परागण

From Vidyalayawiki

Listen

हम सभी जानते हैं कि आवृतबीजी पौधों में पुष्प होते हैं। और इन पुष्प में मादा और नर भाग होते हैं जो लैंगिक जनन में सहायता करते हैं। पहले हमने चर्चा की थी कि लैंगिक जनन नर युग्मक द्वारा मादा युग्मक के निषेचन के कारण होता है। परन्तु प्रश्न यह है कि ये नर युग्मक मादा युग्मक तक पहुंचकर उन्हें निषेचित कैसे करते हैं? हम मादा युग्मक को निषेचित करने के लिए नर युग्मक के स्थानांतरण की इस प्रक्रिया पर विस्तार से चर्चा करेंगे जिसे सामान्यतः परागण के नाम से जाना जाता है।

परिभाषा

परागण, पौधों के लैंगिक जनन में एक अनिवार्य क्रिया है। परागण एक पुष्प के परागकोश (पुष्प का नर भाग) से पुष्प के वर्तिकाग्र (पुष्प का मादा भाग) तक पराग का स्थानांतरण है, जो बाद में निषेचन और बीज के उत्पादन को सक्षम बनाता है। युग्मकों के स्थानान्तरण की इस प्रक्रिया में वायु, जल, कीड़े (मधुमक्खी, मक्खियाँ इत्यादि) और जानवर (बंदर, चमगादड़, साँप इत्यादि) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परागण करने वाले सभी जीव परागण कहलाते हैं।

पौधों की एक ही प्रजाति के बीच होने वाले परागण के परिणामस्वरूप युग्मकों का सफल निषेचन होता है। यदि एक ही प्रजाति के फूलों के बीच परागण नहीं होता है तो यह या तो संकर किस्म पैदा करता है या एक व्यर्थ प्रक्रिया हो जाती है।

परागण की प्रक्रिया

परागण की प्रक्रिया एक सरल प्रक्रिया है। इसमें केवल नर युग्मक का फूल के मादा भाग में स्थानांतरण होता है। परन्तु यह होता कैसे है? यह विभिन्न विधि से हो सकता है। ऐसी ही एक विधि है-

  • वायु द्वारा परागण। इसमें हवा पराग स्थानांतरण में सहायता करती है।
  • जल भी परागण के कारक के रूप में कार्य करता है।
  • अन्य विधियों में परागण कीड़ों जैसे मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है। यह कीड़े पुष्पमधु की खोज में एक फूल से दूसरे फूल की ओर घूमते रहते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया में परागण होता है।
  • कुछ जानवर जैसे बंदर, सांप और चमगादड़ जैसे स्तनधारी भी परागण में अपनी भूमिका निभाते हुए पाए जाते हैं। लेकिन सबसे प्रभावी तरीका है कीड़ों द्वारा और वह भी मधुमक्खियों द्वारा।

परागण के प्रकार

समान पौधे में परागण के आधार पर:

स्वपरागण:

  • स्व-परागण, परागण का एक रूप है जिसमें एक ही पौधे के समान पुष्प या भिन्न पुष्प का पराग (नर भाग से विकसित हुआ) समान पुष्प के या भिन्न पुष्प के कलंक (मादा भाग) पर स्थानांतरित होता है।
  • दोनों प्रक्रियाओं में पौधा एक ही है परन्तु परागण में भाग लेने वाला पुष्प समान या भिन्न हो सकता है।
  • आवृतबीजी पौधे में पराग, कलंक पर स्थानांतरित होता है और अनावृतबीजी पौधे में पराग, बीजांड पर स्थानांतरित होता है।

स्व-परागण के दो प्रकार हैं:

ऑटोगैमी:
  • ऑटोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे पराग को समान पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है I
  • यह एक प्रकार का स्व-परागण है जहां परागकणों का परागकोश से वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण एक ही फूल के भीतर होता है। ऑटोगैमी के लिए परागकोश और वर्तिकाग्र का समन्वित उद्घाटन, परिपक्वता और प्रदर्शन आवश्यक है।
गीटोनोगैमी:
  • गीटोनोगैमी परागण की वह प्रक्रिया है जिसमे समान पौधे के पुष्प के परागकोश से पराग को एक भिन्न पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित किया जाता है।
  • देखने पर यह पर-निषेचन जैसा लगता है और परागणकों की मदद से होता है, परंतु दोनों युग्मकों का मूल पौधा एक ही है, इस कारण यह स्व-परागण का एक प्रकार है। इस प्रकार के परागण में परागणकर्ता मुख्य रूप से कीट और जानवर होते हैं।

भिन्न पौधे में परागण के आधार पर:

पार परागण

पार परागण:

  • पार परागण एक प्राकृतिक विधि है जिसमें पराग का स्थानांतरण एक पौधे के पुष्प के परागकोश से उसी प्रजाति के दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र तक होता है।
  • इसका अर्थ है कि परपरागण में पौधे की प्रजातियाँ समान होती हैं परन्तु पुष्प के पराग और कलंक का स्रोत विभिन्न पौधों से होता है।

परपरागण का एक प्रकार हैं:

ज़ेनोगैमी:
  • ज़ेनोगैमी परागकणों का परागकोश से एक अलग पौधे के वर्तिकाग्र तक स्थानांतरण है। यह एकमात्र प्रकार का पर-परागण है जो परागण के दौरान आनुवंशिक रूप से विभिन्न प्रकार के परागकणों को वर्तिकाग्र पर लाता है।
  • ज़ेनोगैमी, पर-परागण है जहां परागकणों का स्थानांतरण दो अलग-अलग पौधों के फूलों में होता है। दूसरे शब्दों में, एक पौधे के परागकोष से दूसरे पौधे के वर्तिकाग्र तक पराग का स्थानांतरण। प्रत्येक प्रकार के परागण की अपने गुण होते हैं, पर-निषेचन एक नई किस्म के पौधे को जन्म देता हैI

परागण के कारक

परागण के कारको को हम मुख्यतः दो प्रकार में वर्गीकृत करते हैं- जैविक और अजैविक। अधिकांश पौधे परागण के लिए जैविक कारको का उपयोग करते हैं। पौधों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही अजैविक कारको का उपयोग करता है।

जैविक कारक

कीड़े/जानवर

अधिकांश पौधे परागण कारक के रूप में विभिन्न प्रकार के जानवरों का उपयोग करते हैं। मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, मक्खियाँ, भृंग, ततैया, चींटियाँ, पतंगे, पक्षी (हमिंग पक्षी और सनबर्ड) और चमगादड़ सामान्य परागण कारक हैं। जानवरों में, कीड़े, विशेष रूप से मधुमक्खियाँ प्रमुख परागण कारक हैं। यहां तक ​​कि बड़े जानवरों जैसे कि कुछ प्राइमेट्स (लेमर्स), आर्बरियल (पेड़ पर रहने वाले) कृंतक, या यहां तक ​​कि सरीसृप (गेको छिपकली, गार्डन छिपकली) को भी पुष्प की कुछ प्रजातियों में परागणक के रूप में सूचित किया गया है। कीड़ों द्वारा परागण को एंटोमोफिली कहा जाता है

अजैविक कारक

वायु

वालिसनेरिया में जल द्वारा परागण

अजैविक परागण में पवन द्वारा परागण अधिक सामान्य है। परागकण हवा द्वारा फूल के वर्तिकाग्र तक ले जाए जाते हैं। पवन परागण का उपयोग करने वाले फूलों के परागकण बहुत हल्के और गैर चिपचिपे होते हैं। इससे उनके आसान परिवहन में मदद मिलती है। घासों में वायु परागण व्यापक रूप से पाया जाता है। जब पराग हवा द्वारा परागित होता है, तो इसे एनेमोफिली कहा जाता है। दुनिया के कई सबसे महत्वपूर्ण फसल पौधे पवन-परागणित हैं। इनमें गेहूं, चावल, मक्का, राई, जौ और जई शामिल हैं। कई आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ भी पवन-परागित होते हैं।

जल

जल के माध्यम से होने वाले परागण को हाइड्रोफिली कहा जाता है। फूल वाले पौधों में जल द्वारा परागण काफी दुर्लभ है और यह लगभग 30 प्रजातियों तक सीमित है, जिनमें अधिकतर एकबीजपत्री हैं। जल नर युग्मकों के लिए निचले पौधों के समूहों जैसे शैवाल, ब्रायोफाइट्स और टेरिडोफाइट्स के बीच स्थानांतरण का नियमित माध्यम है। पराग, जल के प्रवाह से वितरित होता है, विशेषकर नदियों और झरनों में।