊर्जा का विमोचन ही है जो सूर्य और अन्य तारों को शक्ति प्रदान करता है।

   गणितीय समीकरण

जहाँ:

   स्त्रावित ऊर्जा है।

   द्रव्यमान दोष है, जो प्रारंभिक कणों और संलयन के बाद बने अंतिम नाभिक के बीच द्रव्यमान में अंतर है।

   प्रकाश की गति ( मीटर प्रति सेकंड) है।

आरेख

ताप नाभकीय संलयन की अवधारणा को दर्शाने वाला एक सरलीकृत आरेख इस तरह दिख सकता है:

संलयन प्रतिक्रिया में जारी ऊर्जा को आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता समीकरण का उपयोग करके निर्धारित किया जा सकता है:

 Hydrogen Isotope + Hydrogen Isotope ---> Helium Isotope + Neutron + Energy

इस आरेख में, हाइड्रोजन के दो समस्थानिक (ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) एक साथ आकर हीलियम, एक न्यूट्रॉन बनाते हैं, और संलयन प्रतिक्रिया के दौरान ऊर्जा छोड़ते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ताप नाभकीय संलयन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हल्के परमाणु नाभिक अत्यधिक उच्च तापमान और दबाव पर संयोजित होते हैं, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
  • यह प्रक्रिया सूर्य और तारों को शक्ति प्रदान करती है।
  • संलयन में निकलने वाली ऊर्जा आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमान के ऊर्जा में रूपांतरण का परिणाम है।

संक्षेप में

ताप नाभकीय फ्यूजन परमाणु भौतिकी और ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में गहन शोध का क्षेत्र है। यह एक संभावित स्वच्छ और प्रचुर ऊर्जा स्रोत के रूप में बड़ी संभावनाएं रखता है, बिजली पैदा करने के लिए पृथ्वी पर नियंत्रित संलयन प्रतिक्रियाओं को दोहराने के प्रयास चल रहे हैं।