पूर्तिरोधी
ये वे रासायनिक पदार्थ हैं जो हानिकारक सूक्ष्मजीवियों व बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं अथवा उनके वृद्धि या गुणन (multiplication) को रोकते हैं। ये जीवित ऊतकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, इसलिए इनका उपयोग जली, कटी त्वचा पर लगाने में किया जाता है। एक पदार्थ जिसे शरीर पर लगाने पर सूक्ष्मजीवों को मार कर या उनकी वृद्धि को रोककर, संक्रमण की रोकथाम करता है। "आम तौर पर उपयोग किए गए पूतिरोधी हैं - अल्कोहल, डेटॉल, और आयोडीन (उदाहरण के लिए, बीटाडाइन)।”
पूतिरोधी ऐसे द्रव्य हैं जो सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकते, या उनका विनाश करते हैं। यहाँ पर इनका विचार विशेष रूप से शरीर के संपर्क में आने वाले सूक्ष्म जीवों के विनाश की दृष्टि से किया गया है। अनेक ऐसे द्रव्य हैं जो जीवाणुनाशक होने के कारण रोगाणुनाशी श्रेणी में आते हैं, पर जिन्हें प्ररितरोधी द्रव्यों के अंतर्गत भी परिगणित किया जाता है। वास्तव में ये दोनों शब्द सापेक्ष हैं। रोगाणुनाशी द्रव्य प्रतिरोधी द्रव्यों से अधिक तीव्र होते हैं और जल में तनुकृत करने पर ऐसे अधिकांश द्रव्य प्रतिरोधी जैसा कार्य करते हैं। प्रतिरोधी क्रिया मंदप्रभावी होते हुए भी अधिक देर तक बनी रहती है।
जीवाणुनाशक
आदर्श जीवाणुनाशक द्रव्य ऐसा होना चाहिए जो शारीरिक कोशिकाओं को बिना किसी प्रकार नुकसान पहुँचाए, जीवाणुओं का विनाश या प्रतिरोध कर सके। यद्यपि ऐसा आदर्श द्रव्य अभी तक नहीं प्राप्त हो सका है तथापि चिकित्सा क्षेत्र में ऐसे द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है जो कम से कम हानि पहुँचाएँ। इन द्रव्यों का परस्पर मूल्याकंन करना कठिन है, क्योंकि इनके बहुत अधिक प्रकार हो गए हैं तथा इनको विभिन्न परिस्थितियों में कार्य करना पड़ता है।
पीड़ाहारी
पीड़ाहारी दर्द को बिना चेतना - क्षीणता, मनो सम्भ्रम अथवा तंत्रिका तंत्र में अन्य कोई बाधा उत्पन्न किये हुए समाप्त करती है।
इन्हे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
1 .) अस्वापक पीड़ाहारी (नॉनडिक्टिव्)
२.) स्वापक पीड़ाहारी (नारकोटिक)
एनाल्जेसिक में ओपिओइड और ओपियेट पदार्थ और नॉनोपिओइड दवाएं सम्मिलित हैं, जो डॉक्टर के पर्चे या काउंटर पर मिलने वाली दवाएं हो सकती हैं। कई नॉनोपियोइड और नॉनोपियोइड-ओपियोइड तैयारी वांछनीय चिकित्सीय प्रभाव के लिए एंटीपायरेटिक्स और एंटीइंफ्लेमेटरी एजेंटों के रूप में भी काम करती हैं। ओपिओइड और ओपियेट दवाएँ अच्छी दर्दनाशक दवाएं हैं जो किसी भी मूल के दर्द को कम करने में सक्षम हैं। नॉन ओपिओइड का उपयोग सह-एनाल्जेसिया या सहायक चिकित्सा के रूप में भी किया जा सकता है। कोडीन और एसिटामिनोफेन जैसे कोएनाल्जेसिक का उपयोग प्रायः पुराने दर्द के लिए किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग तीव्र दर्द के लिए किया जा सकता है जिसके लिए ओपियोइड उपयोग की आवश्यकता होती है। ओपिओइड के साथ दी जाने वाली डायजेपाम जैसी निकटवर्ती दवाएं सच्ची एनाल्जेसिक नहीं हैं, लेकिन दर्द से राहत पाने और छद्म लत को कम करने के लिए एनाल्जेसिक के साथ उपयोग की जाती हैं। वे रसायन जो पीड़ा या दर्द को कम करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं, पीड़ाहारी या दर्द निवारक औषध कहलाते हैं। ये तंत्रिका सक्रिय होते हैं। दर्दनाशी (पीड़ाहारी)-वे औषधियाँ जो शरीर के दर्द या पीड़ा को कम करने में प्रयुक्त होती है, दर्दनाशी या पीड़ाहारी औषधियाँ कहलाती है।
उदाहरण-(1) नाकोटिक-मार्फीन, कोडीन। (2) नॉन-नाक्कोटिक-ऐस्प्रिन, पैरासिटामॉल, ऐनाल्जिन।
पीड़ाहारी औषध के प्रकार
ये दो प्रकार के होते हैं:
अस्वापक औषध
ये सामान्य तरह के पीड़ाहारी हैं इनके सेवन से व्यकित को इसकी आदत नहीं होती। इनमे ज्वरनाशी औषधि भी पायी जाती है। इन्हे अनिद्राकारी औषध भी कहते हैं।
उदाहरण
ऐस्प्रिन, पैरासिटामॉल एक अस्वापक पीड़ाहारी हैं।
एस्प्रिन को कभी भी खाली पेट नहीं लेना चाहिए। एस्प्रिन जल अपघटित होकर सैलिसिलिक अम्ल बनाता है, अगर आमाशय खाली होता है तो यह अम्ल आमाशय की दीवारों पर घाव कर देता है।
स्वापक औषध
तीव्र दर्द होने पर इस प्रकार की पीड़ाहारी औषधियों का उपयोग किया जाता है ये निद्रा एवं अचेतना उत्पन्न करती हैं। इन्हे स्वापक पीड़ाहारी भी कहते हैं। इनका रेगुलर प्रयोग करने से व्यक्ति इनका आदी हो जाता है।
उदाहरण
मॉर्फीन, कोडीन, हशीश आदि।
अभ्यास प्रश्न
- अस्वापक पीड़ाहारी एवं स्वापक पीड़ाहारी में क्या अंतर है ?
- अस्वापक पीड़ाहारी से आप क्या समझते हैं ?
- स्वापक पीड़ाहारी के कुछ उदाहरण दीजिये।
- पूर्तिरोधी से आप क्या समझते हैं ?