द्विआण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन

From Vidyalayawiki

Revision as of 12:55, 31 May 2024 by Shikha (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)

CH3Cl और हाइड्रॉक्साइड आयन की अभिक्रिया, जिसमें मेथेनॉल तथा क्लोराइड आयन बनता है यह एक द्वितीयक कोटि की अभिक्रिया है। अर्थात, अभिक्रिया का वेग दोनों अभिकारकों की सांद्रता पर निर्भर करता है। इस अभिक्रिया को आरेखीय रूप में भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

  • प्रतिस्थापन न्यूक्लियोफिलिक बिमोलेक्यूलर (SN2) अभिक्रिया एक प्रकार की कार्बनिक रासायनिक अभिक्रिया है जहां एक न्यूक्लियोफाइल (इलेक्ट्रॉन-समृद्ध प्रजाति) एक अणु में एक वाले समूह को प्रतिस्थापित करती है, जिससे एक नए रासायनिक बंध का निर्माण होता है। "द्विआणविक" पहलू इस तथ्य को संदर्भित करता है कि अभिक्रिया के दर-निर्धारण चरण में दो अणुओं का टकराव सम्मिलित है।
  • SN2 अभिक्रियाएं स्टीरियोस्पेसिफिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे प्रतिस्थापन के दौर से गुजर रहे कार्बन केंद्र में स्टीरियोकैमिस्ट्री के व्युत्क्रम के साथ आगे बढ़ती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि न्यूक्लियोफाइल छोड़ने वाले समूह के विपरीत पक्ष से हमला करता है, जिससे कॉन्फ़िगरेशन का सीधा उलटा होता है।
  • न्यूक्लियोफाइल इलेक्ट्रोफिलिक कार्बन परमाणु पर उस समय हमला करता है जब निकलने वाला समूह प्रस्थान करता है। इसका परिणाम एक संक्रमण अवस्था में होता है जहां न्यूक्लियोफाइल और छोड़ने वाला समूह दोनों आंशिक रूप से केंद्रीय कार्बन परमाणु से बंधे होते हैं।

अभिक्रिया दर

द्विआणविक प्रतिस्थापन अभिक्रिया

SN2 अभिक्रियाओं की दर न्यूक्लियोफाइल और सब्सट्रेट दोनों की सांद्रता पर निर्भर करती है, साथ ही अभिक्रियाशील कार्बन परमाणु के आसपास स्टेरिक बाधा पर भी निर्भर करती है। सामान्यतः SN2 अभिक्रिया धीमी गति से गुजरते हैं।

द्विअणुक नाभिकरागी प्रतिस्थापन को प्रदर्शित करता है। आक्रमणकारी नाभिकरागी की एल्किल हैलाइड से अन्योन्य क्रिया होने पर कार्बन और हैलोजन के मध्य का बंध टूटता है तथा कार्बन एवं आक्रमणकारी नाभिकरागी के मध्य एक नया आबंध बनता है। ये दोनों प्रक्रियाएं एक साथ एक ही पद में संपन्न होती हैं तथा कोई मध्यवर्ती नहीं बनता। जब अभिक्रिया प्रगति  है तब आने वाले नाभिकरागी एवं कार्बन परमाणु के मध्य आबंध बनना प्रारम्भ हो जाता है। फिर क्रियाधार के कार्बन हाइड्रोजन बंध आक्रमणकारी नाभिकरागी से  लगते हैं जब नाभिकरागी कार्बन के समीप पहुँचता है तब बंध पहले की दिशा में  अग्रसर होते रहते हैं जब तक टूटने वाला समूह कार्बन से टूटकर अलग नहीं हो जाता परिणामस्वरूप आक्रमण के लिए उपलब्ध कार्बन परमाणु का विन्यास पलट जाता है और अवशिष्ट समूह बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया को विन्यास का प्रतीपन कहते हैं।

अभ्यास प्रश्न

  • द्विआण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया से आप समझते हैं ?
  • एकाण्विक नाभिकरागी प्रतिस्थापन अभिक्रिया से आप समझते हैं ?