भर्जन
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सक्रियता श्रेणी के मध्य में स्थित धातुएं: जैसे - आयरन, जिंक, लेड, कॉपर की अभिक्रियाशीलता माध्यम होती है। प्रकृति में ये प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाए जाती है। सल्फाइड या कार्बोनेट की तुलना में धातु को उसके ऑक्साइड से प्राप्त करना अधिक आसान होता है इसलिए अपचयन से पहले धातु के सल्फाइड एवं कार्बोनेट को धातु ऑक्साइड में परिवर्तित करना आवश्यक है।
भर्जन की परिभाषा
भर्जन मुख्यतः सल्फाइड अयस्कों से धातु ऑक्साइड प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस विधि में सांद्रित सल्फाइड अयस्कों को उसके गलनांक से कम ताप पर वा की अधिकता में तेज गर्म करना भर्जन कहलाता है। जिससे वाष्पशील अशुद्धियाँ और नमी उड़ जाती है। और हमको भर्जित अयस्क प्राप्त हो जाती है। यह विधि माध्यम अभिक्रियाशील धातुओं के लिए प्रयोग की जाती है। सल्फाइड अयस्कों को ऑक्साइड में बदलने के लिए रोस्टिंग विधि का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। भर्जन हमेशा परावरतनी भट्टी में किया जाता है।
ज़िंक के भर्जन के समय निम्न रासायनिक अभिक्रिया होती है:
मध्यम अभिक्रियाशील धातु
मध्यम अभिक्रियाशील धातुओं का निष्कर्षण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है:
खनिज → अयस्क → कार्बोनेट अयस्क → निस्तापन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन
↘ सल्फाइड अयस्क → भर्जन → धातु का ऑक्साइड → धातु में अपचयन → धातु का शोधन
यह भट्टी अग्निसह ईटों की बनी होती है। इस भट्टी के तीन भाग होते हैं। इस भट्टी की अंगूठी में ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है। जो भट्टी की छत से परावर्तित होकर चूल्हे पर रखे अयस्क या घान पर आती है। उसी ऊष्मा से अयस्क या घान गर्म होता है। इसलिए इसे परावर्तनी भट्टी कहते हैं और व्यर्थ गैसें चिमनी से बाहर निकल जाती है।
अंगीठी, चूल्हा, चिमली,
(I) अग्नि स्थान — यहाँ ईंधन को जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की ती है।
(iii) भट्ठी का तल – इसे चूल्हा (hearth) भी कहते हैं। यहाँ पर किये जाना वाला पदार्थ अर्थात् घान (charge) या महीन पीसा हुआ बस्क रखा जाता है।
(iii) चिमनी – यहाँ से व्यर्थ गैसे बाहर निकलती हैं।