एकल प्रतिस्थापित बेन्जीन में क्रियात्मक समूह का निर्देशात्मक प्रभाव
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यदि एकल प्रतिस्थापित बेंज़ीन का पुनः प्रतिस्थापन कराया जाता है तो अन्य तीन संभावित द्विप्रतिस्थापित उत्पाद समान मात्रा में नहीं पाए जाते। वे समूह जो आने वाले समूहों को ऑर्थो और पैरा पदों पर दिशा निर्देशित करते हैं, ऑर्थो-पैरा समूह कहलाते हैं। या इसे कुछ इस प्रकार भी परिभाषित किया है - इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूहों को ऑर्थो-पैरा निर्देशन समूह कहा जाता है। वे समूह जो आने वाले समूहों को मेटा पदों पर दिशा निर्देशित करते हैं, मेटा समूह कहलाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन-स्वीकार करने वाले समूह हैं, अतः ये बेंजीन रिंग पर इलेक्ट्रॉन प्राप्त करते हैं।
प्रतिस्थापित समूह के प्रकार
ये प्रतिस्थापित समूह दो प्रकार के होते हैं:
- आर्थो वा पैरा समूह
- मेटा समूह
यह बेंज़ीन वलय पर पहले से उपस्थित प्रतिस्थापी समूह की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसे प्रतिस्थापियों का निर्देशात्मक प्रभाव भी कहते हैं।
आर्थो वा पैरा समूह
वे समूह जो आने वाले समूहों को ऑर्थो और पैरा पदों पर दिशा निर्देशित करते हैं, ऑर्थो-पैरा समूह कहलाते हैं। या इसे कुछ इस प्रकार भी परिभाषित किया है - इलेक्ट्रॉन दान करने वाले समूहों को ऑर्थो-पैरा निर्देशन समूह कहा जाता है।
- ये समूह बेंजीन वलय में इलेक्ट्रॉनों को उपस्थित प्रदान करके ऑर्थो और पैरा स्थितियों में इलेक्ट्रोफाइल्स को इलेक्ट्रॉनों की उपलब्धता की सुविधा प्रदान करते हैं।
- ये इलेक्ट्रॉन-दान करने वाले समूह हैं, अतः ये बेंजीन रिंग को इलेक्ट्रॉन दान करते हैं। ऑर्थो और पैरा स्थितियों पर बेंजीन इलेक्ट्रॉन घनत्व बहुत अधिक हो जाता है। इसलिए आने वाली इलेक्ट्रोफाइल ऑर्थो और पैरा स्थितियों पर हमला करतें है।
- बेंजीन वलय इलेक्ट्रोफाइल के प्रति अधिक रासायनिक रूप से अभिक्रियाशील होती है।
- बेंजीन रिंग नए आने वाले समूहों को कई स्थान प्रदान कर सकती है।
−OH, −OR, −NH2, −NHR, −CH3
मेटा समूह
वे समूह जो आने वाले समूहों को मेटा पदों पर दिशा निर्देशित करते हैं, मेटा समूह कहलाते हैं। ये इलेक्ट्रॉन-स्वीकार करने वाले समूह हैं, अतः ये बेंजीन रिंग पर इलेक्ट्रॉन प्राप्त करते हैं। मेटा स्थितियों पर बेंजीन इलेक्ट्रॉन घनत्व बहुत कम हो जाता है। इसलिए आने वाली न्यूक्लियोफाइल मेटा स्थितियों पर हमला करतें है। मेटा पर इलेक्ट्रॉनों की कमी करते हैं। या इसे कुछ इस प्रकार भी परिभाषित किया है - मेटा निर्देशक समूह में बेंजीन रिंग से इलेक्ट्रॉन्स का फ्लो बाहरी समूह की तरफ होता है. जिसके कारण ओर्थो स्थितियों पर +o जाता है। अनुनाद के द्वारा ओर्थो से पैरा और पैरा से फिर ओर्थो पर जाता है.जिससे बेंजीन रिंग में इलेक्ट्रान घनत्व कम हो जाता है.कुल मिलाकर बेंजीन रिंग इलेक्ट्रोफिलिक प्रतिस्थापन अभिक्रिया के लिए असक्रिय हो जाती है। मेटा पोजीशन पर इलेक्ट्रान घनत्व होता हे इस लिए NO2 जो इलेक्टो फाइल है.वो मेटा पर जुड़ जाता है.इसलिए NO2 समूह मेटा निर्देशक समूह है।
मेटा समूह इलेक्ट्रान आकर्षित ग्रुप होते है.– NO2, -NH3+, -SO3H, -CN, -CO2H, -CO2R, -COH, -X बेंजीन वलय से लगा ऐसा समूह वलय से इलेक्ट्रान को आकर्षित करते है जिससे इलेक्ट्रान का फ्लो बेंजीन वलय से बाहरी समूह की तरफ हो जाता है जिससे वलय से रिंग की ओर्थो एंड पैरा पोजीशन पर + आवेश आ जाता है.या यु कह लीजिये इलेक्ट्रान घनत्व कम हो जाता है.इसे चित्र द्वारा समझते है
- ये समूह बेंजीन वलय में इलेक्ट्रॉनों को उपस्थित प्रदान करके ऑर्थो और पैरा स्थितियों में इलेक्ट्रोफाइल्स को इलेक्ट्रॉनों की उपलब्धता की सुविधा प्रदान करते हैंऔर मेटा पर इलेक्ट्रॉनों की कमी करते हैं।
- ये इलेक्ट्रॉन-स्वीकार करने वाले समूह हैं, अतः ये बेंजीन रिंग पर इलेक्ट्रॉन प्राप्त करते हैं। मेटा स्थितियों पर बेंजीन इलेक्ट्रॉन घनत्व बहुत कम हो जाता है। इसलिए आने वाली न्यूक्लियोफाइल मेटा स्थितियों पर हमला करतें है। मेटा पर इलेक्ट्रॉनों की कमी करते हैं।
- बेंजीन वलय न्यूक्लियोफाइल के प्रति अधिक रासायनिक रूप से अभिक्रियाशील होती है।
- बेंजीन रिंग नए आने वाले समूहों को कई स्थान प्रदान कर सकती है।
−NO2,−CHO,−COOH,−SO3H
अभ्यास प्रश्न
- ऑर्थो समूह क्या है ? उदाहरण सहित समझाइये।
- क्या कारण है कि ऑर्थो समूह पर इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिक होता है?
- क्या कारण है कि पैरा समूह पर इलेक्ट्रॉन घनत्व कम होता है?