जगत

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सभ्यता की शुरुआत के बाद से ही, जीवित प्राणियों के वर्गीकरण करने के कई प्रयास हुए हैं। अरस्तू, वैज्ञानिक आधार पर वर्गीकरण का प्रयास करने वाले सबसे पहले व्यक्ति थे। उन्होंने सरल रूपात्मक पात्रों का प्रयोग करके जीवों को पौधों और जंतुओं में विभाजित किया। पौधों को पेड़ों, झाड़ियों और जड़ी-बूटियों में वर्गीकृत किया। जंतुओं को दो समूहों में वर्गीकृत किया गया, वे जिनका रक्त लाल था और जिनका रक्त लाल नहीं था।

लिनिअस के समय में वर्गीकरण की दो साम्राज्य प्रणाली थी- प्लांटे (पादप जगत) और एनिमेलिया (जंतु जगत) जिसमें क्रमशः पौधे और जानवर थे।

आर.एच. व्हिटेकर ने पांच जगत वर्गीकरण का प्रस्ताव रखा। उनके द्वारा परिभाषित जगत को मोनेरा जगत, प्रोटिस्टा जगत, कवक जगत, पादप जगत और जंतु जगत नाम दिया गया। उनके द्वारा प्रयुक्त वर्गीकरण के मुख्य मानदंडों में कोशिका संरचना, शारीरिक संगठन, पोषण का तरीका, प्रजनन और  फ़ाइलोजेनेटिक संबंध सम्मिलित हैं। आइए हम जंतु जगत के बारे में विस्तार से देखें। सभी जीवधारी को उनके शारीरक संरचना और कार्य के आधार पर पहचाना जा सकता है और उनका वर्गीकरण किया जा सकता है। शारीरिक बनावट में कुछ लक्षण अन्य लक्षणों की तुलना में ज्यादा परिवर्तन लाते हैं। अतः जब कोई शारीरिक बनावट अस्तित्व में आती है तो यह शरीर में होने वाले कई परिवर्तनों को प्रभावित भी करती है।

अर्न्स्ट हेकेल, रोबर्ट व्हिटेकर और कार्ल वोस नामक जैव वैज्ञानिकों ने सारे सजीवों को जगत नामक बड़े वर्गों में विभाजित करने का प्रयास किया। व्हिटेकर द्वारा प्रस्तावित वर्गीकरण में पांच जगत हैं:

  • मोनेरा
  • प्रोटिस्टा
  • फंजाई
  • प्लांटी
  • एनीमेंलिया।

परिभाषा

जंतु जगत में जीव यूकेरियोटिक और बहुकोशिकीय होते हैं। हर जीव की अपनी विशेषताएं होती हैं। वे अपना भोजन या तो पौधों या अन्य जीवों को खाकर प्राप्त करते हैं। जंतु जगत में कुछ विशिष्ट विशेषताएं होती हैं जो जंतु जगत से संबंधित विभिन्न जीवों में पाई जाती हैं। आइए एक-एक करके इन विशेषताओं पर गौर करें।

शारीरिक संगठन

  • शारीरिकसंगठन का कोशकीय स्तर
  • शारीरिक संगठन का ऊतक स्तर
  • शारीरिक संगठन का अंग स्तर
  • शारीरिक संगठन का अंग प्रणाली स्तर

शरीर की समरूपता

  • असममित
  • आरिय रूप से सममिति
  • द्विपक्षीय रूप से सममित

रक्त परिसंचरण तंत्र

  • खुला परिसंचरण तंत्र
  • बंद परिसंचरण तंत्र

पाचन तंत्र

  • पूर्ण पाचन तंत्र
  • अपूर्ण पाचन तंत्र