उभयचर

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उभयचर चार अंगों वाले कशेरुक हैं, जो जमीन और जल दोनों पर रहते हैं, और उभयचर वर्ग का गठन करते हैं जो कॉर्डेटा फ़ाइलम के अंतर्गत आते हैं। वे एक पैराफाईलेटिक समूह हैं जिसमें एमनियोट्स को छोड़कर सभी टेट्रापोड सम्मिलित हैं। इसमें लगभग तीन हजार प्रजातियाँ सम्मिलित हैं।

वर्ग उभयचर की विशेषता

  • उभयचर जल तथा स्थल दोनों में रह सकते हैं।
  • सभी उभयचर ठंडे खून वाले जानवर हैं।
  • ये असमतापी जीव होते हैं।
  • उनकी त्वचा पर कोई बाहरी कंकाल जैसे शल्क, बाल आदि नहीं होते और त्वचा नम होती है।
  • इनमें दो नासिका छिद्र होते हैं, जो मुख गुहा के माध्यम से फेफड़ों से जुड़े होते हैं।
  • हृदय में तीन वेश्म होते हैं।
  • मीनपक्षों के स्थान पर दो जोड़ी पैर होते हैं।
  • निषेचन बाह्य है. वे अंडोत्सर्ग करते हैं और सीधे या अण्डाणु के माध्यम से विकसित होते हैं।
  • आहार नाल, मूत्राशय तथा जनन पथ एक को में खुलते हैं जिसे अवस्कर कहते हैं और जो बाहर खुलता है।
  • वे मुख्य रूप से फेफड़ों और त्वचा के माध्यम से सांस लेते हैं। कुछ वयस्कों में गिल्स बाहरी रूप से उपस्थित हो सकते हैं।
  • इनका शरीर सिर और धड़ में विभाजित है।
  • जीव का विकास अप्रत्यक्ष होता है और कायापलट के माध्यम से होता है।
  • वे अपने शरीर की गर्मी स्वयं उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, इसके बजाय वे जीवित रहने के लिए पर्याप्त गर्म या ठंडा रखने में मदद करने के लिए अपने पर्यावरण के तापमान पर निर्भर रहते हैं।

उभयचर का वर्गीकरण

उभयचरों को चार गणों में विभाजित किया गया है:

सपुच्छा (कॉडेटा)

ये ऐसे जीव हैं जिनकी पूँछ होती है, हाथ-पैर होते हैं, त्वचा चिकनी होती है, विष ग्रंथियाँ होती हैं और निषेचन आंतरिक होता है। इसके अंतर्गत न्यूट तथा सैलामैंडर आते हैं। अधिकतर अग्र तथा पश्चपाद लगभग बराबर होते हैं। अधिकांश गिल स्लिट आजीवन बने रहते हैं, लेकिन कुछ में वे वयस्कता में गायब हो जाते हैं और श्वसन केवल फेफड़ों के माध्यम से होता है। वे कीड़ों पर भोजन करते हैं जैसे सैलामैंडर, नर और मादा के बीच बहुत कम अंतर होता है, आंतरिक निषेचन दिखाते हैं और छिपे हुए गलफड़े होते हैं।

विपुच्छा (सेलियंशिया)

इसके चार अंग हैं जहां सामने का पैर लम्बा है और कूदने के लिए संशोधित है, सिर और धड़ एक साथ जुड़े हुए हैं। विपुच्छ पूँछ रहित उभयचर हैं। इनमें मेंढकों और टोडों की 1,700 से अधिक प्रजातियाँ सम्मिलित हैं। इनमें गर्भाशय ग्रीवा नहीं होती है। वे जो सदा थल पर रहते हैं; अंड़े देने के समय जल में अवश्य चले जाते है। डिंभ अवस्था में पूँछ होती है जो वयस्क होने पर लुप्त हो जाती है।

अपादा (ऐपोडा)

अपोडा का अर्थ है "पैरों के बिना", इसलिए ये अंगहीन जीव हैं जिनके शरीर पर शल्क होते हैं। उन्हें "अंधे-कीड़े" के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उनकी आंखें त्वचा या हड्डी से ढकी होती हैं,इनके सिर पर स्पर्शक उपस्थित होते हैं जैसे, सीसिलियन। ये अधिकतर उष्ण कटिबंध में पाए जाते हैं। ये पादरहित, लगभग एक फुट लंबे, कृमि रूपी उभयचर हैं, जो भूमि के अंदर बिलों में रहते हैं।

आवृतशीर्ष (स्टीगोसिफेलिया)

उभयचरों की कुछ जातियाँ, जो आज से लाखों वर्ष पूर्व पाई जाती थीं परंतु अब नहीं मिलतीं, इस समुदाय में सम्मिलित हैं। इनकी विशेषता यह है कि इनके कपाल और हनु भी अस्थियों से ढके रहते थे। कुछ प्राणी, जैसे डिपलोकॉलस, छोटे सैलामैंडरों के समान तथा इओग्राइनस १५ फुट तक लंबे होते थे। ये सदा जल में ही रहा करते थे।

अभ्यास प्रश्न

  • उभयचरों की पाँच विशेषताएँ क्या हैं?
  • उभयचर क्या है समझाइये?
  • उभयचर की संरचना क्या है?