लुकास परीक्षण

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ल्यूकास परीक्षण द्वारा प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक ऐल्कोहॉलों में विभेद किया जाता है यह विभेद करने कीअत्यन्त सरल विधि है। यह भिन्न-भिन्न ऐल्कोहॉलों की ल्यूकास अभिकर्मक के साथ भिन्न-भिन्न गति से अभिक्रिया करने पर आधारित है। ऐल्कोहॉल निर्जल ज़िंक क्लोराइड की उपस्थित में सांद्र हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ एल्किल क्लोराइड बनाते हैं।

ऐल्कोहॉलों की हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के प्रति अभिक्रियाशीलता का क्रम निम्न लिखित है:

तृतीयक > द्वितीयक > प्राथमिक

ल्यूकास परीक्षण भी इसी तथ्य पर आधारित है।

ल्यूकास अभिकर्मक

ल्यूकास अभिकर्मक सान्द्र HCl + निर्जल ZnCl2 के मिश्रण को कहते हैं। 

तृतीयक ऐल्कोहॉल

कमरे के ताप पर तृतीयक ऐल्कोहॉल ल्यूकास अभिकर्मक के साथ तुरंत धुंधलापन उत्पन्न करते हैं। जिसमे निम्न अभिक्रिया होती है:

द्वितीयक ऐल्कोहॉल

कमरे के ताप पर द्वितीयक ऐल्कोहॉल ल्यूकास अभिकर्मक के साथ 5-10 मिनट बाद धुंधलापन उत्पन्न करते हैं।

प्राथमिक ऐल्कोहॉल

कमरे के ताप पर प्राथमिक ऐल्कोहॉल ल्यूकास अभिकर्मक के साथ धुंधलापन उत्पन्न नहीं करते हैं, अतः विलयन पारदर्शक होता है।

लुकास परीक्षण क्रियाविधि

इस प्रतिक्रिया में SN1 न्यूक्लियोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रिया होती है। इसे निम्नलिखित दो चरणों में विभाजित किया जा सकता है।

प्रथम चरण

एल्कोहल का OH समूह HCl द्वारा प्रोटोनेटेड होता है। अब, चूंकि क्लोरीन जल की तुलना में अधिक प्रबल न्यूक्लियोफाइल है, यह कार्बन से जुड़े परिणामी जल के अणु को प्रतिस्थापित करता है। इससे कार्बधनायन का निर्माण होता है।

द्वितीयक चरण

क्लोराइड आयन अब कार्बधनायन पर हमला करता है और एक एल्काइल क्लोराइड बनाता है। यह एल्काइल क्लोराइड अघुलनशील है और इसलिए विलयन धुंधला हो जाता है।