पुनः अवशोषण: Difference between revisions

From Vidyalayawiki

No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[Category:उत्सर्जी उत्पाद और उनका निष्कासन]][[Category:कक्षा-11]][[Category:जीव विज्ञान]][[Category:जंतु विज्ञान]]
[[Category:उत्सर्जी उत्पाद और उनका निष्कासन]][[Category:कक्षा-11]][[Category:जीव विज्ञान]][[Category:जंतु विज्ञान]]
पुनर्अवशोषण उत्सर्जन तंत्र के कामकाज में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, विशेष रूप से गुर्दे के नेफ्रॉन के भीतर मूत्र के निर्माण में। यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा उपयोगी पदार्थ और पानी को छानने वाले पदार्थ (गुर्दे में निस्पंदन के दौरान बनने वाले पदार्थ) से रक्तप्रवाह में वापस अवशोषित किया जाता है।
नेफ्रॉन में पुनर्अवशोषण कहाँ होता है
पुनर्अवशोषण नेफ्रॉन के विभिन्न भागों में होता है, और पुनर्अवशोषण की सीमा विशिष्ट खंड के आधार पर भिन्न होती है:
प्रॉक्सिमल कॉन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (पीसीटी):
पुनर्अवशोषण का अधिकांश भाग (लगभग 70-80%) यहीं होता है।
पुनःअवशोषित पदार्थ:
ग्लूकोज, अमीनो एसिड, विटामिन
सोडियम (Na⁺), क्लोराइड (Cl⁻), और पोटेशियम (K⁺)
पानी (ऑस्मोसिस के माध्यम से)
रक्त pH को बनाए रखने के लिए बाइकार्बोनेट (HCO₃⁻) आयन
हेनले का लूप:
अवरोही अंग:
पानी के लिए पारगम्य, इसलिए पानी पुनःअवशोषित होता है, जिससे छानने वाला पदार्थ केंद्रित हो जाता है।
आरोही अंग:
आयनों के लिए पारगम्य लेकिन पानी के लिए अभेद्य।
सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड आयन सक्रिय रूप से पुनःअवशोषित होते हैं।
डिस्टल कॉन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (DCT):
विनियमित पुनःअवशोषण यहाँ होता है, जो एल्डोस्टेरोन और पैराथाइरॉइड हार्मोन (PTH) जैसे हार्मोन से प्रभावित होता है।
पुनःअवशोषित पदार्थ:
सोडियम और कैल्शियम आयन
पानी, हार्मोनल नियंत्रण पर निर्भर करता है
संग्रह नलिका:
शरीर की जलयोजन स्थिति के आधार पर एंटीडाययूरेटिक हार्मोन (ADH) द्वारा जल पुनःअवशोषण को विनियमित किया जाता है।
मेडुलरी इंटरस्टिटियम की ऑस्मोलैरिटी को बनाए रखने के लिए यूरिया को आंशिक रूप से पुनःअवशोषित किया जाता है।
पुनःअवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक
हार्मोनल नियंत्रण:
ADH (एंटीडाययूरेटिक हार्मोन): संग्रह नलिका में जल पुनःअवशोषण को बढ़ाता है।
एल्डोस्टेरोन: दूरस्थ कुंडलित नलिका में सोडियम पुनःअवशोषण को बढ़ाता है।
PTH (पैराथाइरॉइड हार्मोन): कैल्शियम पुनःअवशोषण को नियंत्रित करता है।
सांद्रण प्रवणता:
छानने और अंतरालीय द्रव के बीच आसमाटिक प्रवणता पानी और विलेय की गति को संचालित करती है।
परिवहन तंत्र:
सक्रिय परिवहन: सोडियम और ग्लूकोज जैसे पदार्थों के लिए।
निष्क्रिय परिवहन: पानी और कुछ आयनों के लिए।
पुनर्संग्रहण का महत्व
उपयोगी पदार्थों का संरक्षण:
मूत्र में ग्लूकोज, अमीनो एसिड और इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की हानि को रोकता है।
जल संतुलन:
आवश्यकतानुसार पानी को पुनः अवशोषित करके शरीर के जलयोजन को बनाए रखने में मदद करता है।
रक्त की मात्रा और दबाव को बनाए रखना:
सोडियम और पानी का पुनः अवशोषण रक्तचाप और मात्रा को विनियमित करने में योगदान देता है।
अम्ल-क्षार संतुलन:
बाइकार्बोनेट आयनों का पुनः अवशोषण रक्त पीएच को बनाए रखने में मदद करता है।
नैदानिक ​​प्रासंगिकता
मधुमेह मेलिटस:
रक्त में अतिरिक्त ग्लूकोज पीसीटी की पुनः अवशोषण क्षमता को पार कर सकता है, जिससे ग्लूकोसुरिया (मूत्र में ग्लूकोज) हो सकता है।
निर्जलीकरण:
बढ़ा हुआ एडीएच स्राव पानी के संरक्षण के लिए पानी के पुनः अवशोषण को बढ़ाता है।
किडनी विकार:
पुनःअवशोषण में कमी के कारण आवश्यक पोषक तत्वों की हानि और इलेक्ट्रोलाइट्स में असंतुलन हो सकता है।

Revision as of 21:39, 16 November 2024

पुनर्अवशोषण उत्सर्जन तंत्र के कामकाज में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, विशेष रूप से गुर्दे के नेफ्रॉन के भीतर मूत्र के निर्माण में। यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा उपयोगी पदार्थ और पानी को छानने वाले पदार्थ (गुर्दे में निस्पंदन के दौरान बनने वाले पदार्थ) से रक्तप्रवाह में वापस अवशोषित किया जाता है।

नेफ्रॉन में पुनर्अवशोषण कहाँ होता है

पुनर्अवशोषण नेफ्रॉन के विभिन्न भागों में होता है, और पुनर्अवशोषण की सीमा विशिष्ट खंड के आधार पर भिन्न होती है:

प्रॉक्सिमल कॉन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (पीसीटी):

पुनर्अवशोषण का अधिकांश भाग (लगभग 70-80%) यहीं होता है।

पुनःअवशोषित पदार्थ:

ग्लूकोज, अमीनो एसिड, विटामिन

सोडियम (Na⁺), क्लोराइड (Cl⁻), और पोटेशियम (K⁺)

पानी (ऑस्मोसिस के माध्यम से)

रक्त pH को बनाए रखने के लिए बाइकार्बोनेट (HCO₃⁻) आयन

हेनले का लूप:

अवरोही अंग:

पानी के लिए पारगम्य, इसलिए पानी पुनःअवशोषित होता है, जिससे छानने वाला पदार्थ केंद्रित हो जाता है।

आरोही अंग:

आयनों के लिए पारगम्य लेकिन पानी के लिए अभेद्य।

सोडियम, पोटेशियम और क्लोराइड आयन सक्रिय रूप से पुनःअवशोषित होते हैं।

डिस्टल कॉन्वोल्यूटेड ट्यूब्यूल (DCT):

विनियमित पुनःअवशोषण यहाँ होता है, जो एल्डोस्टेरोन और पैराथाइरॉइड हार्मोन (PTH) जैसे हार्मोन से प्रभावित होता है।

पुनःअवशोषित पदार्थ:

सोडियम और कैल्शियम आयन

पानी, हार्मोनल नियंत्रण पर निर्भर करता है

संग्रह नलिका:

शरीर की जलयोजन स्थिति के आधार पर एंटीडाययूरेटिक हार्मोन (ADH) द्वारा जल पुनःअवशोषण को विनियमित किया जाता है।

मेडुलरी इंटरस्टिटियम की ऑस्मोलैरिटी को बनाए रखने के लिए यूरिया को आंशिक रूप से पुनःअवशोषित किया जाता है।

पुनःअवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक

हार्मोनल नियंत्रण:

ADH (एंटीडाययूरेटिक हार्मोन): संग्रह नलिका में जल पुनःअवशोषण को बढ़ाता है।

एल्डोस्टेरोन: दूरस्थ कुंडलित नलिका में सोडियम पुनःअवशोषण को बढ़ाता है।

PTH (पैराथाइरॉइड हार्मोन): कैल्शियम पुनःअवशोषण को नियंत्रित करता है।

सांद्रण प्रवणता:

छानने और अंतरालीय द्रव के बीच आसमाटिक प्रवणता पानी और विलेय की गति को संचालित करती है।

परिवहन तंत्र:

सक्रिय परिवहन: सोडियम और ग्लूकोज जैसे पदार्थों के लिए।

निष्क्रिय परिवहन: पानी और कुछ आयनों के लिए।

पुनर्संग्रहण का महत्व

उपयोगी पदार्थों का संरक्षण:

मूत्र में ग्लूकोज, अमीनो एसिड और इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की हानि को रोकता है।

जल संतुलन:

आवश्यकतानुसार पानी को पुनः अवशोषित करके शरीर के जलयोजन को बनाए रखने में मदद करता है।

रक्त की मात्रा और दबाव को बनाए रखना:

सोडियम और पानी का पुनः अवशोषण रक्तचाप और मात्रा को विनियमित करने में योगदान देता है।

अम्ल-क्षार संतुलन:

बाइकार्बोनेट आयनों का पुनः अवशोषण रक्त पीएच को बनाए रखने में मदद करता है।

नैदानिक ​​प्रासंगिकता

मधुमेह मेलिटस:

रक्त में अतिरिक्त ग्लूकोज पीसीटी की पुनः अवशोषण क्षमता को पार कर सकता है, जिससे ग्लूकोसुरिया (मूत्र में ग्लूकोज) हो सकता है।

निर्जलीकरण:

बढ़ा हुआ एडीएच स्राव पानी के संरक्षण के लिए पानी के पुनः अवशोषण को बढ़ाता है।

किडनी विकार:

पुनःअवशोषण में कमी के कारण आवश्यक पोषक तत्वों की हानि और इलेक्ट्रोलाइट्स में असंतुलन हो सकता है।