धनायन

From Vidyalayawiki

Revision as of 11:31, 10 July 2023 by Shikha (talk | contribs)

Listen

जब कोई धातु अपने इलेक्ट्रॉनों का दान करता है तो वो जितने इलेक्ट्रॉनों का दान करता है उस धातु पर उतने धनायन आते हैं। धनावेशित आयन का निर्माण तब होता है जब कोई धातु अपने इलेक्ट्रॉन खो देता है। ये एक से अधिक इलेक्ट्रॉनों का दान कर सकता है। धनायन में प्रोटॉन की तुलना में कम इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसलिए, उनके पास शुद्ध धनात्मक आवेश होता है।

उदाहरण

धनायनों के कुछ उदाहरण मैग्नीशियम (Mg2+), सोडियम (K+), हाइड्रोजन (H+) हैं।

वे आयन जो इलेक्ट्रॉनों का दान करते हैं उन्हें धनायन कहते हैं इन पर धनावेश होता है और वो आयन जो इलेक्ट्रान स्वीकार करते हैं उन्हें ऋणायन कहते हैं। ऋणात्मक आवेश वाले आयन ऋणायन आयन कहलाते हैं और धनात्मक आवेश वाले आयन धनायन कहलाते हैं। चूँकि उन दोनों में परस्पर विरोधी गुणों होते है, इसलिए वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं और इस तरह उनके बीच एक आयनिक बंध बनता है।

जब पोटैशियम K+ को एक धनायन को के रूप में दर्शाया जाता है, तो धनावेश दर्शाता है कि इसमें प्रोटॉन की कुल संख्या से एक इलेक्ट्रॉन कम है। इस प्रकार, पोटैशियम में इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉन का असमान वितरण होता है जो इसे धनावेश रखने में सक्षम बनाता है। इसके अलावा तत्व क्लोराइड आयन Cl- दर्शाता है कि इसमें इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या की तुलना में एक प्रोटॉन कम है और यह इसे ऋणायन बनाता है।