लेक्लांशे सेल
लेक्लांश सेल जॉर्जेस लेक्लांच द्वारा आविष्कार की गई एक बैटरी है, इस कारण इसका नाम लेक्लांश सेल रखा गया। जिसमें एक वैधुत अपघट्य विलयन होता है, तथा दो इलेक्ट्रोड लगे होते हैं जिसमे एक कैथोड और एक एनोड का कार्य करता है। इस सेल का एक उदाहरण जिंक-कार्बन बैटरी है जिसका अलार्म घड़ियों, फ्लैशलाइट आदि में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
लेक्लांश एक प्रकार की प्राथमिक बैटरी है जिसमें कैथोड और एनोड होते हैं, जिसमे वैधुत अपघट्य पदार्थ भरा होता हैं। सेल का आविष्कार पहली बार 1866 में किया गया था। इसका व्यापक रूप से सिग्नलिंग नेटवर्क और उन प्रणालियों में उपयोग किया जाता है जहां निम्न धारा की आवश्यकता होती है।
लेक्लांश बैटरी के तीन रूप होते हैं: जिंक, जिंक क्लोराइड और क्षारीय मैंगनीज।
लेक्लांशे सेल में एक जिंक इलेक्ट्रोड ( ऋणात्मक टर्मिनल), एक कार्बन इलेक्ट्रोड (धनात्मक टर्मिनल), और कैथोड के रूप में मैंगनीज डाइऑक्साइड और कार्बन पाउडर का मिश्रण होता है। पुरानी लेक्लांशे सेल की क्षमता सीमित थी और इसमें जंग लगने का खतरा था, जिससे इसका जीवनकाल कम हो गया। और इसका उत्पादन सस्ता था और यह काफी समय तक धारा का स्थिर प्रवाह प्रदान करता था। लेकिन धीरे धीरे यह अपनी सुविधा के कारण लोकप्रिय हो गया।
लेक्लांशे सेल की अभिक्रिया
लेक्लांशे सेल में निम्न अभिक्रिया होती है :
एनोड पर
कैथोड पर
विद्युत-अपघट्य में