अपरिमेय संख्याएँ

From Vidyalayawiki

Revision as of 17:41, 30 September 2023 by Jaya agarwal (talk | contribs)

अपरिमेय संख्याएँ वे वास्तविक संख्याएँ हैं , जिन्हें अनुपात के रूप में प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है । वे वास्तविक संख्याएँ जो परिमेय संख्याएँ नहीं हैं, अपरिमेय संख्याएँ कहलाती हैं । पाइथोगोरियन दार्शनिक हिप्पासस ने 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में अपरिमेय संख्याओं की खोज की थी । अपरिमेय संख्याएँ वास्तविक संख्याओं का समूह हैं , जिन्हें भिन्न, के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है , जहाँ p और q पूर्णांक हैं और हर शून्य के बराबर नहीं है हैं ।

उदाहरण :   आदि अपरिमेय संख्याओं के उदाहरण हैं ।

अपरिमेय संख्याओं के गुण

अपरिमेय संख्याओं के गुण[1] निम्नलिखित हैं ;

  1. वे वास्तविक संख्याएँ हैं ।
  2. अपरिमेय संख्याओं को भिन्न के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है ।
  3. यदि और दो अलग-अलग अपरिमेय संख्याएँ हैं, तो  ; और के बीच स्थित एक अपरिमेय संख्या होगी ।
  4. एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का योग अपरिमेय संख्या होता है ।
  5. एक परिमेय संख्या और एक अपरिमेय संख्या का गुणनफल अपरिमेय संख्या होता है ।
  6. किसी भी अभाज्य संख्या के वर्गमूल का मान सदैव एक अपरिमेय संख्या होता है ।
  7. दो अपरिमेय संख्याओं के बीच किसी भी संक्रिया (जोड़, गुणा, घटाव, भाग) का परिणाम हमेशा अपरिमेय संख्या नहीं होगा ।
  8. अपरिमेय संख्या की प्रकृति सदैव अनवसानी और दोहराव रहित होती है ।

कुछ प्रचलित अपरिमेय संख्याएं

कुछ प्रचलित अपरिमेय संख्याएं निम्नलिखित हैं  ;

  1. एक बहुत प्रचलित अपरिमेय संख्या है । इसका मान एक वृत्त की परिधि एवं उसके व्यास के बराबर होता है। के दशमलव विस्तार में अंक गणना करने वाले पहले व्यक्ति ग्रीक प्रतिभाशाली आर्किमिडीज़ थे ।          
  2. यूलर संख्या एक और प्रचलित अपरिमेय संख्या है। जैसा कि हम जानते हैं एक अपरिमेय संख्या को हम एक भिन्न के रूप में नहीं दर्शा सकते हैं। कई गणितज्ञों ने इस संख्या का मान दशमलव के बाद कई संख्याओं तक ज्ञात किया लेकिन कोई ठोस प्रतिरूप नहीं मिला ।
  3. गोल्डन अनुपात भी एक अपरिमेय संख्या है। यह सबसे प्रचलित संख्या है या हम ऐसा कह सकते हैं की यह अनुपात सृष्टि कि हर चीज़ में होता है ।

उदाहरण

सिद्ध करें कि एक अपरिमेय संख्या है ।

हल

आइए, इसके विपरीत मान लें कि एक परिमेय संख्या है । अतः , परिमेय संख्या की परिभाषा अनुसार हम कह सकते हैं कि :

जहाँ, और पूर्णांक हैं और हैं ।

मान लीजिए कि और में के अलावा कोई अन्य उभयनिष्ठ गुणनखंड है, तो हम उभयनिष्ठ गुणनखंड से भाग दे सकते हैं, और मान सकते हैं , कि और सहअभाज्य हैं । अतः ,

दोनों तरफ वर्ग करके पुनर्व्यवस्थित रूप में लिखने पर ,

उपर्युक्त दिए गए समीकरण से यह स्पष्ट है कि ; , से विभाज्य है , अतः प्रमेय ( यदि , को विभाजित करता है , तो , को भी विभाजित करता है, जहाँ एक धनात्मक पूर्णांक है ) के उपयोग से हम कह सकते हैं कि भी से विभाज्य होगा ।

अब, हम कह सकते हैं ,

जहाँ, पूर्णांक हैं ।

दोनों तरफ वर्ग करके लिखने पर ,

समीकरण से का मान रखने पर ,

दोनों पक्षों  में से भाग देने पर ,

अतः , यह स्पष्ट है कि , से विभाज्य है , प्रमेय ( यदि , को विभाजित करता है , तो , को भी विभाजित करता है, जहाँ एक धनात्मक पूर्णांक है ) के उपयोग से हम कह सकते हैं कि , से भी विभाज्य हैं ।

इसलिए यह स्पष्ट है कि और का उभयनिष्ठ गुणनखंड हैं , लेकिन यह इस तथ्य का खंडन करता है कि और में के अलावा कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है। यह विरोधाभास हमारी गलत धारणा के कारण उत्पन्न हुआ है कि एक परिमेय संख्या है ।

अतः , हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि अपरिमेय संख्या है ।

  1. "अपरिमेय संख्याओं के गुण".