जैव विकास

From Vidyalayawiki

Listen

किसी आबादी में प्रजातियों की आनुवंशिक संरचना में पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण जो भी परिवर्तन होते हैं उसे जैव विकास कहते है"। पारिस्थितिकी तंत्र में सामंजस्य बनाए रखने के लिए, परिवर्तनों को सहन किया जाना चाहिए और उपयुक्त रूप से अनुकूलित किया जाना चाहिए। विकास एक क्रमिक एवं सतत प्रक्रिया है।

जैव विकास के सिद्धांत

  • जैव विकास एक सतत होने वाली प्रक्रिया हैं।
  • जैव विकास पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जाता है।
  • यह पीढ़ियों के बीच आबादी के वंश में परिवर्तन को संदर्भित करता है।

जैव विकासवादी प्रक्रिया को प्रमाणित करने और उसका वर्णन करने के लिए कई सिद्धांत सामने रखे गए। इनमें से कुछ सिद्धांत नीचे सूचीबद्ध हैं:

डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत

प्राकृतिक चयन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप उनके पर्यावरण के लिए सबसे उपयुक्त आनुवंशिक गुणों वाले जीवों का अस्तित्व और प्रजनन होता है। इसे  सामान्यतः "योग्यतम की उत्तरजीविता" भी कहा जाता है। चार्ल्स डार्विन ने 19वीं शताब्दी में दो दशकों से अधिक समय तक प्रकृति पर व्यापक अध्ययन किया। जानवरों के वितरण तथा जीवित और विलुप्त जानवरों के बीच संबंध पर उनकी टिप्पणियाँ आने वाले वर्षों में बहुत प्रमुख हो गईं। विकासवाद के सिद्धांत में उनके योगदान के कारण, चार्ल्स डार्विन को विकासवाद के जनक के रूप में जाना जाने लगा।

प्राकृतिक चयन के सिद्धांत

प्राकृतिक चयन के 5 मुख्य सिद्धांत निम्न लिखित हैं:

  1. संतान उत्पन्न करने की प्रचुर क्षमता
  2. सबसे योग्य संतान के जीवित रहने और प्रजनन करने की अधिक संभावना
  3. प्रजनन होने और विकास होने के लिए पर्याप्त समय
  4. आनुवंशिक भिन्नता होनी चाहिए जिससे सर्वोत्तम लक्षणों का चयन किया जा सके।
  • प्रजातियाँ समय के साथ बदलती या विकसित होती रहती हैं। जैसे-जैसे पर्यावरण बदलता है, जीवों की आवश्यकताएँ भी बदलती हैं और उन्हें अपने नए वातावरण के अनुकूल ढलने की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक आवश्यकताओं के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन की घटना को अनुकूलन कहा जाता है।
  • वे परिवर्तन जो लाभदायक होते हैं वो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थान्तरित हो जाते हैं। और जो लाभदायक नहीं होते वो विलुप्त हो जाते हैं।
  • चार्ल्स डार्विन के अनुसार, विकास एक क्रमिक और धीमी गति से होने वाली प्रक्रिया है। विकास की प्रक्रिया एक लम्बी अवधि में घटित हुई है।

लैमार्क का सिद्धांत

लैमार्क का पूरा नाम जीन बैप्टिस्ट डी लैमार्क है। लैमार्क ने अपने सिद्धांत में दो सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। यह दो सिद्धांत कुछ इस प्रकर हैं:

  1. अंगो के उपयोग तथा अनुपयोग का सिद्धांत
  2. उपार्जित लक्षणों की वंशागति का सिद्धांत
  • लैमार्क के अनुसार जीवों में हमेशा कुछ न कुछ परिवर्तन होते रहते हैं
  • वे परिवर्तन जो लाभदायक होते हैं वो अगली पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाते हैं।
  • जिन अंगों का उपयोग अधिक किया जाता है उनकी वृद्धि भी अधिक होती है और वो अगली पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाते हैं। जिसे इन्होने अंगो के उपयोग और अनुपयोग का सिद्धांत कहा।

उदाहरण

पीढ़ी दर पीढ़ी जिराफ अपनी गर्दन तानकर ऊँचे पेड़ों की पत्तियों को खाता था। जिससे क्रमिक विकास के द्वारा कुछ पीढ़ियों बाद लम्बी गर्दन वाले जिराफ उत्पन्न हुए।

अभ्यास प्रश्न

  • लैमार्कवाद से आप समझते हैं ?
  • प्राकृतिक चयन द्वारा जातियों की उत्पत्ति ये सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया।
  • जैव विकास से क्या समझते यहीं ?