विद्युत अपघटनी परिष्करण

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विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि का सिद्धांत

विभन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएं पूर्ण रूप से शुद्ध नही होती हैं। इनमे अनेक अशुद्धियाँ होती हैं जिन्हे हटाकर हम शुद्ध धातु प्राप्त कर सकते हैं। अशुद्ध धातु से शुद्ध धातु प्राप्त करने क लिए विधुत अपघटनी विधि का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, अशुद्ध धातु के बने हुए एनोड होते हैं, और कैथोड शुद्ध धातु की एक पट्टी से बना होता है। जिस धातु को शुद्ध करना है उस धातु को वैधुत अपघट्य पदार्थ की तरह प्रयोग किया जाता है। इस को चित्र के अनुसार व्यवस्थित कर लेते हैं फिर इसमें विधुत धारा प्रवाहित करते हैं विधुत धारा प्रवाहित करने पर वैधुत अपघट्य पदार्थ में उपस्थित अशुद्धियाँ कैथोड पर जाने लगती हैं धीरे धीरे अशुद्ध एनोड पिघल पिघल कर विलयन में आता जायेगा विलेय अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं तथा अविलेय अशुद्धियाँ एनोड तली पर निक्षेपित हो जाती हैं जिसे एनोड पंक कहते हैं। और विलयन से शुद्ध होकर कैथोड पर जाता जाएगा यह प्रक्रिया कुछ देर तक चलेगी थोड़ी देर बाद हम देखेंगे की अशुद्ध धातु के एनोड पतले होते जायेंगे और शुद्ध धातु के कैथोड मोटे होते चले जायेंगे। इस प्रक्रार प्राप्त शुद्ध कैथोड को विलयन से बाहर निकाल लेंगे। और हमको 99.9 % तक शुद्ध धातु कैथोड से प्राप्त हो जाएगी।

उदाहरण

अशुद्ध ज़िंक को विद्युत अपघटनी परिष्करण की विधि द्वारा निम्न प्रकार से शुद्ध किया जा सकता है:

अशुद्ध ज़िंक को शुद्ध करने के लिए हम अशुद ज़िंक के मोटे मोटे एनोड बनाते हैं और शुद्ध धातु के पतले कैथोड बनाते हैं। अम्लीय ZnSO4 का उपयोग वैधुत अपघट्य के रूप में किया जाता है। जब विधुत धारा वैधुत अपघट्य पदार्थ से होकर गुजरती है, तो एनोड से शुद्ध जिंक घुल जाता है और कैथोड पर जमा हो जाता है। घुलनशील अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती हैं, जबकि अघुलनशील अशुद्धियाँ एनोड मड के रूप में नीचे बैठ जाती हैं।

कैथोड पर होने वाली अभिक्रिया:


एनोड पर होने वाली अभिक्रिया: