क्रिस्टलन

From Vidyalayawiki

Revision as of 11:57, 25 May 2024 by Shikha (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)

Listen

यह ठोस कार्बनिक यौगिकों के शोधन की सर्वाधिक उपयोग में लानी वाली विधि है। यह एक कार्बनिक विधि है। यह यौगिक तथा उसमे अशुद्धि की किसी उपयुक्त विलायक में विलेयताओं में अन्तर पर आधारित है। इस विधि में अशुद्ध यौगिक को किसी ऐसे विलायक में विलेय किया जाता है, जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर अल्प-विलेय होता है परन्तु उच्च ताप पर वह पर्याप्त मात्रा में विलेय होता है। फिर विलयन को इस स्तर तक सान्द्रित करते हैं कि वह विलयन लगभग संतृप्त हो जाए। विलयन को ठण्डा करने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टलित हो जाता है, जिसे छानकर (Filtration) पृथक कर लिया जाता है। छनित (मात्र द्रव) में अशुद्धियाँ तथा यौगिक की अल्प मात्रा रह जाती है। जब यौगिक किसी एक विलायक में अत्यधिक विलेय तथा किसी अन्य विलायक में अल्प विलेय होता है, तब क्रिस्टलन उचित मात्रा में इन विलायकों के मिश्रण द्वारा किया जाता है।

यदि यौगिक तथा अशुद्धियों की विलेयताओं में अन्तर कम होता है तो उसका बार बार क्रिस्टलन करके शुद्ध यौगिक प्राप्त किया जाता है। प्राकृतिक या कृत्रिम तरीकों से ठोस क्रिस्टल बनाने की प्रक्रिया को क्रिस्टलीकरण कहते है। क्रिस्टलीकरण के लिए, एक विलयन का उपयोग किया जाता है या  क्रिस्टल सीधे गैस से एकत्र कर लिए जाते हैं। क्रिस्टलीकरण एक रासायनिक ठोस-द्रव पृथक्करण तकनीक है जिसमें एक विलेय को द्रव विलयन से शुद्ध ठोस में स्थानांतरित किया जाता है। रासायनिक इंजीनियरिंग में क्रिस्टलीकरण का उपयोग किया जाता है।

क्रिस्टलन की विधि

  • क्रिस्टलन विशेषकर यौगिक के शोधन की एक विधि है जब अभिक्रिया से प्राप्त अपरिष्कृत पदार्थ अत्यन्त अशुद्ध होता है तब इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • प्रक्रिया की प्रथम अवस्था एक ऐसे विलायक या विलायकों के मिश्रण को खोजना है जिसमें अपरिष्कृत पदार्थ गर्म करने पर अच्छी तरह विलेय हो जाता हो और शीतलन पर इसकी विलेयता अत्यधिक कम हो जाती है।
  • अब अपरिष्कृत पदार्थ को उबलते हुए विलायक की न्यूनतम मात्रा में विलेय किया जाता है जिससे सन्तृप्त विलयन प्राप्त हो जाए।
  • गरम विलयन का निस्यन्दन करके अविलेय अशुद्धियों को अलग कर लिया जाता है।
  • जब क्रिस्टलीकरण बिन्दु ज्ञात हो जाता है तब इसे धीरे-धीरे ठंडा होने दिया जाता है जिससे विलेय, विलेयशील अशुद्धियों के अधिकांश भाग को विलयन में छोड़कर क्रिस्टलित हो जाता है।
  • क्रिस्टलों को निस्यन्दन द्वारा अलग कर लिया जाता है और प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाता है जब तक शुद्ध पदार्थ के क्रिस्टल प्राप्त नही हो जाते।

क्रिस्टलन की प्रक्रिया

  • सर्वप्रथम एक बीकर में 30-50 mL आसुत जल लेते हैं, और इसमें कमरे के ताप पर फिटकरी/कॉपर सल्फेट का सन्तृप्त विलयन बनाने हेतु ठोस अशुद्ध नमूने को थोड़ा-थोड़ा डालते हुए विलोड़न द्वारा विलेय करते रहते हैं। जब ठोस विलेय होना बन्द हो जाता है तो फिर इसे और अधिक नहीं डालते। बेंजोइक अम्ल का सन्तृप्त विलयन बनाने हेतु गर्म जल का प्रयोग करते हैं।
  • इस प्रकार निर्मित विलयन को निस्यन्दित करके निस्यन्द को पोर्सलीन प्याली में डाल देते हैं। इसे बालूष्मक पर रखकर तब तक गरम करते हैं जब तक विलायक का ¾ भाग वाष्पित न हो जाए। विलयन में एक काच की छड़ डुबोते हैं और इसे बाहर निकाल कर मुँह से फूँक कर शुखाते हैं, यदि काच की छड़ पर ठोस की हल्की परत बन जाटी है तो इसे गर्म करना बन्द कर देते हैं।
  • इसके उपरांत पोर्सलीन प्याली को काच से ढक कर सामग्री को बिना छुए ठंडा होने देते हैं ।
  • जब क्रिस्टल बन जाता है तो क्रिस्टलन के पश्चात बचे हुए द्रव् का निस्तारण करते हैं।
  • इस प्रकार प्राप्त फिटकरी और कॉपर सल्फेट के क्रिस्टलों को पहले शीतल जल युक्त एल्कोहल की सूक्ष्म मात्रा से धोते हैं जिससे इसमें चिपका हुआ मातृ द्रव बाहर निकल जाता है, और फिर आर्द्रता हटाने के लिए इसे एल्कोहल से धोते हैं। बेंजोइक अम्ल के क्रिस्टलों को ठंडे जल से धोते हैं। बेंजोइक अम्ल एल्कोहल में विलेय होता है। इसके क्रिस्टलों को एल्कोहल से नही धोते।
  • क्रिस्टलों को निस्यन्दक पत्र की स्तरों में रखकर सुखा लेते हैं।
  • इस प्रकार क्रिस्टलों को सुरक्षित एवं शुष्क स्थान पर भण्डारित कर लेते हैं।

अभ्यास प्रश्न

  • क्रिस्टलन जल किसे कहते हैं?
  • क्रिस्टलन की विधि क्या है?