आयनिक या वैद्युत संयोजी बंधन

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वह स्थिरवैद्युत आकर्षण बल जो दो विपरीत आवेशित आयनों के साथ एक बंध बनाता है, आयनिक बंध कहलाता है। एक परमाणु से दूसरे परमाणु में एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण स्थानांतरण से दो परमाणुओं के बीच एक रासायनिक बंध बनता है जिसके परिणामस्वरूप परमाणु अपने निकटतम अक्रिय गैस विन्यास को प्राप्त करते हैं। आयनिक बंधन विरचन की कॉसेल तथा लूइस अवधारणा से यह निष्कर्ष निकलता है कि इस आबंध का विरचन मुख्य रूप से निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करेगा :

  • आयनिक बंध एक क्रिस्टल में उपस्थित धनात्मक और ऋनात्मक आयनों के बीच उपस्थित आकर्षण बल है और आयनिक बंध द्वारा एक साथ बंधे यौगिकों को आयनिक यौगिक कहा जाता है।
  • यदि दो परमाणुओं के बीच आयनीकरण क्षमता में अंतर है तो अधिक आयनिक यौगिक बनते हैं।
  • जिन यौगिकों में विधुतऋणात्मकता में अंतर होता है वे आयनिक यौगिकों का निर्माण होता है।

उदाहरण

NaCl

आयनिक बंध की विशेषताएं

आयनिक बंधित अणुओं में धनायनों और ऋणायनों के बीच प्रबल आकर्षण बल की उपस्थिति के कारण, निम्नलिखित गुण देखे जाते हैं:

  • आयनिक बंध सभी बंध में सबसे प्रबल बंध होते हैं।
  • आयनिक बंध में आवेश पृथक्करण होता है, और इसलिए वे उचित माध्यम में सभी बंधनों में सबसे अधिक अभिक्रियाशील होते हैं।
  • वे यौगिक जिनमे आयनिक बंध होता है उनका गलनांक और क्वथनांक उच्च होता है।
  • आयनिक बंधित अणु में आयनों की उपस्थित होने के कारण अपने जलीय विलयन में या पिघली हुई अवस्था में विधुत के अच्छे संवाहक होते हैं।
  • जब एक धनावेशित आयन ऋणावेशित आयन के साथ एक बंध बनाता है, तो एक परमाणु दूसरे को इलेक्ट्रॉन दाता का काम करता है, इसे आयनिक बंध के रूप में जाना जाता है।