फ्रीडल-क्राफ्ट ऐल्किलीकरण

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साधारणतः बेंज़ीन नाइट्रीकरण, हैलोजनीकरण, सल्फोनीकरण , फ्रीडलक्राफ्ट एल्कलीकरण और एसिटलीकरण आदि इलेक्ट्रॉनरागी अभिक्रिया प्रदर्शित करते हैं। बेंजीन रिंग में उपस्थित 6π- इलेक्ट्रॉनों के स्थानीयकरण (delocalisation) के कारण बेंजीन रिंग एक इलेक्ट्रॉन स्रोत की भांति कार्य करती है और इलेक्ट्रॉन-स्नेही अभिकर्मकों को आक्रमण के लिए आमंत्रित करती है। इस कारण बेंजीन में इलेक्ट्रॉन-स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया सफलतापूर्वक हो जाती हैं। चूँकि नाभिक-स्नेही अभिकर्मकों में इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है इस कारण वे बेन्जीन रिंग द्वारा प्रतिकर्षित हो जाते हैं। यही कारण है कि बेंजीन में नाभिक-स्नेही प्रतिस्थापन कठिन होता है।

उत्प्रेरक इस अभिक्रिया का सबसे अच्छा उत्प्रेरक निर्जल ऐल्यूमीनियम क्लोराइड है, परंतु इसके अतिरिक्त जिंक, टिन के क्लोराइड, बोरन ट्राइफ्लोराइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, सल्फ्यूरिक अम्ल तथा फॉस्फरिक अम्ल का उपयोग भी किया जा सकता है।

फ्रीडल क्राफ्ट एल्किलीकरण

निर्जल की उपस्थिति में बेन्जीन की ऐल्किल हैलाइड से अभिक्रिया कराने पर एल्किल बेंज़ीन प्राप्त होती है।

फ्रीडल क्राफ्ट एसिटिलीकरण

निर्जल की उपस्थिति में बेन्जीन की एसिटिल क्लोराइड से अभिक्रिया कराने पर एसिटिल बेंज़ीन प्राप्त होती है।

अभिक्रिया की क्रियाविधि

यदि अभिक्रिया को सरल रूप में देखा जाय तो इसके पहले चरण में क्लोरीन परमाणु विलग होकर एसिल धनायन बनाता है।

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इसके उपरान्त एरीन का एसिल समूह की तरफ न्यूक्लियोफिलिक आक्रमण होता है।

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अन्तत: क्लोरीन परमाणु क्रिया करके HCl बनाता है; तथा AlCl3 उत्प्रेरक पुन: उत्पन्न हो जाता है।

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