एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन

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SN1 अभिक्रियाएं सामान्यतः ध्रुवीय प्रोटिक विलायकों में संपन्न होती हैं ये ध्रुवीय प्रोटिक विलायक हैं। एल्कोहॉल, एसीटिक अम्ल, जल आदि। तृतीयक ब्यूटिल ब्रोमाइड की हाइड्रॉक्साइड आयन से अभिक्रिया कराने पर तृतीयक ब्यूटिल ऐल्कोहॉल प्राप्त होता है। इसमें अभिक्रिया का वेग केवल एक अभिकारक की सांद्रता पर निर्भर करता है। इसलिए इस अभिक्रिया की कोटि भी एक होती है। यही कारण है कि इसे SN1 अभिक्रिया भी कहते हैं।

यह अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है।

प्रथम चरण

प्रथम चरण सबसे धीमा तथा उत्क्रमणीय होता है जिसमें C - Br आबंध का विदलन होता है जिसके लिए ऊर्जा प्रोटिक विलायकों के प्रोटॉन द्वारा हैलाइड आयन के विलायक योजन से प्राप्त होती है। कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व जितना अधिक होगा एल्किल हैलाइड से उनका विरचन उतना ही अधिक आसान होगा तथा अभिक्रिया का वेग उतना ही अधिक होगा। 3o एल्किल हैलाइड तीव्रता से अभिक्रिया देते हैं क्योकीं 3 कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व बहुत आदिक होता है।

3o > 2o > 1o

कार्बधात्विक यौगिक का स्थायित्व का क्रम

प्रथम चरण में ध्रुवीय C - Br आबंध के विदलन से एक कार्बधात्विक आयन और एक ब्रोमाइड आयन बनता है।

द्वितीयक चरण

द्वितीयक चरण में कार्बधात्विक यौगिक पर एक नाभिकरागी का आक्रमण होता है तथा प्रतिस्थापन अभिक्रिया पूर्ण होती है।

अभ्यास प्रश्न