परागण: Difference between revisions
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स्व-परागण, परागण का एक रूप है जिसमें एक ही पौधे से | |||
* स्व-परागण, परागण का एक रूप है जिसमें एक ही पौधे के समान पुष्प या भिन्न पुष्प का पराग (नर भाग से विकसित हुआ) समान पुष्प के या भिन्न पुष्प के कलंक (मादा भाग) पर स्थानांतरित होता है। | |||
* दोनों प्रक्रियाओं में पौधा एक ही है परन्तु परागण में भाग लेने वाला पुष्प समान या भिन्न हो सकता है। | |||
* आवृतबीजी पौधे में पराग, कलंक पर स्थानांतरित होता है और अनावृतबीजी पौधे में पराग, बीजांड पर स्थानांतरित होता है। | |||
* स्व-परागण के दो प्रकार हैं: | |||
===== ऑटोगैमी: ===== | ===== ऑटोगैमी: ===== | ||
पराग को | |||
* ऑटोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे पराग को समान पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है I | |||
===== गीटोनोगैमी: ===== | ===== गीटोनोगैमी: ===== | ||
=== भिन्न | * गीटोनोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे समान पौधे के पुष्प के परागकोश से पराग को एक भिन्न पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है। | ||
=== भिन्न पौधे में परागण के आधार पर: === | |||
==== पार परागण: ==== | ==== पार परागण: ==== | ||
पार परागण एक प्राकृतिक विधि है जिसमें पराग का स्थानांतरण एक पौधे के | |||
* पार परागण एक प्राकृतिक विधि है जिसमें पराग का स्थानांतरण एक पौधे के पुष्प के परागकोश से उसी प्रजाति के दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक होता है। | |||
* इसका अर्थ है कि परपरागण में पौधे की प्रजातियाँ समान होती हैं परन्तु पुष्प के पराग और कलंक का स्रोत विभिन्न पौधों से होता है। | |||
* परपरागण का एक प्रकार हैं: | |||
===== ज़ेनोगैमी: ===== | ===== ज़ेनोगैमी: ===== | ||
ज़ेनोगैमी परागकणों का परागकोश से एक अलग पौधे के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण है। यह एकमात्र प्रकार का पर-परागण है जो परागण के दौरान आनुवंशिक रूप से विभिन्न प्रकार के परागकणों को वर्तिकाग्र पर लाता है। | ज़ेनोगैमी परागकणों का परागकोश से एक अलग पौधे के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण है। यह एकमात्र प्रकार का पर-परागण है जो परागण के दौरान आनुवंशिक रूप से विभिन्न प्रकार के परागकणों को वर्तिकाग्र पर लाता है। |
Revision as of 23:36, 13 October 2023
हम सभी जानते हैं कि आवृतबीजी पौधों में पुष्प होते हैं। और इन पुष्प में मादा और नर भाग होते हैं जो लैंगिक जनन में सहायता करते हैं। पहले हमने चर्चा की थी कि लैंगिक जनन नर युग्मक द्वारा मादा युग्मक के निषेचन के कारण होता है। परन्तु प्रश्न यह है कि ये नर युग्मक मादा युग्मक तक पहुंचकर उन्हें निषेचित कैसे करते हैं? हम मादा युग्मक को निषेचित करने के लिए नर युग्मक के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे जिसे सामान्यतः परागण के नाम से जाना जाता है।
परिभाषा
परागण, पौधों के लैंगिक जनन में एक अनिवार्य क्रिया है। परागण एक पुष्प के परागकोश (पुष्प का नर भाग) से पुष्प के वर्तिकाग्र (पुष्प का मादा भाग) तक पराग का स्थानांतरण है, जो बाद में निषेचन और बीज के उत्पादन को सक्षम बनाता है। युग्मकों के स्थानान्तरण की इस प्रक्रिया में वायु, जल, कीड़े (मधुमक्खी, मक्खियाँ इत्यादि) और जानवर (बंदर, चमगादड़, साँप इत्यादि) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परागण करने वाले सभी जीव परागणक कहलाते हैं।
पौधों की एक ही प्रजाति के बीच होने वाले परागण के परिणामस्वरूप युग्मकों का सफल निषेचन होता है। यदि एक ही प्रजाति के फूलों के बीच परागण नहीं होता है तो यह या तो संकर किस्म पैदा करता है या एक व्यर्थ प्रक्रिया हो जाती है।
परागण की प्रक्रिया
परागण की प्रक्रिया एक सरल प्रक्रिया है। इसमें केवल नर युग्मक का फूल के मादा भाग में स्थानांतरण होता है। परन्तु यह होता कैसे है? यह विभिन्न विधि से हो सकता है। ऐसी ही एक विधि है-
- वायु द्वारा परागण। इसमें हवा पराग स्थानांतरण में सहायता करती है।
- जल भी परागण के कारक के रूप में कार्य करता है।
- अन्य विधियों में परागण कीड़ों जैसे मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है। यह कीड़े पुष्पमधु की खोज में एक फूल से दूसरे फूल की ओर घूमते रहते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया में परागण होता है।
- कुछ जानवर जैसे बंदर, सांप और चमगादड़ जैसे स्तनधारी भी परागण में अपनी भूमिका निभाते हुए पाए जाते हैं। लेकिन सबसे प्रभावी तरीका है कीड़ों द्वारा और वह भी मधुमक्खियों द्वारा।
परागण के प्रकार
समान पौधे में परागण के आधार पर:
स्वपरागण:
- स्व-परागण, परागण का एक रूप है जिसमें एक ही पौधे के समान पुष्प या भिन्न पुष्प का पराग (नर भाग से विकसित हुआ) समान पुष्प के या भिन्न पुष्प के कलंक (मादा भाग) पर स्थानांतरित होता है।
- दोनों प्रक्रियाओं में पौधा एक ही है परन्तु परागण में भाग लेने वाला पुष्प समान या भिन्न हो सकता है।
- आवृतबीजी पौधे में पराग, कलंक पर स्थानांतरित होता है और अनावृतबीजी पौधे में पराग, बीजांड पर स्थानांतरित होता है।
- स्व-परागण के दो प्रकार हैं:
ऑटोगैमी:
- ऑटोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे पराग को समान पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है I
गीटोनोगैमी:
- गीटोनोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे समान पौधे के पुष्प के परागकोश से पराग को एक भिन्न पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है।
भिन्न पौधे में परागण के आधार पर:
पार परागण:
- पार परागण एक प्राकृतिक विधि है जिसमें पराग का स्थानांतरण एक पौधे के पुष्प के परागकोश से उसी प्रजाति के दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक होता है।
- इसका अर्थ है कि परपरागण में पौधे की प्रजातियाँ समान होती हैं परन्तु पुष्प के पराग और कलंक का स्रोत विभिन्न पौधों से होता है।
- परपरागण का एक प्रकार हैं:
ज़ेनोगैमी:
ज़ेनोगैमी परागकणों का परागकोश से एक अलग पौधे के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण है। यह एकमात्र प्रकार का पर-परागण है जो परागण के दौरान आनुवंशिक रूप से विभिन्न प्रकार के परागकणों को वर्तिकाग्र पर लाता है।