वितरण क्रोमैटोग्राफी

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क्रोमैटोग्राफी एक ऐसी विधि है जिसमें विलेय पदार्थों को अलग - अलग किया जाता है। सर्वप्रथम इस विधि का प्रयोग रंगों को अलग करने में किया जाता था जिस  कारण इसका नाम क्रोमैटोग्राफी पड़ा। क्रोमैटोग्राफी दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला शब्द “क्रोमा” और दूसरा शब्द “ग्राफिक” है। वितरण क्रोमैटोग्राफी स्थिर तथा गतिशील प्रावस्थाओ के मध्य मिश्रण के अवयवों के विभेदी वितरण पर आधारित है। इसमें एक विशेष प्रकार के क्रोमैटोग्राफी कागज का इस्तेमाल किया जाता है। इस कागज में कुछ विशेष प्रकार के छिद्र होते हैं, इन छिद्रों में जल के अणु होते हैं, ये स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं।

दो द्रव अवस्थाओं अर्थात मूल विलायक और स्तंभ में प्रयुक्त विलायक की फिल्म के बीच घटकों को अलग करना।

यह पृथक्करण सिद्धांत वर्ष 1940 के दशक में प्रस्तुत किया गया था जिसे रिचर्ड लॉरेंस मिलिंगटन सिंज प्रकाशित किया गया था। इसे द्रव - द्रव क्रोमैटोग्राफी के रूप में भी जाना जाता है। यदि गैस गतिशील अवस्था है तो इसे गैस-द्रव क्रोमैटोग्राफी  कहा जाता है।

उपयोग

  • डाई में विभिन्न रंगों को अलग करने में इसका इस्तेमाल होता है|
  • प्रकृतिक रंगों से पिग्मेंटेशन को अलग करने में।
  • रक्त से नशीले तत्वों को अलग करने में।
  • जल शुद्धता के नमूनों के परीक्षण के लिए रासायनिक उद्योग में क्रोमैटोग्राफी का प्रयोग किया जाता है।
  • खाद्य पदार्थों के शेल्फ जीवन को निर्धारित करने में मदद करने के लिए खाद्य उद्योग में क्रोमैटोग्राफी का उपयोग किया जाता है।