सांख्यिकी

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भूमिका

प्रतिदिन हमें तथ्यों, संख्यात्मक अंकों, सारणियों, आलेखों (ग्राफों) आदि के रूप में विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ देखने को मिलती रहती हैं। ये सूचनाएँ हमें समाचार पत्रों, टेलीविजनों, पत्रिकाओं और संचार के अन्य साधनों से उपलब्ध होती रहती हैं।

एक निश्चित उद्देश्य से एकत्रित किए गए इन तथ्यों या अंकों को, जो संख्यात्मक या अन्य रूप में हो सकते हैं, आंकड़े (data) कहा जाता है। अंग्रेजी शब्द "data" लैटिन शब्द datum का बहुवचन है।

अर्थपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध करने से संबंधित अध्ययन गणित की एक शाखा में किया जाता है जिसे सांख्यिकी (statistics) कहा जाता है।

सांख्यिकी में आंकड़ों के संग्रह करने, व्यवस्थित करने, विश्लेषण करने और निर्वचन करने के बारे में अध्ययन किया जाता है । भिन्न-भिन्न संदर्भों में शब्द 'statistics' का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है।

आंकड़ों का संग्रह

आइए हम निम्नलिखित क्रियाकलाप करके आंकड़ों को एकत्रित करने का कार्य प्रारम्भ करें।

क्रियाकलाप 1: अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को चार समूहों में बाँट दीजिए। प्रत्येक समूह को निम्न प्रकार के आंकड़ों में से एक प्रकार के आंकड़ों को संग्रह करने का काम दे दीजिए।

(i) अपनी कक्षा के 20 विद्यार्थियों की लंबाई ।

(ii) अपनी कक्षा में किसी एक महीने के प्रत्येक दिन अनुपस्थित रहे विद्यार्थियों की संख्या ।

(iii) आपके कक्षा मित्रों के परिवारों के सदस्यों की संख्या।

(iv) आपके विद्यालय में या उसके आस-पास के 15 पौधों की लंबाइयाँ ।

स्वयं अंवेषक ने अपने दिमाग में एक निश्चित उद्देश्य रखकर सूचनाओं को एकत्रित किया है। इस प्रकार एकत्रित किए गए आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े (primary data) कहा जाता है।

जहाँ किसी स्रोत से, जिसमें सूचनाएँ पहले से ही एकत्रित हैं, आंकड़े प्राप्त किए गए हों उन आंकड़ों को गौण आंकड़े (secondary data) कहा जाता है।

आंकड़ों का प्रस्तुतिकरण

आंकड़ों को एकत्रित करने का काम समाप्त होने के उपरांत ही अंवेषक को इन आंकड़ों को ऐसे रूप में प्रस्तुत करने की विधियों को ज्ञात करना होता है जो अर्थपूर्ण हो, सरलता से समझी जा सकती हों और एक ही झलक में उसके मुख्य लक्षणों को जाना जा सकता हो।

आइए अब हम कुछ उदाहरण लेकर आंकड़ों को प्रस्तुत करने की विभिन्न विधियों पर पुनः विचार करें।

उदाहरण 1 : गणित की परीक्षा में 10 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए गए अंक लीजिए :

55 36 95 73 60 42

25 78 75 62

इस रूप में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों को यथाप्राप्त आंकड़े ( raw data) कहा जाता है। क्या इस रूप में इसे देखकर आप अधिकतम और न्यूनतम अंक ज्ञात कर सकते हैं? क्या अधिकतम प्राप्तांक और न्यूनतम प्राप्तांक ज्ञात करने में आपको कुछ समय लगा है? यदि इन प्राप्तांकों को आरोही ( ascending ) या अवरोही (descending) क्रम में रखा जाए, तो अधिकतम अंक और न्यूनतम अंक ज्ञात करने में काफी कम समय लगेगा? अतः आइए हम प्राप्तांकों को आरोही क्रम में इस प्रकार रखें:

आंकड़ों का आलेखीय निरूपण

एक कहावत यह रही है कि एक चित्र हजार शब्द से भी उत्तम होता है। प्रायः अलग-अलग मदों की तुलनाओं को आलेखों (graphs) की सहायता से अच्छी तरह से दर्शाया जाता है। तब वास्तविक आंकड़ों की तुलना में इस निरूपण को समझना अधिक सरल हो जाता है। इस अनुच्छेद में, हम निम्नलिखित आलेखीय निरूपणों का अध्ययन करेंगे।

(A) दंड आलेख (Bar Graph)

(B) एकसमान चौड़ाई और परिवर्ती चौड़ाइयों वाले आयतचित्र (Histograms)

(C) बारंबारता बहुभुज (Frequency Polygons)


(A) दंड आलेख (Bar Graph)

दंड आलेख आंकड़ों का एक चित्रीय निरूपण होता है जिसमें प्राय: एक अक्ष (मान लीजिए x-अक्ष) पर एक चर को प्रकट करने वाले एक समान चौड़ाई के दंड खींचे जाते हैं जिनके बीच में बराबर-बराबर दूरियाँ छोड़ी जाती हैं। चर के मान दूसरे अक्ष (मान लीजिए y-अक्ष) पर दिखाए जाते हैं और दंडों की ऊँचाइयाँ चर के मानों पर निर्भर करती हैं।

(B) आयतचित्र (Histograms)

यह संतत वर्ग अंतरालों के लिए प्रयुक्त दंड आलेख की भाँति निरूपण का एक रूप है।


(C) बारंबारता बहुभुज (Frequency Polygons)

मात्रात्मक आंकड़ों (quantitative data) और उनकी बारंबारताओं को निरूपित करने की एक अन्य विधि भी है। वह है एक बहुभुज (polygon)।

आयतचित्र बनाए बिना ही बारंबारता बहुभुजों को स्वतंत्र रूप से भी बनाया जा सकता है। इसके लिए हमें आंकड़ों में प्रयुक्त वर्ग अंतरालों के मध्य बिन्दुओं की आवश्यकता होती है। वर्ग अंतरालों के इन मध्य-बिंदुओं को वर्ग - चिह्न (class-marks) कहा जाता है। किसी वर्ग अंतराल का वर्ग चिह्न ज्ञात करने के लिए, हम उस वर्ग अंतराल की उपरि सीमा (upper limit) और निम्न सीमा (lower limit) का योग ज्ञात करते हैं और इस योग को 2 से भाग दे देते हैं।

इस तरह, वर्ग -चिह्न = (उपरि सीमा + निम्न सीमा)/2