विलेयता
निश्चित ताप पर किसी अवयव की विलायक की निश्चित मात्रा मे घुली हुई अधिकतम मात्रा को उसकी विलेयता कहते है। यह विलायक की प्रकृति तथा ताप एवं दाब पर निर्भर करती है। रसायन विज्ञान में, विलेयता एक रासायनिक पदार्थ की क्षमता है, एक विलेय, दूसरे पदार्थ, विलायक के साथ मिलकर एक विलयन बनाता है। अविलेयता विलेयता के विपरीत है, इसमें विलेय विलायक के साथ विलयन बनाने में असमर्थता प्रदर्शित करता है। एक विलायक की निश्चित मात्रा में घुली हुई किसी अवयव (पदार्थ) की अधिकतम मात्रा उस पदार्थ की विलेयता कहलाती है। विलेयता विलेय एवं विलायक की प्रकृति तथा ताप एवं दाब पर निर्भर करती है।
उदारण: यदि सामान्य ताप पर 100 ग्राम जल में चीनी की अधिकतम 35 ग्राम घुल सकती है, तो चीनी की विलेयता 100 ग्राम जल में 35 ग्राम हुई।
विलेयता की मात्रा
एक विशिष्ट विलायक में एक विशिष्ट विलेय की विलेयता को सामान्यतः दो के संतृप्त विलयन की सान्द्रता के रूप में व्यक्त किया जाता है। विलयन की सान्द्रता को व्यक्त करने के कई तरीकों में से किसी का भी उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि द्रव्यमान, आयतन, या किसी विशिष्ट द्रव्यमान, आयतन, विलायक या विलयन के मोल के लिए विलेय की मोल् में मात्रा।
ठोसों की द्रवों में विलेयता
किसी दिये गये द्रव में सभी प्रकार के ठोस नहीं घुलते हैं।
जैसे चीनी तथा नमक (सोडियम क्लोराइड) जल में आसानी से घुल जाता है लेकिन बेंजीन में नहीं घुलता है। तथा नैफ्थैलीन और एन्थ्रासीन बेंजीन में आसानी से घुल जाता है जबकि जल में नहीं घुलता है। ध्रुवीय विलेय, ध्रुवीय विलायकों में घुलते हैं जबकि अध्रुवीय विलेय अध्रुवीय विलायकों में। सामान्यत: एक विलेय विलायक में घुल जाता है, यदि दोनों में अंतराण्विक अन्योन्यक्रियाएं समान हों। अत: यह कहा जाता है कि समान समान को घोलता हैनकी मात्रा दूसरे घटक से अधिक होती है और जो दुसरे घटक को विलयन में मिलाता है उसे विलायक कहते हैं। विलयन का वह घटक जो प्रायः कम मात्रा में होता है और जो विलायक में घुलता है उसे विलेय कहते हैं।
संतृप्त विलयन
संतृप्त विलयन का अर्थ है कि एक निश्चित तापमान पर उतना ही विलेय घोला जा सकता है जितनी विलयन की क्षमता है। अर्थात यदि विलेय एक निश्चित तापमान पर किसी विलयन में नहीं घुलता है तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं। संतृप्त विलयन उस विलयन को कहते हैं जिसके ऊपर कोई भी विलेय पदार्थ या विलायक घुल नहीं सकता। यह अक्सर विलयन में अधिक मात्रा में उपस्थित होता है।
अथवा किसी विलेय पदार्थ की वह अधिकतम मात्रा जो एक निश्चित ताप पर 100 ग्राम विलायक में घुल सके , विलेय पदार्थ की विलेयता कहलाती है और इस प्रकार अधिकतम विलेय पदार्थ के घुलने से बने विलयन को संतृप्त विलयन कहते है।
विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण है। विलयन दो पदार्थों से मिलकर बना होता है एक है विलेय और दूसरा विलायक अर्थात विलेय और विलायक के समांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं। एक विलयन में एक विलेय और एक विलायक होता है। इसे दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगीय मिश्रण के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी विलयन को दो भागों में बांटा जा सकता है विलेय और विलायक। विलयन का वह घटक जिनकी मात्रा दूसरे घटक से अधिक होती है और जो दुसरे घटक को विलयन में मिलाता है उसे विलायक कहते हैं। विलयन का वह घटक जो प्रायः कम मात्रा में होता है और जो विलायक में घुलता है उसे विलेय कहते हैं।
विलयन = विलायक + विलेय
उदाहरण
- चीनी और जल का विलयन एक तरल घोल है जिसमे चीनी विलेय और जल विलायक है यह द्रव घोल में ठोस का उदाहरण है।
- आयोडीन और अल्कोहल का विलयन जिसे टिंक्चर आयोडीन के नाम से जाना जाता है, इसमें आयोडीन विलेय है और अल्कोहल विलायक।
असंतृप्त विलयन
यदि किसी विलयन में विलेय की मात्रा संतृप्ति की मात्रा से कम हो तो उसे असंतृप्त विलयन कहते हैं। ऐसा घोल जिसमे किसी निश्चित ताप पर विलेय की मात्रा उस अधिकतम मात्रा से कम होती है तो उस ताप पर उसके द्वारा घोली जा सकती है, असंतृप्त विलयन कहलाता है।
विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण है। विलयन दो पदार्थों से मिलकर बना होता है एक है विलेय और दूसरा विलायक अर्थात विलेय और विलायक के समांगी मिश्रण को विलयन कहते हैं। एक विलयन में एक विलेय और एक विलायक होता है। इसे दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगीय मिश्रण के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी विलयन को दो भागों में बांटा जा सकता है विलेय और विलायक। विलयन का वह घटक जिनकी मात्रा दूसरे घटक से अधिक होती है और जो दुसरे घटक को विलयन में मिलाता है उसे विलायक कहते हैं। विलयन का वह घटक जो प्रायः कम मात्रा में होता है और जो विलायक में घुलता है उसे विलेय कहते हैं।
ताप का प्रभाव
ठोसों की द्रवों में विलेयता पर ताप परिवर्तन का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः यदि निकट संतृप्तता प्राप्त विलयन में घुलने की प्रक्रिया ऊष्माशोषी () है तो ताप बढ़ने पर विलेयता बढ़नी चाहिए और यदि व ऊष्माक्षेपी हो तो विलेयता कम होनी चाहिए।
दाब का प्रभाव
ठोसों की द्रवों में विलेयता पर दाब का कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता।
गैसों की द्रवों में विलेयता
विलायक में गैसों की विलेयता की मात्रा निर्धारित करने के लिए हेनरी के नियम का उपयोग किया जाता है। किसी विलायक में गैस की विलेयता विलायक के ऊपर उस गैस के आंशिक दबाव के समानुपाती होती है। यह संबंध राउल्ट के नियम के समान है और इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है:
जहां एक तापमान-निर्भर स्थिरांक है, p आंशिक दबाव (एटीएम में) है, और c द्रव में विलेयित गैस की सांद्रता है (mol/L में)।
हेनरी का नियम
हेनरी का नियम गैस अवस्था पर लागू होता है जो बताता है कि किसी द्रव में घुली हुई गैस की मात्रा स्थिर ताप पर द्रव के ऊपर उस गैस के आंशिक दाब के समानुपाती होती है। गैस का आंशिक दाब जितना अधिक होगा, द्रव में उसकी घुलनशीलता उतनी ही अधिक होगी।
हेनरी के नियम के अनुसार,
- P' द्रव के ऊपर वायुमंडल में गैस के आंशिक दबाव को दर्शाता है।
- 'C' घुली हुई गैस की सांद्रता को दर्शाता है।
- 'kH ' गैस का हेनरी नियम स्थिरांक है।
हेनरी का नियम स्थिरांक mol L-1bar-1 में व्यक्त किया जाता है ।
उदाहरण
293 K के तापमान पर कार्बन डाइऑक्साइड के लिए kH का मान 2.010 3 atm Lmol -1 है । किस आंशिक दाब पर गैस की घुलनशीलता (पानी में) M होगी?
kH = 2.010 3 atm Lmol -1
C = M
P = 2.010 3 atm Lmol -1 mol L-1
P =0. 4 atm
हेनरी के नियम स्थिरांक को प्रभावित करने वाले कारक
किसी गैस के लिए हेनरी नियम स्थिरांक का मान निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:
- विलायक की प्रकृति
- तापमान एवं दबाव
- गैस की प्रकृति
अलग-अलग गैसों के लिए हेनरी नियम स्थिरांक भिन्न भिन्न होता है।
अभ्यास प्रश्न
- विलेयता से आप क्या समझते हैं ?
- हेनरी का नियम क्या है ?
- हेनरी के नियम स्थिरांक को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं ?