अंडाशय (उच्चतम स्तर)

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जैसा कि आप जानते हैं, मनुष्य लैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं और बच्चों को जन्म देते हैंI मनुष्यों में प्रजनन में निम्नलिखित घटनाएँ सम्मिलित होती हैं;

  • युग्मकजनन की प्रक्रिया द्वारा युग्मकों का निर्माण, यानी पुरुषों में शुक्राणु और महिलाओं में अंडाणु।
  • मादा में शुक्राणुओं का स्थानांतरण, प्रजनन पथ द्वारा I
  • निषेचन जिसका अर्थ है नर और मादा युग्मक का संलयन I इसके बाद युग्मनज का निर्माण होता है और गर्भाशय के अंदर भ्रूण का विकास होता है। एक बार जब भ्रूण का विकास पूरा हो जाता है तो बच्चे को जन्म दिया जाता है। आपने सीखा है कि ये प्रजननीय घटनाएँ युवावस्था के बाद घटित होती हैं। उल्लेखनीय हैं, नर और मादा में प्रजनन घटनाओं के बीच अंतर होता हैI उदाहरण के लिए- बूढ़े पुरुषों में भी, शुक्राणु का निर्माण जारी रहता है लेकिन महिलाओं में डिंब का निर्माण बंद हो जाता है, पचास साल के आसपास की उम्र में I

ठीक इसी प्रकार महिला एवं पुरुष प्रजनन तंत्र में भी अंतर होता है। इस अध्याय में हम महिला प्रजनन तंत्र एवं अंडाशय के विषय में ज्ञानार्जन करेंगे। आइए विस्तार से अध्ययन करें।

महिला प्रजनन तंत्र

महिला प्रजनन प्रणाली में एक जोड़ी डिंबवाहिनियों के साथ एक जोड़ी अंडाशय होता है I बाहरी जननांग में, श्रोणि क्षेत्र में, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा और योनि स्थित होते है। महिला प्रजनन तंत्र के ये सभी अंग एक जोड़ी स्तन ग्रंथियाँ के साथ संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से एकीकृत होते हैं और डिंबोत्सर्जन, निषेचन, गर्भावस्था, जन्म और बच्चे की देखभाल की प्रक्रियाओं में समर्थन करती हैं।

महिला प्रजनन तंत्र

डिंबवाहिनी, गर्भाशय और योनि, सहायक नलिकाएं है जिससे महिला प्रजनन तंत्र का निर्माण होता हैI प्रत्येक डिंबवाहिनी लगभग 10-12 सेमी लंबी और प्रत्येक अंडाशय की परिधि से गर्भाशय तक फैली हुई होती है। डिंबवाहिनी का अंडाशय से निकटतम भाग, कीपाकार होता है जिसे इन्फंडिबुलम कहा जाता है। इन्फंडिबुलम के किनारों पर, उंगली जैसे उभार होते हैं जिन्हें फ़िम्ब्रिए कहा जाता है, जो अण्डोत्सर्ग के बाद डिंब का संग्रह करते हैं। इन्फंडिबुलम, एम्पुला की ओर बढ़ता है जो डिंबवाहिनी का व्यापक भाग है। डिंबवाहिनी का अंतिम भाग, संकीर्ण इस्थमस होता है जो गर्भाशय से जुड़ जाता है।

गर्भाशय एकल होता है और इसे कोख भी कहते हैं। गर्भाशय का आकार, उलटे नाशपाती की तरह होता हैI यह श्रोणि से जुड़े स्नायुबंधन द्वारा समर्थित होता है। गर्भाशय एक संकीर्ण गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से योनि में खुलता है। गर्भाशय ग्रीवा योनि के साथ मिलकर जन्म नाल का निर्माण करती है।

अंडाशय

अंडाशय प्राथमिक महिला लैंगिक अंग हैं जो महिला में युग्मक (अंडाणु) और कई डिम्बग्रंथि हार्मोन (स्टेरॉयड हार्मोन) का उत्पादन करते हैं। आइये इसकी संरचना के विषय में ज्ञानार्जन करते हैं।

अंडाशय का आकृति विज्ञान और शारीरिक रचना विज्ञान:

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अंडाशय की शारीरिक रचना

दोनों अंडाशय उदर गुहा के दोनों और श्रोणि भाग में प्रत्येक तरफ (एक-एक) स्थित होते हैं I प्रत्येक अंडाशय लगभग 2 से 4 सेंटीमीटर लंबा होता है और स्नायुबंधन द्वारा श्रोणि की दीवार से और गर्भाशय से जुड़ा होता है। प्रत्येक अंडाशय, मेसोवेरियम द्वार श्रोणी भाग की दीवार से लगा हुआ होता है। मेसोवेरियम से संलग्न स्थान पर नाभिका होता है जिससे रुधिर वाहिनी तथा तांत्रिकाएं अंडाशय में प्रवेश करती हैं।

अंडाशय तीन परतों से घिरा होता है-

  • परिउदर्या (Peritoneum): यह सबसे बाहरी परत हैI
  • ट्यूनिका अल्बुजीन (Tunica albuginea): यह मध्य परत हैI
  • जनन उपकला (Germinal epithelium): यह सबसे भीतरी परत हैI

डिम्बग्रंथि के आंतरिक भाग को पीठिका (स्ट्रोमा) कहते हैं। डिम्बग्रंथि स्ट्रोमा में अधिक सामान्य घटक सम्मिलित होते हैं जैसे कि प्रतिरक्षा कोशिकाएं, रक्त वाहिकाएं, तंत्रिकाएं और लसीका वाहिकाएं, साथ ही अंडाशय-विशिष्ट घटक भी सम्मिलित हैं। पीठिका दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया है-

  • पीठिका वलकुट (Stroma cortex): डिम्बग्रंथि रोम यहाँ पाए जाते हैं।
  • पीठिका मध्यांश (Stroma medulla): यहाँ रक्त वाहिकाएँ पाई जाती हैं।

अंडाशय का कार्य

अंडाशय के दो मुख्य प्रजनन कार्य होते हैं-

  • वे निषेचन के लिए डिम्बाणुजनकोशिका (अंडाणु) का उत्पादन करते हैंI अंडाशय, मासिक धर्म चक्र के मध्य में (28-दिवसीय चक्र के लगभग 14वें दिन) एक अंडाणु का उत्पादन करता है जिसे डिंबोत्सर्जन कहा जाता है।
  • वे प्रजनन हार्मोन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और एण्ड्रोजन का उत्पादन करते हैं।

इस प्राकार अंडाशय मासिक धर्म और गर्भधारण दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइए इन प्रक्रियाओं को अधिक विस्तार से जानें-

  • अंडाशय प्रत्येक मासिक धर्म चक्र के मध्य बिंदु पर एक अंडाणु उत्पादित करता है। सामान्यतः, प्रत्येक मासिक धर्म चक्र के दौरान एक अंडाशय से केवल एक अंडाणु निकलता है, जिसे डिंबोत्सर्जन के रूप में जाना जाता है। एक मादा शिशु का जन्म उन सभी अंडाणु के साथ होता है जो उसके अंडाशय में होंगे। अनुमानतः यह लगभग 20 लाख होते है, लेकिन लड़की के युवावस्था तक पहुँचने तक यह संख्या घटकर लगभग 400,000 हो जाती है। यौवन से लेकर रजोनिवृत्ति तक, डिंबोत्सर्जन के माध्यम से लगभग 300 - 400 अंडाणु ही निकलते हैं।
  • अंडाशय द्वारा स्रावित होने वाले प्रमुख हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हैं, दोनों मासिक धर्म चक्र में महत्वपूर्ण हार्मोन हैं। डिंबोत्सर्जन से पहले मासिक धर्म चक्र के पहले भाग में एस्ट्रोजन का उत्पादन अधिक होता है, और पीत-पिण्ड बनने के बाद मासिक धर्म चक्र के दूसरे भाग के दौरान प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन अधिक होता है। दोनों हार्मोन गर्भावस्था और निषेचित अंडाणु के प्रत्यारोपण के लिए गर्भाशय की परत तैयार करने में महत्वपूर्ण हैं। यदि गर्भाधान मासिक धर्म चक्र के दौरान होता है, तो पीत-पिण्ड कार्य करने की अपनी क्षमता नहीं खोता है और एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का स्राव करना बनाए रखता है, जिससे भ्रूण को गर्भाशय की परत में प्रत्यारोपित होने और प्लेसेंटा बनाने की अनुमति मिलती है।

अंडाशय से संबंधित असामान्यताएं

डिम्बग्रंथि पुटी

डिम्बग्रंथि रोगों या विकारों में से कुछ में प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  • एंडोमेट्रियोसिस: एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसा विकार है जिसमें गर्भाशय की परत बनाने वाले ऊतक से मिलता हुआ ऊतक गर्भाशय की गुहा के बाहर विकसित होने लगता है। गर्भाशय की परत को एंडोमेट्रियम कहते हैं।
  • डिम्बग्रंथि पुटी: अंडाशयों में बनने वाली पुटी होती है जो एक थैली में भरे हुए तरल प्रदार्थ यानि एक गांठ की तरह होते हैं। सामान्यतः डिम्बग्रंथि पुटी हानिकारक नहीं होता और बिना किसी इलाज के अपने आप ही खत्म हो जाता है। डिम्बग्रंथि पुटी के कारण ओवेरियन कैंसर हो भी सकता है और नहीं भी।
  • डिम्बग्रंथि उपकला कैंसर: कैंसर तब विकसित होता है जब शरीर में असामान्य कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं। डिम्बग्रंथि का कैंसर, अंडाशय या डिंबवाहिनी के संबंधित क्षेत्रों में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि है। यह स्वस्थ शरीर के ऊतकों पर आक्रमण और नष्ट कर सकता है।
  • पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम (PCOS): पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, प्रजनन आयु की महिलाओं में मिलने वाला एक आम हार्मोनल विकार है। यह एक अंतःस्रावी और चयापचय विकार होता है, जिससे शरीर में हॉर्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है, इसके परिणामस्वरूप वजन को नियंत्रित रखने में समस्या होती है।